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हे किसान धन्य छी अहाँ – दुनियाक भूख हरै छी

कविता

– रामकुमार सिंह

किसान

सहि शीत, घाम आ मेघ
प्रकृतिसँ कष्ट अनेक सहै छी ।
हे किसान छी धन्य अहाँ
दुनिया केर भूख हरै छी ।

नित अन्हरोखे उठि बरद संग,
ह’र कान्ह धएल मोन मे उमंग,
नियति सँ चललहुँ करय जग,
ल’ हाथ कोदारि खुरपीक सग,

नहि चिन्ता विजय पराजय केर,
जीवन पर्यन्त लड़ै छी।

की भेटल मुदा प्रयत्नक फल,
नेना भुटका चेथरो लेल ल’ल,
बेटीक बियाह, बेटाक पढ़ाइ,
एम्हर पहाड़, ओम्हर दलदल ,

घेरल सतत समस्या सँ,
नित मोनहि मोन हहरै छी ।

अछि नफा सुनिश्चित टाटा केर,
अम्बानी, अडानी, बाटा केर,
हमर खेत बरू जरय दहय,
बनिकक बीमा अछि घाटा केर,

केओ बदलि फेफड़ा जीबि रहल,
अहाँ औषधि लेल मरै छी ।

#रामकुमार_सिंह
बघौड़ निवास, बटराहा, सहरसा, मिथिला – ८५२ २०१ ।

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