आलेख – जनकपुरक बारे सामान्य ऐतिहासिक अवलोकन
– रोशन जनकपुरी
(मूल नेपाली सँ मैथिली मे अनुवाद: प्रवीण नारायण चौधरी)
जनकपुरधाम प्रथम दृष्टिमे एकटा मिथकीय तीर्थस्थलक रूपमे प्रसिद्ध अछि । रामायणक नायिका आर हिन्दुभक्तक निमित्त जगज्जननीक रूपमे आराध्य सीता मिथिलाक राजकुमारी आर राजा शीरध्वजक बेटी छलीह । मिथिलाक अन्तिम शासक कराल छलाह । कराल जनकक पतन सम्भवतः ईसापूर्व नवम–दशम शताब्दीक आसपास भेलनि । तेकरा बाद करीब एक हजार वर्षधरि मिथिलाक इतिहास अन्धकारमे देखाइछ । बौद्ध जातक सभमे आर्यावर्तक प्रथम बीसटा जनपद सभमे मिथिला आर विदेहवंशक चर्चा रहितो ओ बज्जिमहासंघ भीतरक एक प्रतिष्ठित लेकिन राजध्वज पतन भऽ चुकल रूपमे चर्चा कयल गेल अछि । बौद्ध जातक आर अन्य पौराणिक ग्रन्थ सभमे कतहु विदेहकेँ देश आर मिथिलाकेँ राजधानी आर नगर समेत, त कतहु मिथिलाकेँ देशक रूपमे समेत चर्चा कयल गेल छैक । लेकिन एखन एहि बहस सँ अलग हमरा लोकनि जनकपुरधामक ऐतिहासिकतामे केन्द्रित होयब उचित होयत ।
ओना त जनकपुरधामक बारे ऐतिहासिक साक्ष्य सभ न्युनतम एक हजार वर्ष धरिक भेटैत अछि लेकिन आधुनिक जनकपुरधामक शुरुआत सतरहम् शताब्दीसँ भेल अछि । जाहि समय सुरकिशोर दास जनकपुरधाम एलाह आर एखन जानकीमन्दिर रहल स्थानमे एकटा नीमकेर गाछतर अपन सधुक्कडी चिम्टा गाड़लनि । ताहि समय ओतय जंगल छल । मुदा ऐतिहासिक साक्ष्य सभ जनक व जानकीसंग जोड़ल आर घनघोर जंगल बीचक ई स्थान नजदीकक क्षेत्र सभमे परिचित रहल छल, तथा सम्भवतः रामनवमीक छोटछीन तीर्थयात्री लोकनिक जमघट सेहो शुरु भऽ गेल छल । एहि विषयमे विद्यापतिक भूपरिक्रमा ग्रन्थकेँ साक्ष्य महत्वपूर्ण अछि । एहि पुस्तकमे मैथिली भाषाक महाकवि विद्यापति द्वारा विद्वतजन लोकनि जनकपुरकेँ वैदेह लोकनिक ‘पुर’ नहि मानबाक बात कहने छथि । विद्यापतिक कहना मे विद्वतजन लोकनि एहि जनकपुरकेँ वैदेह लोकनिक नगर स्वीकार नहि करितो लोकजन द्वारा एहि जनकपुरकेँ राजा जनकक राजधानी आर तीर्थ मानबाक भाव उत्पन्न करबैत अछि । एहि मे आर जे किछु कहलोपर ताहि समय (चौदहम शताब्दीक प्रारम्भ) जनकपुरक अस्तित्व रहबाक आर ताहि प्रति जनविश्वास त निश्चितरूप मे प्रमाणित होइत अछि ।
जनकपुरधामक बारे मे पहिल ऐतिहासिक अभिलेख इन्द्रविधाता सेन सन् १७११ मे रामचन्द्र मन्दिर (राममन्दिर) केँ कुशेविर्ता जमीन दान कयल जेबाक लिखित आधार थिक । ई लिखित हाल उपलब्ध नहि अछि, मुदा एहि बारे विभिन्न श्रोत सभमे उल्लेख होयबाक तथ्य भेटैत अछि । एकरा बाद दोसर अभिलेख सन् १७२७ मे मकवानपुरक राजा मानिकसेन द्वारा रामदासकेँ जानकीमन्दिरक महन्थ घोषणा करबाक लिखित अछि । रामदास आधुनिक जनकपुरक संस्थापक सुरकिशोर दासक चारिम पुस्ताक शिष्य छलाह । एतय उल्लेखनीय कि अछि जे रामदास जानकीमन्दिरक पहिल महन्थ थिकाह तथा हुनका सँ पहिने सुरकिशोरदास, प्रयागदास आर जनकवैदेही दास केँ सन्त कहल गेल छन्हि ।
सन्त सुरकिशोरदास जनकपुरक खोज करबाक सम्बन्धमे अनेकों कथा सभमे प्रचलित अछि जाहिमे स्वयंकेँ सीताक पिताक भावमे तन्मय रहल सुरकिशोरदासकेँ सीता अपन मूर्ति भेटबाक स्थान हुनकर नैहर यानि जनकपुर होयबाक बात सपनामे कहलखिन आर जनकपुर जेबाक लेल प्रेरित कयलखिन से कथा बड़ा बेसी लोकप्रिय अछि । लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्य सभक आलोकमे कि देखल जाइछ जे हालक जनकपुरसँ सीतामढीक क्षेत्र मिथिला आर जनकपुर वैदेहक नगरी (किछु ठाम जानकी जन्मभूमि कहल गेल अछि)केर रूपमे परिचित मुदा दुर्गम वन्यक्षेत्र रहल देखाइत अछि । सुरकिशोरदास रसिक सम्प्रदायक साधू छलाह, जे सीताक भक्तिमे आध्यात्मिकरूपमे लीन छलाह । आर एहि द्वारे हुनका मिथिलाक्षेत्र व जनकपुर एबाक लेल प्रेरित कयल गेलनि । हुनका जनकपुर एबाक वास्ते प्रेरित करयवला कारण सभक खोज कयलापर रसिक सम्प्रदाय आर जनकपुरक सम्बन्ध बारे थोड़ेक चर्चा करब सान्दर्भिक होयत ।
ऐतिहासिक श्रोत सभक अनुसार सोलहम-सतरहम शताब्दीमे गंगाक मैदानी क्षेत्रमे राम त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु आर महेश) मध्य विष्णुक अवतारक रूपमे स्थापित भऽ गेलाक बाद रामभक्त साधूलोकनि रामक जीवनसंग सम्बन्धित स्थलसभक खोज करबाक अभियान चलौलनि । राम वनगमन करयवला विन्ध्य पर्वत भेटल, चित्रकूट भेटल, जखन कि अयोध्या रामक जन्मस्थल केर रूपमे पहिनहि सँ परिचित छल । रामकेँ पूजनीय देवताक रूपमे स्थापित करबाक श्रेय स्वामी रामानन्दकेँ छन्हि । वैह रामानुजी परम्परामे लक्ष्मी आर विष्णु प्रधान रहल श्रीसम्प्रदाय सँ अलग अपन दोसरे सम्प्रदाय चलौलनि जे रामकेँ आराध्यदेव मानलक । रामानन्दी सम्प्रदायमे जातिभेद नहि रहय । कहल जाइछ जे दुनियाकेँ सुनेबाक उद्देश्यसँ स्वामी रामानन्द गाछपर चढिकय नारा देलखिन — जात पात पूछे नहि कोई, हरिको भजे सो हरिका होई । संसारसँ विरक्त वैराग्यकेँ ग्रहण कयल स्वामी रामानन्दक प्रथम बारहगोटा शिष्य सभमे अनन्तानन्द, भावानन्द, सेन, धाना, नाभादास, नरहर्यानन्द, सुखानन्द, कबीर, रैदास, सुरसुरानन्द, सुरसुरी र पद्मावती छलथि । एहि सभमे कबीर आर रैदासकेँ निर्गुण रामकेँ मानिकय अपन–अपन पन्थ विकास कयलनि जखन कि आर शिष्यलोकनि साकार (सगुण) रामक अनुयायी भेलाह । हिनका लोकनिक मध्यक एक नाभादासक एक शिष्य अग्रदास (अग्रअली, अग्रस्वामी) द्वारा सतरहम शताब्दीमे मध्यप्रदेशक रैवासा स्थानमे जाकय रसिक सम्प्रदायक विकास कयलनि । कृष्ण परम्परामे राधाकेँ मुख्य मानिकय विभिन्न सम्प्रदाय विकसित भेल जेना अग्रदास सीताकेँ सर्वौच्च मानिकय रसिक सम्प्रदायक मत विकास कयलनि । एहि सम्प्रदायमे सीता प्रति साख्य (सखि) भाव राखिकय श्रृङ्गारीक भावमे समेत आराधना कयल जाइछ । यैह अग्रदासक शिष्य परम्परामे एक किल्हस्वामीक प्रपौत्र शिष्य छलाह सुरकिशोरदास । सुरकिशोरदास भारतक मध्यप्रदेश प्रान्तक लोहागढ नामक गाममे एकटा मन्दिरमे पुजारी छलाह । जे ताहि समयक मुगल शासक औरङ्गजेबक धार्मिक असहिष्णुता आर दमनक कारण ओतय सँ पलायन करय लेल बाध्य भेल छलाह ।
सतरहम शताब्दीमे गोस्वामी तुलसीदासक रामचरितमानस द्वारा राम आर सीताक कथाकेँ व्यापक विस्तार देलक आर सीताकेँ बेटीक भावमे मानिकय आराधना करबाक रसिक सम्प्रदायकेर अनुयायी सुरकिशोरदास सीताक नैहर मिथिला खोजैत जनकपुर एलाह । सुरकिशोरदासकेँ जनकपुर खोज करबाक प्रेरणा निश्चितरूपमे अयोध्यामे रामभक्त लोकनि द्वारा रामक जीवनसंग सम्बन्धित स्थलक खोज करबाक अभियानक अङ्ग छल, जेकरा लेल ओ अपन आध्यात्मिक भावसँ प्रेरित भेलाह । एकरा हम सब अयोध्याक तेरहकोसी परिक्रमा आर अयोध्या महात्म्य नामक ग्रन्थसँ जनकपुरमे पन्द्रह दिनक परिक्रमा आर मिथिला महात्म्य ग्रन्थ केर तुलना कय सकैत छी ।
बाहिरी दुनियाक वास्ते जनकपुरधाम सतरहम शताब्दी धरि अल्पपरिचित छल । सुरकिशोरदास आर हुनक शिष्य लोकनि द्वारा भारतक अयोध्या, मध्यप्रदेश आर उत्तरप्रदेशक विभिन्न स्थान मे जाकय जनकपुरक प्रचार कयल गेल । जनकपुरकेँ पहिल बेर व्यापक रूपमे प्रचारित करबाक श्रेय अयोध्यासँ प्रकाशित ‘श्री महाराजा चरित्र’ नामक पुस्तककेँ जाइत अछि । सन् १८०५मे लेखन सम्पन्न भेल एहि पुस्तकक रचनाकार अयोध्या बारास्थानक सन्त रघुनाथदास छलाह । एहि पुस्तकमे जनकपुरक प्रायः सबटा महत्वपूर्ण मन्दिर आर पोखरी सभक उल्लेख अछि । एहिमे जानकी मन्दिर, रामचन्द्र मन्दिर, जनक मन्दिर, रत्नसागर, गंगासागर, अरगजा, धनुषासर, दशरथ कुण्ड, लक्ष्मण कुण्ड, आदिक चर्चा अछि । ई पुस्तक अरगजा आ अङ्गराग सरक चर्चा महत्वपूर्ण रूपमे केने अछि, जेकरा अनुसार सीताक विवाहमे एहि पोखरीमे अङ्गराग अर्थात् उबटन तैयार कयल गेल छल । तहिना सम्भव अछि जे धनुभङ्गक समय धनुषक एकटा भाग आकाश दिश स्वर्गमे आर दोसर भाग उड़िकय जनकपुर सँ बारह माइल उत्तर धनुषाधाममे खसबाक कथा प्रसार करबाक श्रेय एहि पुस्तककेँ जाइत अछि । एहि पुस्तक द्वारा हालक जानकीमन्दिरकेँ जनक दरबार आर एकर आगूक बड़का मैदान होयबाक आर ओत्तहि शिवधनुष राखल जेबाक बात कहल गेल अछि । तहिना शिवधनुष प्रदर्शनी स्थलमे आनय सँ पहिने धनुषसागरमे राखल जेबाक आर ओत्तहि सँ प्रदर्शनीस्थल धरि अनबाक बात कहल गेल अछि । एहि पुस्तकमे धनुषाधाममे बाघ, भालू, हाथी, गैँंडा, साँढ़ आदि घुमैत रहबाक कारण धनुषाधाम जाइत समय सावधानीपूर्वक जेबाक लेल सचेत करायल गेल छैक । तहिना एहि पुस्तक द्वारा गिरिजास्थान (सीता जतय फूल लोढथि आ गिरिजाक पूजा करथि, हाल ई भारतक मधुबनीजिलामे पड़ैत अछि – फूलहर) आर बिसौल (गोटेक लोकनिक मतमे विश्वामित्रक आश्रम, जनकपुरक लोकप्रिय पन्द्रहदिना परिक्रमाक अन्तमे पड़यवला स्थान, हाल भारत मधुबनी जिलामे पड़ैछ) केर बारे मे सेहो चर्चा कयल गेल अछि ।
प्रारम्भमे सेनवंशी शासक लोकनि सँ पोषित जनकपुरकेँ शाहवंशी शासक लोकनि द्वारा आध्यात्मिक स्थलकेर रूपमे सम्मान देल गेल । पृथ्वीनारायण शाह द्वारा सन् १७६२मे मकवानपुर कब्जा कयलाक बाद तत्कालीन महोत्तरीमे पड़यवला जनकपुर सेहो शाहवंशी शासनक मातहतमे गेल । शाहवंशी शासक मध्य रणबहादुर शाह द्वारा धनुषाधामकेँ कुशेबिर्ता जमीन देल गेल आर मन्दिर निर्माण करय लगौलनि । विक्रम सम्वत् १९९१ सालक महाभूकम्पमे जानकीमन्दिर बाहेक जनकपुरधामक प्रायः सब मन्दिर सभ खैस पड़ल छल । बाद मे तत्कालीन राणाशासक लोकनि द्वारा मन्दिर सभक निर्माण करायल गेल । एतय रोचक जानकारी कि भऽ सकैत अछि जे महाभूकम्पसँ पहिने राममन्दिर दुइतल्लाक छलय । भूकम्प बाद वर्तमान एकतल्ला मन्दिर निर्माण कयल गेल अछि ।
जनकपुरमे लागयवला मेला सभ आर सन् १९३४मे जनकपुर–जयनगर रेलकेर विकास सँ जनकपुरक विकासमे चौतर्फी मदैद कयलक अछि । जनकपुरक ऐतिहासिकता एक हजार वर्षक सहजे खोजल जा सकितो कुवारामपुरमे भेटल चमकीला काला पत्थरकेर विष्णुमूर्ति आर महदैयामे भेटल कुषाणकालीन सिक्कासभ सँ एहि मिथकीय शहरक ऐतिहासिकता आरो बेसी गहींर धरि पहुँचबाक संभावना अछि। लेकिन एहि निमित्त जनकपुरक प्राचीन स्थल सभक उत्खनन आवश्यक अछि।
(जनकपुरटुडे दैनिक, ०७५,मङ्सिर २५गते प्रकाशित)