स्वाध्याय आलेख
कुण्डलिनी: एक परिचय

डिस्कवरी चैनल पर प्रसारित होयवला एक कार्यक्रम – ‘The Mind’ केर अन्तर्गत एक बेर कहल गेल छल जे दुनियाक श्रेष्ठतम बुद्धिजीवी, विचारक, दार्शनिक आदि सेहो अपन दिमागक एक-लाखवाँ हिस्सा सँ सेहो कम केर शक्तिक प्रयोग अपन जीवन मे कय पबैत छथि। आर ई आश्चर्यजनक सत्य थिक। एहि वैज्ञानिक निष्कर्ष सँ मस्तिष्कक विराट शक्तिक एकटा अंदाज सहजहि लगैत छैक। मुदा मानव शरीर मे एकमात्र मस्तिष्कहि टा नहि जे विलक्षण आर अनन्त शक्ति सँ सम्पन्न अछि। मन सेहो अछि, प्राण सेहो अछि, ऊर्जा सेहो अछि, चक्र सेहो अछि, जे मस्तिष्कक तुलना मे अधिक सूक्ष्म, अधिक शक्तिशाली, अधिक अद्भुत आर अधिक रहस्यपूर्ण छैक। फेर तखन पूरे शक्ति केँ गनायब कहू जे कोन तरहें सम्भव हो!
एहि समस्त सूक्ष्म व स्थूल शक्ति केँ प्रसारित एवं चैनेलाइज्ड करबाक प्रणाली केँ ‘योग’ कहल जाइछ। जेना कि नामे सँ स्पष्ट भऽ जाइत अछि, योग केर अर्थ होइत छैक जोड़नाय वा बढेनाय।
ई सबटा शक्ति मे प्रमुख आर अत्यंत विलक्षण अछि ‘कुण्डलिनी’। कुण्डलिनी शक्ति केँ जागृत कय उपर्युक्त वर्णित और एकर अलावो समस्त शक्ति केँ सहजहि बढायल जा सकैत अछि। एहि मे सँ कोनो शक्ति कुण्डलिनी शक्ति केर समकक्ष नहि अछि। कुण्डलिनी अकेले एहि सब सँ बहुत आगू, बहुत ऊंच, बहुत व्यापक आर बहुते अधिक प्रभावशाली अछि, अद्वितीय अछि।
नाभि शरीरक केन्द्र थिक। एतहि सँ सब नस-नाड़ी पूरा शरीर मे पसरैत अछि। एतहि सँ गर्भ सेहो माय सँ जुड़ल रहैत अछि आर वृद्धि पबैत अछि। ई अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान थिक। रावण केर नाभि मे अमृत होयबाक गूढ संकेत नाभि केँ सर्वाधिक नाजुक मर्म सिद्ध करैत अछि। आयुर्वेद मे सेहो नाभि केँ महत्वपूर्ण आ मर्म होयबाक बात स्वीकारल गेल अछि। कुंगफू नामक युद्धकला मे विपक्षी केर मर्म (शरीरक नाजुक अंग सभ) पर प्रहार करबाक समय अंतिम आ निर्णायक (मृत्युदायक) प्रहार नाभिये पर कयल जाइत छैक। तैँ नाभि अत्यंत महत्वपूर्ण अछि।
नाभिक बाद हृदय आर मस्तिष्क सेहो महत्व रखैत अछि। कियैक तँ रक्त संचरण (ऊर्जा सप्लाई) तथा नियंत्रण, संचालन आदिक कार्य क्रमश: हृदय ओ मस्तिष्क टा करैत अछि। शरीर-रचनाक दृष्टि सँ सेहो नस नाड़ीक सर्वाधिक गुच्छा एहि तीन केन्द्र – नाभि, हृदय एवं मस्तिष्क मे होइत छैक।
एहि तीन केर अलावा कण्ठ सेहो अत्यंत महत्वपूर्ण अछि। कियैक तँ एहि संकीर्ण स्थान सँ मस्तिष्क आ समस्त ज्ञानेन्द्रिय केँ रक्त पहुँचाबयवाली नाड़ी गुजरैत अछि। नाक, कान, आँखि, जीह – ई चारू ज्ञानेन्द्रिय कंठ सँ ऊपर अछि। मात्र एक गोट ‘त्वचा’रूपी ज्ञानेन्द्रिय समस्त शरीर मे उपस्थित रहैत अछि। एहि समस्त महत्वपूर्ण घटक केँ ऊर्जा, रक्त आ संदेश पहुँचेबाक मार्ग कंठहि थिक। कंठहि सँ श्वांस, जल आ भोजन आदि नीचाँ आबिकय सौंसे शरीर केँ प्राप्त होइत छैक। कंठ मस्तिष्क आ ज्ञानेन्द्रिय केँ शरीर सँ जोड़िकय राखयवला सेतु थिक, अत: महत्वपूर्ण होयबाक संग-संग शरीरक एक गोट ‘मर्म’ सेहो थिक।
गुदा आर ज्ञानेन्द्रिय केर बीचक स्थान, शरीर केर केन्द्रिय आधार भेला सँ ‘मूलाधार’ सेहो कहल जाइत अछि। प्रजनन सामर्थ्यक दृष्टि सँ सेहो ई भाग अत्यंत महत्वपूर्ण अछि। मर्म मात्र गुरुत्वाकर्षण केर सीधा सम्पर्क मे आबयवला आधार थिक।
एतय शरीरक एहि मर्म केँ गनेबाक विशेष कारण अछि। शरीर मे स्थित ‘सातो चक्र’ एहि मर्मक बीच स्थित अछि। एहि सभ केँ आपस मे जोड़बाक काज करैत अछि मेरुदण्ड (रीढक हड्डी) जाहिपर पूरा शरीर केर संतुलन आ संचालन आधारित रहैत अछि। एकर आरम्भ मूलाधार केर समीप सँ होइत अन्त मस्तिष्कक समीप धरि रहैत अछि। तैँ ई रीढक हड्डी सेहो अत्यंत महत्वपूर्ण अछि। योग विद्या या कुण्डलिनी जागरण केर क्रिया मे तँ ई एकदम्मे महत्वपूर्ण छैक। कियैक तँ यैह कुण्डलिनीक मार्ग सेहो थिक। एहि पर अलग सँ चर्चा कयल जायत। एहि तरहें, शरीर रचना विज्ञान, अध्यात्म विज्ञान आर योग विद्या आदि समस्त दृष्टि सँ मूलाधार, नाभि, हृदय, कंठ, मस्तिष्क आ मेरुदण्ड अत्यंत प्रमुखता सँ महत्वपूर्ण अछि।
शरीर मे मौजूद सातो चक्र एहि प्रमुख अंगक बीच स्थित अछि तथा यैह कुण्डलिनी शक्तिक प्रवाहक मार्ग सेहो थिक। एकरा आरो नीक सँ बुझबाक लेल चित्रक सहारा लय सकैत छी। चित्र मे सातो चक्रक स्थान तथा कुण्डलिनी शक्ति संचालनक मार्ग हमरा लोकनि स्पष्ट रूप सँ देखि सकैत छी। ऐगला दिन एहि चक्र सभक संछिप्त परिचय उपरान्त पुन: कुण्डलिनीक चर्चा कयल जायत।
लेखक: विवेक श्री कौशिक
मैथिली अनुवाद: प्रवीण नारायण चौधरी
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