मिथिलाक लोकपाबैन आ लोकजीवन मे समानताक अनुपम दृष्टान्त सामा-चकेवा पाबैन मे

इनरुवा मे उमड़ल मौलिकता सँ भरल सन्देशक संग सामा चकेवा पबनैती थारू एवं अन्य मिथिला जनसमुदाय
सामा-चकेवाक विदाई करैत सब भावुक बनि गेल मिथिला मे
 
गाम-गाम केर दाय-माय लोकनि विगत १० दिन सँ सामा-चकेवा, सतभैयाँ, सुग्गा, मेना, तितिर, बटेर, कुकुर, चुगला, आर हरियर-हरियर मिथिला प्रदेश मे रहयवला विभिन्न चरा-चुरुंगीक मूर्ति बनाकय ‘सामा-चकेवा’ केर नैहर आगमन पर जे अलग-अलग एपिसोड यानि जेना माँ-पिताक घर मे विवाहित बेटी अपन पतिक संग अबैत अछि आर पूरा परिवार मे एकटा प्रसन्नताक माहौल बनैत छैक, किछु ताहि चाव सँ भरिकय स्त्री-समाज द्वारा सामा-चकेवाक स्वागत आ सम्मान कयल जाइत अछि। पूरा खिस्सा-पिहानी आ कनियाँ-पुतराक नाटक जेकाँ सामा-चकेवा आ विभिन्न पात्र सभक संग लगभग १० दिनक नाटक होइत छैक। आर काल्हि कार्तिक पूर्णिमाक अवसर पर सामा-चकेवा केँ खेतक कोरल माटि मे मिलाकय विसर्जन कयल गेल। एहि अवसर पर दाय-माय सब विभिन्न सामा-चकेवा सँ जुड़ल लोकगीत गबैत छथि। सामा-चकेवा कि खेती, कि पहिरती, कतय घुमती, कि बजती, केकरा लेल कि सनेश देती, भाइ सब केँ विशेष आशीर्वाद कोना देती…. किछु एहि सब बातक महत्वपूर्ण वर्णन करैत दाय-माय सब एकदम भावुक बनिकय माटिक मूर्ति मे प्रत्यक्ष सामा-चकेवा केर दर्शन करैत आध्यात्मिक चेतना ग्रहण करबाक ई अत्यन्त विलक्षण परिपाटी बुझाइत अछि। ई संकेत करैत अछि याज्ञवल्क्यक ओहि विशेष पंक्ति केँ जाहि मे ओ कहने छथि जे एतुक लोकजीवन आ परम्परा वेद केँ प्रत्यक्ष जिबैत अछि।
 
वर्तमान घोर कलियुग आ मिथिलाक जनमानस पर पड़ि रहल लोकपलायनक प्रभाव सँ ई महत्वपूर्ण पाबैन आब वैह रीति-रेबाज मे भले नहि मनाओल जाय, लेकिन सामा-चकेवाक रेडीमेड मूर्ति कीनिकय अपन महत्वपूर्ण परम्परा केँ शहरो मे जिबैत छथि। एहि वर्ष सेहो पूरे नेपाल आ भारत केर विभिन्न शहर-नगर मे रहनिहार मैथिल जनजाति-जनमानस ई पाबैन विशेष रूप सँ मनौलक अछि। मिथिलाक थारू समुदाय जे नेपाल मे नीक संख्या मे रहैत छथि, हुनका लोकनि द्वारा एहि पाबनिक मौलिक रूप केँ जीवन्त होयबाक कइएक उदाहरण देखल जा सकैत छैक। अपन विशेष पहिरन आ गहना मे सजल थारू समुदायक माय-बहिन-बेटी बड़का-बड़का माफा सजाकय सामा-चकेवाक विदाई समारोह सामूहिक गान आ नृत्य करैत आयोजित करैत छथि। सामा-चकेवा ओना तऽ घर-घर मे बनैत अछि मुदा राति दोसर वा तेसर पहर मे सब सखी-बहिनपा लोकनि मिलिजुलि कोनो खेत मे अथवा पोखरीक महारपर एकठाम दिया बारिकय गोलाकार मे बैसि अपन-अपन चंगेरा मे सामा-चकेवा सहित सब पात्रक मूर्ति सजाकय दिनक अनुसार विधि-व्यवहार करैत ई पाबैन मनबैत छथि। एहि मे नहिये कोनो पंडित चाही, नहिये कोनो मंत्रोच्चारणक जरूरत छैक, बस भावना सँ देवता केँ प्रसन्न करबाक ई विलक्षण परम्परा मिथिलाक लोकमानस मे युगों-युगों सँ देखाय दैत अछि।
 
सामाक विदाई पर गाओल जायवला एकटा गीतक मिठास मे कियो डूबि सकैत अछि, गौर करू:
 
गे माई दुभिया भोजन करू सामा हे चकेवा लागि गेल पान के दोकान
गे माई सेहो पान खेलनि भैया से सभे भैया रंगि गेल बतीसो मुख दाँत
 
धान भोजन करू सामा हे चकेबा लागि गेल सिनुरक दोकान-२
गे माई, सेहो सिनुर लगबथि भौजो से ऐहब भौजो जुगे-जुगे बढनु अहिबात
गे माई दुभिया भोजन…
 
आ गे डिहुली, सामा जाय छै सासूर, किछु गहना चाही गे डिहुली
आहे जाहु हे सामा, जाहु हे चकेबा, भैया सब के आशीष देने जाउ
हिलि लिअऽ मिलि लिअऽ संग रे सहेलिया, आब सामा जाय छै दूर देश
 
कथी केने एलहुँ सामा, कथी केने जाय छी, पोरकाँ पलटि फेर आयब
जीबह जीबह भैया सब केँ कहि दिअ, जीबू भैया लाख बरिस
जीबू भैया लाख बरिस…. जीबू भैया लाख बरिस
 
वाह! मिथिलाक सभ्यताक पूर्णता पर गर्व होइत अछि। मैथिली गायिका पूनम मिश्र केर आवाज मे यू-ट्युब पर ई गीत सुनल जाउ:
 
 
सुनू आ आनन्दित होउ। काल्हि सुन्सरी आ मोरंग केर अनेकों स्थान पर आमजनक समूह द्वारा जाहि भव्यताक संग सामा विसर्जन करैत देखल तेकर आनन्द सँ सराबोर छी।
 
जय मिथिला – जय जानकी!!
 
हरि: हर:!!