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कौआ आ मोर केर ओ कथा जेकर नैतिक शिक्षाक प्रासंगिकता आइ किछु बेसी बढल देखाइत अछि

नैतिक कथा

(संकलन व अनुवाद: प्रवीण नारायण चौधरी)

कौआ आ मोर

एक दिन एक गोट कौआ जंगल मे मोर केर बहुतेरास पाँखि एम्हर-ओम्हर खसल देखि प्रसन्न होइत कहय लागल –
 
“वाह भगवान्!! बड पैघ कृपा केलहुँ अपने जे हमर मोनक बात सुनि लेलहुँ। हम एखनहिं ई पाँखि पहिरिकय खूब सुन्दर मोर बनि जाइत छी।”
 
एकरा बाद कौआ मोर केर पाँखि अपन पूच्छर मे, अपन माथ पर पहिरि लेलक। पुन: अपन नव रूप देखिकय बाजल –
 
“आब तऽ हम मोरो सँ बेसी सुन्दर बनि गेलहुँ। आब ओकरे सभक पास चलिकय ओकरा लोकनिक संग केर आनन्द मनबैत छी।”
 
तखन ओ बड़ा अभिमान सँ मोर सभक सोझाँ पहुँचि गेल। ओकरा देखिते देरी मोर सब ठहाका मारिकय हँसय लागल। एकटा मोर कहलकय –
 
“कनी देखहीन एहि दुष्ट कौआ केँ। ई हमरा सभक टूटल-फेकल पाँखि लगाकय मयूर बनय चलल अछि। लगा एहि बदमाश केँ चोंच आ पंजा सँ ठोकर…!”
 
ई सुनैत देरी सब मोर ओहि कौआ पर टूटि पड़ल आर मारि-मारिकय ओकरा अधमरा बना देलक।
 
कौआ भागल-भागल दोसर कौआ सभक पास पहुँचिकय मोर सभक दुर्व्यवहारक शिकायत करय लागल। ताहि पर एकटा बड़-बुजुर्ग कौआ बाजल –
 
“सुनय जाय गेलहक हौ एहि पतितक बात… ई अपन कौआ समाज (मूल पहिचान) केर मजाक करैत छल आर मयूर बनबाक लेल पागल रहैत छल। एकरा एतबो ज्ञान नहि छैक कि जे प्राणी अपन जाति सँ संतुष्ट नहि रहैछ ओ हर जगह अपमान पबैत अछि। आइ ई मयूर सब सँ पिटाइ खेलाक बाद हमरा लोकनि सँ मिलन करय लेल आयल अछि। भगाबय जाउ एहि धोखेबाज कौआ केँ।”
 
एतेक सुनैत देरी सब कौआ मिलिकय ओहि कौआक नीक जेकाँ रामधोलाइ कय देलक। आब ओहि कौआ केँ अपन गलतीक ज्ञान भऽ गेलैक जे दोसरक नकल कय केँ नीक बनबाक शख कतेक महंग पड़ैत छैक।
 
कहानीक सन्देश यैह अछि जे ईश्वर हमरा लोकनि केँ जाहि रूप और आकार मे बनेलनि अछि, हमरा सब केँ ओही मे संतुष्ट रहिकय अपन कर्म पर ध्यान देबाक चाही। कर्महि सँ महानताक द्वार खुजैत छैक।
 
ई कथा संभवत: कक्षा दूसरा कि तीसरा मे पढने रही।
 
वर्तमान समय धरि ई कथा अत्यन्त प्रासंगिक लगैत अछि। अपन मौलिकता केँ स्वयं अपमानित कय अपन पहिचान केँ बरगलेबाक कुकृत्य करैत अछि कतेको लोक। एतेक तक कि जनताक चुनल प्रतिनिधि जे विधायिका समान महत्वपूर्ण ओहदा पर विद्यमान अछि सेहो सब एहि तरहक किरदानी करैत अछि। एहि कथाक सारवस्तु सब मनन करय।
 
हरि: हर:!!

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