चनमा द्वारा अड़हुल केर आयोजन महोत्तरी मिथिला नेपाल मे विजयादशमीक दिन

महोत्तरी, मिथिला, नेपाल। अक्टूबर १५, २०१८. मैथिली जिन्दाबाद!!

काठमांडूक बाद मैथिली साहित्यिक-सांस्कृतिक विमर्श महोत्तरी मिथिला नेपाल मे

किछु मास पूर्व मे साहित्यिक विमर्शक संग लोकसंस्कृतिक विभिन्न विधा पर अलग-अलग सत्र मे कयल गेल विद्वत् परिचर्चा गोष्ठी ‘चनमा’ जेकर आयोजन नेपालक राजधानी काठमांडू मे कयल गेल छल, आर क्रमिक रूप सँ ‘चनमा’ नामक आयोजन समूह आब ऐगला कार्यक्रम एहि समूहक अगुआ श्रीमती विभा झा केर निज गाम ‘महोत्तरी’ मे करय जा रहल अछि। मयूर फोसेट्स केर सह-आयोजना मे संपन्न चनमा पुनः दोसर कार्यक्रम ‘अड़हुल’ नाम सँ करत ई जनतब फेसबुक पर प्रसारित समाचार एवं परिकल्पना सँ स्पष्ट होइत अछि। विदित हो जे मयुर फोसेट्स केर संचालक तथा मैथिली भाषा-साहित्यक दशा-दिशा मे प्रगतिशीलता लेल चिन्तन कय रहली मैथिली कवियित्री विभा झा निरन्तर भाषा आ संस्कृति लेल व्यक्तिगत प्रयास कय रहली अछि जेकर चर्चा आइ समूचा नेपाल आ भारत मे कयल जा रहल अछि। स्वयं विभा झा केर मत छन्हि जे आइ जाहि तरहक प्रयास ओ कय रहली अछि, काल्हि वैह प्रयास आरो लोक करय आ अपन मातृभाषा मैथिलीक साहित्यक संग समाज, संस्कृति आदिक अवस्था मे नित्य विकास आनय।

कि सब होयत ‘अड़हुल’ कार्यक्रम मे

कार्यक्रमक सम्बन्ध मे अलग-अलग समय उपलब्ध करायल गेल जानकारी जे श्रीमती विभा झा केर फेसबुक अपडेट्स सँ स्वतः स्पष्ट अछि ओ निम्न राखि रहल छीः

२३ सितम्बर, २०१८ केर घोषणाः

“चनमाक अग्रिम आयोजन अछि – अड़हुल। ई मैथिली साहित्य पर केन्द्रित एकगोट एकदिवसीय आयोजन होएत। जाहि मे मुख्यतया तीन गोट वैचारिक सत्र क्रमशः १. मैथिली साहित्यक समकालीन परिदृश्य : संकट आ समाधान २. मिथिलाक सांस्कृतिक चेतना : दशा ओ दिशा ३. मैथिली कविताक नव्यतम स्वर आ अपेक्षा आ ताहि संगे एकगोट मिथिलाक लोकप्रिय कविलोकनिक काव्य पाठ आयोजित होएत।

आयोजन : अड़हुल/ दिनांक: १९ अक्टूबर, कातिक २ गते विजयादशमी / आयोजक:चनमा” 

१३ अक्टूबर, २०१८ केर घोषणाः

कोनहुँ भाषाक साहित्यक समृद्धताक सम्यक परिचितिक हेतु जहिना ओकर साहित्यक गौरवपूर्ण परम्परा, विराट ऐतिहासिक पृष्ठभूमिक बेगरता होइत छैक तहिना मूल्यांकन करैत एहि गप्पक सेहो धिआन राखल जाइत छैक जे ओकर वर्तमान परिदृश्य सेहो कतेक सुसम्पन्न अछि। मनीषी लोकनि एहि सँ इहो अनुमान करैत छथि जे एहि भाषा-साहित्यक भविष्य कतेक उज्ज्वल होमए जा रहलैक अछि।

आचार्य रमानाथ झा एकठाम लिखैत छथि जे जतए धरि मानवताक मूल भावनाक स्रोतक प्रश्न अछि, विद्यापतिक गीत सब दिन नूतन रहत कारण ओ मौलिक सत्य अछि। सब दिन सुंदर रहत। किन्तु आधुनिक कलखण्डक जे अस्तव्यस्त जीवन अछि तकर प्रतिबिम्बन मात्र ओहि माध्यम सँ कोना सम्भव भए सकत ?

हमरा ई कहैत अपार गौरवक अनुभव होइत अछि जे अदौ सँ मैथिलीक बेस समृद्धशाली काव्य परम्परा रहलैक अछि. जतए कवि कोकिल विद्यापति हमर एहि समृद्धशाली काव्य गगनक पूरब सँ सुरुज सन हमरालोकनि कें इजोतक उत्स दैत छथि तहिना बादक कालखण्ड मे चंदा झा, गोविंद दास, सीताराम झा, सुमन, किरण, यात्री, मधुप, राजकमल, सोमदेव, कुलानन्द मिश्र, जीवकांत सन एक सँ एक अमर काव्य प्रतिभा हमरालोकनिक एहि काव्य गगन मे जाज्वल्यमान नक्षत्र जकाँ जगमग करैत रहलनि अछि। ओकरा आर सुंदर, आर प्रासंगिक बनबैत रहलनि अछि। ई हमरालोकनिक सौभग्य थिक जे वर्तमानहुँ मे एक संग चारि सँ पांच पीढ़ी मैथिली कविताक विराट काव्य परम्परा मे सदिखन नव-नव आयाम जोड़ि रहलनि अछि।

एहि क्रम मे ‘चनमा’क नव्यतम उपक्रम ‘अड़हुल’ “मैथिली कविताक नव्यतम स्वर आ अपेक्षा” विषय पर एकगोट परिसंवादक आयोजन करए जा रहल अछि। आबी एहि मादे हमरालोकनि कनेक गम्भीरताक संग विचार करी, एक-दोसरा सँ संवाद करी आ अपन उज्ज्वल काव्य भविष्यक निर्मितिक लेल एहि अनुष्ठान मे सहयोगी-सहभागी होए। सादर आमंत्रण।

११ अक्टूबर २०१८ केर घोषणा

मैथिली साहित्य प्राचीन कालहिं सँ बेस समृद्धशाली रहल अछि। बहुत प्राचीनहिं सँ रचनाकार लोकनि मैथिली भाषा अपन अभिव्यक्तिक माध्यमक रूप मे चुनैत रहलनि अछि। ई गप्प फराक जे ओहि काल खंडक सिद्ध साहित्य अथवा डाक रचनावलीक अतिरिक्त आन रचनादि हमरालोकनिक मध्य उपलब्ध नहि अछि, मुदा वर्णरत्नाकरक उत्कृष्टता एहि बातक पुष्टि करैछ जे ओहि सँ पूर्वहूँ मैथिली मे साहित्यिक रचना होइत रहल अछि।

तकर उपरांत जानकीक एहि भू-भाग पर महाकवि कवि कोकिल विद्यापतिक प्रादुर्भाव एहि भाषा-साहित्यक हेतु चमत्कारक कार्य कएलक। विद्यापति, जनिका हेतु स्वयं भगवान शंकर उगनाक भेष धए मृत्युलोक पर अवतरित भएलनि, एहि भाषा-साहित्यक पसार जगत भरि मे कएलनि। ई हमरालोकनिक हेतु गौरवक गप्प थिक जे अद्यावधि विद्यापति हमरालोकनिक आइडेंटिटी पुरुष बनल छथि, जनिका स्मरण कए हमरालोकनि सदिखन उपकृत होइत रहैत छी।

कहबाक तत्यपर्य ई जे हमरालोकनिक भाषा-साहित्यक बेस समृद्धशाली इतिहास रहल अछि। एहि मध्य महाकवि विद्यापति सँ आइ एक्कीसम शताब्दी धरि एहि भाषा-साहित्यक सेवा मे एक सँ दैदीप्यमान नक्षत्र लोकनि अपन-अपन रचना पुष्प अर्पण करैत रहलनि अछि। जाहि आधार पर सदिखन हमरालोकनि गर्वान्वित होइत रहैत छी जे हमरा-अहाँक भाषा-साहित्य एतेक सम्पन्न-गौरवशाली अछि।

आह्लादक संग कहए चाहब जे एहि क्रम मे वर्तमान समय मे सेहो नितः बहुत किछु मैथिली साहित्य मे जोड़ल जा रहल अछि। विभिन्न आयुवर्गक हेंजक-हेंजक रचनाकर्मी लोकनि अपन सृजनशीलता सँ सदिखन मैथिली साहित्यक श्री वृद्धि मे यत्नशील छथि। तथापि ई हमरालोकनिक कर्तव्य थिक जे बेरु-कुबेरू अपन यथास्थिति पर चिंतन-मनन कए तकर समालोचना करैत चली। अपन वर्तमान परिदृश्यक जे-जे अवरोधक तत्व सब अछि तकरा बहार कए ओहि संकट पर फइल सँ विचार करी आ तदुपरांत ओकर समाधान निकाली।

एहि उद्देश्य सँ चनमाक एहि एकदिवसीय आयोजन ‘अड़हुल’ मे “मैथिली साहित्यक समकालीन परिदृश्य : संकट आ समाधान” विषय पर परिसंवादक आयोजन होमए जा रहल अछि। आबी सभ गोटें एकजुट भए उपरोक्त विषय पर मनन करी, चिंतन करी आ आयोजन कें सार्थक बनेबा मे सहभागी बनी। सादर आमंत्रण।

१० अक्टूबर २०१८ केर घोषणा

चेतनाक अर्थ भेल जागरूकता आ तेँ सांस्कृतिक चेतनाक अर्थ भेल ‘संस्कृतिक प्रति जागरूकता’। मिथिला मे पारम्परिक रूप सँ चलैत आबि रहल सांस्कृतिक मूल्यक सदिखन एकटा विशिष्ट महत्व रहैल अछि। सामाजिक समरसता आ आंचलिक विशिष्टताक बोधक हेतु एहि चेतनाक बनल रहब महत्वपूर्ण अछि। मिथिला प्राचीन काल सँ सांस्कृतिक केंद्र रहल अछि। एहिठामक भाषा, विध -व्यवहार, पाबनि -तिहार, गीत-नाद, साहित्य आ लोककला बहुत समृद्ध रहल अछि।

आइ एहि मादे विमर्श आवश्यक अछि जे एतेक गौरवशाली परम्पराक अछैत एहिठामक सांस्कृतिक आ सामाजिक संरचना शनैः शनैः पतनोन्मुख किएक होबए लागल ? एहिठामक भाषा आ विमर्श मे एतुक्का निजता किएक गौण भए गेल ? ओहि विशिष्ट सांस्कृतिक विरासत केँ अक्षुण्ण रखबाक लेल हमरालोकनि की कए रहलहुँ अछि ? इहो विमर्श आवश्यक अछि जे एकर निदान की ? जनचेतना मे अपन विशिष्टता केँ पुनर्स्थापन करबाक ब्योंत की ?

एहि आलोक मे मिथिलाक माटि -पानि, भाषा-संस्कार, परम्परा-व्यवहार आदिक मर्मज्ञ अध्येता लोकनिक संगोर करैत एहटा वैचारिक सत्र राखल गेल अछि : “मिथिलाक सांस्कृतिक चेतना : दशा आ दिशा” । एहि मे हमरा लोकनि अपन संस्कृतिक एखुनका अवस्था केँ देखैत ओहि सँ सम्बद्ध महत्वपूर्ण परिचर्चा करब। ई बुझबाक प्रयास करब जे वैश्वीकरणक एहि समय मे जखन की आंचलिक भाषा आ संस्कृति एकटा संक्रमण काल सँ गुजैर रहल अछि, हमरा लोकनिक अवस्था केहन अछि ? एकरा जोगने रहबाक लेल हमरा सभ लग कोनो रोडमैप अछि वा नहि ? जँ नहि तँ से की होएबाक चाही ?

एहन आओर बहुतों प्रश्न जे अहूँक मोन मे उठल होएत ओहि पर विस्तार सँ परिचर्चा करैत किछु सार्थक निष्कर्ष धरि हम सभ एहन विमर्शक माध्यम सँ पहुँच सकैत छी। इएह संस्कृति हमरा अहाँ केँ परिभाषित करैत अछि। एहि चेतना केँ आत्मसात करब अपना केँ भविष्यक लेल बचायब अछि। आउ किछु पूछी ,किछु मनन करी , किछु चिंतन करी आ सांस्कृतिक चेतनाक प्रति अपन कर्तव्य सँ एक दोसर केँ जगबैत रही। जगल रहब तँ बाँचल रहल। जय मिथिला।