
एहि बीच बहुत समय बस रिक्ते बीतल। मानसिक तौर पर जुड़ाव रहितो जा धरि लेखनीक माध्यम सँ लेखक-पाठक बीच जुड़ाव नहि रहत तऽ दु-तरफा मानू एकटा खाली स्थान ठाढ होयत आर एकरा पाटबाक वास्ते पुनः लेखक ओहिना किछु लिखिकय अपन पाठक संग आओत जेना रंग-बिरंगी फूलक रसपान करय लेल भँवरा फूलक पास अबैत अछि। पाठकक मोन लेखकक सम्बल होइत छैक। लेखक सदैव अपन पाठक केर हृदय मे रहय लेल उत्कंठा रखैत माथ घुमबैत-फिरबैत रहैत अछि जे आब कि नव लिखू जाहि सँ पाठकजन सेहो सन्तुष्ट रहता आ एकटा पहिल पाठक जे अपनहि ‘स्वत्व’ सँ निर्मित ‘स्वयं’ छी सेहो सन्तुष्ट रहत…. आर यैह सन्तोष ग्रहण करब आ प्रदान करब बीच यदा-कदा कोनो स्थिति-परिस्थितिक कारण रिक्त स्थान बनैत अछि। खैर…. आइ हम फेर काल्हिक ऐतिहासिक उपलब्धि सँ प्रेरित, पल्लवित, पुष्पित भऽ कनेक नव उत्साह आ ऊर्जा सँ भरल किष्किन्धाकाण्ड मे ओहि विन्दु पर पहुँचि गेल छी जतय बानरराज सुग्रीव केर दरबार मे हेरायल सीताक निस्तुकी पता लगेबाक लेल समुद्र लांघिकय लंका जेबाक प्रस्ताव पर विचार-विमर्श चलि रहल अछि…. ठीक जेना मिथिला हेरायल आइ हमरा लोकनि ताकि रहलहुँ अछि आर मिथिलावाद केँ स्थापित करबाक जी-तोड़ प्रयास मे लागल छी। तुलसीदासजीक निम्न चौपाई पर गौर करूः
4.30
अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा।।
जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सब ही कर नायक।।
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना।।
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।
राम काज लगि तब अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा।।
कनक बरन तन तेज बिराजा। मानहु अपर गिरिन्ह कर राजा।।
सिंहनाद करि बारहिं बारा। लीलहीं नाषउँ जलनिधि खारा।।
सहित सहाय रावनहि मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी।।
जामवंत मैं पूँछउँ तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही।।
एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई।।
तब निज भुज बल राजिव नैना। कौतुक लागि संग कपि सेना।।
कपि सेन संग सँघारि निसिचर रामु सीतहि आनिहैं।
त्रैलोक पावन सुजसु सुर मुनि नारदादि बखानिहैं।।
जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावई।
रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावई।।
भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहि जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करिहि त्रिसिरारि।।30(क)।।
नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक।
सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक।।30(ख)।।
अंगद अपन आत्मशक्ति सँ परिचित वीर कहैत छथि जे पार जायब हमरा लेल संभव अछि, वापस आबि सकब ताहि मे कनेक दुविधा जेकाँ लागि रहल अछि।
ताहि पर जाम्बवंतजी बड़ा विचारवान जेकाँ कतेक सुन्दर बात कहलनि से देखू – “अरे! अहाँ सब तरहें सक्षम छी। मुदा सभक नायके केँ पठेबाक एखन आवश्यकता नहि।”
आर फेर, आगू जाम्बवंतजी समान विचारवान आ विवेकी हनुमानजी सँ मुखातिब होइत कतेक सुन्दर वचन कहलनि से देखू –
“हे हनुमान, सुनू! अहाँ कि सोचिकय चुप बैसल छी? पवन केर तनय (पुत्र) आ बलो पवनहि केर समान, बुद्धि, विवेक, विज्ञान – सब किछुक निधान छी। रामहि केर काज लेल अवतार भेल अछि। कोन काज अहाँ लेल कठिन अछि एहि जग मे जे अहाँ सँ पार नहि पाओल जायत?”
एतेक सुनैत देरी पवनकुमार अपन आत्मबल सँ साक्षात्कार करिते कोनो ऋषिक देल शाप जे तोरा अपन बल बिसरा जेतौक ताहि सँ मुक्ति पबैत छथि आर ओ एकदम विशाल पर्वताकार शरीर मे प्रकट भऽ जाइत छथि। ओ बेर-बेर सिंहनाद करय लगैत छथि। सोना समान तेज सँ भरल चमकैत हुनक शरीर आर सिंह जेकाँ दहाड़ मारिकय ओ कहैत छथिन –
“वानर लोकनि! हम समुद्र केँ लांघि लंका केँ भस्म कय देब। सहाय सहित रावण केँ मारि देब आ एतय ओ समूचा त्रिकूट पहाड़हि उखाड़िकय आनि लेब। हे जाम्बवंतजी! हम अहाँ सँ पुछैत छी, कृपया उचित मार्गदर्शन करू हमर।”
आर फेर जाम्बवंतजी परमज्ञानी – महान् संत विचारधाराक राज-सलाहकार हुनका सँ कहैत छथिन, “अहाँ जाउ, सीता केँ देखि एतय हुनकर हालचाल कहय लेल जल्द आउ। तखन स्वयं राजीवनयन भगवान् राम अपन भुजाक बल सँ समस्त कपि सेनाक संग हुनका अनता।”
आर महाकवि तुलसीदासजी “छंद” केर प्रयोग करैत छथि रामचरितमानस मे जखन-जखन परम-अकाट्य सत्य जे स्वयं वेद द्वारा विहित अछि आर जेकरा कियो काटि नहि सकल आइ धरि… कहैत छथिः
“कपि सेना संग निसिचर केँ संघारिकय राम सीता केँ अनता। एहि पावन सुयश केँ समूचा त्रिलोक (तीन लोक) मे सुर, मुनि, नारद आदि लोकनि बखान करता। जेकरा सुनिकय आ गाबिकय बुझत से नर परम पद केँ पाओत। रघुवीर पद केर कृपा मधुकर (कल्याणकारी) होयत ई तुलसीदास गाबिकय कहैत छथि।”
आर फेर, तुलसीदासजी द्वारा रचित रामायण केर लेख्य विज्ञान ‘दोहा’ यानि ‘दुइ छथि’ ‘दो है’ – ‘सीता आ राम’ – मात्र यैह दुइ छथि बाकी किछु नहि – ताहि दोहा अन्तर्गत केर मधुर वर्णन देखू –
“समस्त भुवन मे जे नर वा नारी रघुनाथ केर कथा-गाथा सुनत तिनकर सब मनोरथ स्वयं त्रिसिरारि – त्रिपुरारी अपनहि पूरा करता।”
आर तहिना रामायण लेख्य विज्ञानक ‘सोरठा’ माने जे ‘सो रट’ – ‘ई याद कय ले’ शीर्षक मे तुरन्त तुलसीदासजी कहलनि अछि –
भगवानक राम केर शोभा नीलोत्पल तन स्याम केर शोभा करोड़ों सूर्यक समान तेजमान् अछि जिनकर नाम-गुण अघ खग बधिक सब कियो सुनैत अछि।
आइ यैह भगवान् राम केर शक्ति सीता आर हुनक मिथिला नहि जानि केहेन उपेक्षाक शिकार बनि गेल अछि आर न्याय लेल पाटलिपुत्र (पटना) ओ इन्द्रपुरी (दिल्ली) केर मुंहतकैया भऽ रहल अछि। तखन त एतुका सपुत आब हिम्मत कय केँ अंगदजी आ हनुमानजी जेकाँ आत्मबल पाबि गेल अछि से देखि केकर मोन नहि प्रसन्न होयत। लेकिन किछु महकारी-टीटकारीलाल सब एखनहुँ घरे बैसल गन्हायल सुजनीक तर सँ जे गंध मारैत छथि तिनका सब केँ अपन ओकादि पहिने सुधार करबाक जरूरत छन्हि, बात बुझि जाइथ। कोढिया चाहे हऽ…. अहाँ केँ जेहने-तेहने स्थिति मे दिन काटय के आदति पड़ि गेल अछि। कारण अहाँ ई बुझैत छी जे बाबू जतेक जमीन अरैजकय दय देला ताहि सँ अपन पेट भरिये जाइत अछि, घरवाली किछु मांगैत छथि त दरभंगा वा लहेरियासराय टावर पर सँ कीनि दैत छियन्हि, धिया-पुता केँ कोटा (राजस्थान) मे इंजीनियरिंग-मेडिकल के तैयारी लेल कोचिंग मे नाम लिखा अबैत छी, आब कि चाही…. से ई अंगद-हनुमान सब ओहेन चाहत सँ मिथिलावाद जिन्दाबाद नहि करैत छैक। ओकरा हेरायल अस्मिताक चिन्ता छैक, सनातन मिथिला आइ भूगोल मे कतय विलुप्त भऽ गेल अछि से ओ सब तकैया कय केँ पुनः अपन राज्य कायम करबाक लेल संघर्ष कय रहल छैक। अहाँ सब लंकाकाण्डक अक्षयकुमार आ बहुभट सब जुनि बनी, मात्र साकांछ कय रहल छी। पुलिस विभाग मे सिपाही आ जमादार बनिकय धियापुता केँ पटना मे फ्लैट कीनि देलियैक घूसक कमाई सँ तैँ अहाँ बड़ होशियार आ संघर्ष करयवला पुत्र सब बेकार… ई सब एटीच्युड केँ छोड़ू। फुस्टिकबाजी करबाक रहय त घरवाली, अपन बेटा, जीन्सवाली पुतोहु आ नाति-नातिन-पोता-पोती सब केँ नजदीक मे बैसाकय डाइनिंग टेबुल पर राति मे फुस्टिक मारू जे ‘जब हम तारापुर थाना में पोस्टेड थे न, तब जेतना कमरिया बाबा सब जाते थे तो रात में जागते रहो – जागते रहो हल्ला करते थे, काहे कि चारू बगल पाकेटमार न रहता था…।” बात बुझि गेल हेबैक! बेस त! फेर भेटब। हँ, छौंड़ा-माँरड़ि सब केँ खूब बधाई!