काज करनिहार केँ बेर-बेर नमन!!
…… आर ई देखू जे भारतीय काँग्रेस केर एक प्रखर प्रवक्ता संग बिहार विधान परिषद् केर सदस्य माननीय प्रेमचन्द्र मिश्र पुनः बिहार विधान परिषद् केर शून्यकाल मे सभापति समक्ष काल्हि २५ जुलाई एकटा अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रश्न रखलनि अछि –
शून्यकाल
माननीय सभापति महोदय,
विभिन्न मैथिली भाषा-भाषी संस्था एवं कतिपय अन्य माध्यम सँ हमरा सूचना भेटल अछि जे संविधानक अष्टम् अनुसूची मे शामिल रहलाक बादहु स्कूली पाठ्यक्रम सँ अनिवार्य विषयक रूप मे शामिल सूची मे आब मैथिली भाषा नहि अछि जखन कि बंगला आ फारसी भाषा शामिल अछि। ई आश्चर्यजनक एवं एक भाषाक प्रति भेदभाव व उपेक्षा केँ दर्शबैत अछि जखन कि राज्य करोड़ों लोक बोलचार मे मैथिली बजैत छैक।
जँ स्कूली पाठ्यक्रम मे मैथिली भाषाक पढाई नहि हेतैक तऽ ओकर अष्टम् अनुसूची मे शामिल हेबाक कि लाभ? जँ प्राथमिक आ माध्यमिक स्तर पर मैथिली भाषाक पढाइये नहि हेतैक, मैथिली शिक्षकक बहालिये नहि हेतैक आर एहेन स्थिति मे यूपीएससी परीक्षा मे मैथिली केँ हेबाक वा नहि हेबाक कि लाभ?
अतः हम शून्यकाल केर माध्यम सँ राज्य सरकारक ध्यान आकृष्ट करैत एहि सम्बन्ध मे तत्काल डेग उठेबाक लेल मांग करैत छी।
हस्ताक्षर – प्रेम चन्द्र मिश्र
सदस्य विधान परिषद्
उपरोक्त प्रश्न सँ अत्यन्त तार्किक आ सारगर्भित सवाल सरकारक सोझाँ राखल गेलैक अछि।
सच छैक जे प्राथमिक शिक्षा आ माध्यमिक शिक्षा मे जँ सरकार स्वयं मैथिली भाषाभाषी केँ पढाई सँ वंचित रखतैक तऽ सिर्फ उच्च शिक्षा केँ कोनो विद्यार्थी – कहू न सामान्य प्रतिभाक विद्यार्थी कोना अंगीकार-स्वीकार कय सकतैक। असाधारण वा उच्च जाति-वर्गक बच्चा सब यैह कारण अपन असाधारण क्षमता सँ ओकरा पकैड़ लैत छैक, मुदा पिछड़ा, दलित, न्युनतम् साक्षरताक वर्ग-समुदायक विद्यार्थी लेल तऽ ई आरो कठिन आ चुनौतीपूर्ण बात हेतैक आर ओ एहि जीवन कि ७ जीवन मे पर्यन्त बिना प्राथमिक-माध्यमिक शिक्षाक मैथिली भाषाक पढाई कएने बिना कोना यूपीएससी वा कोनो उपलब्धिमूलक कार्य मैथिली मे कय सकतैक। अतः मिश्रजीक ई सवाल पर सरकार नीक सँ ध्यान दैक ई अपेक्षा करब।
हँ, एकटा बातक अफसोस सेहो प्रकट करब। अफसोस कि, सवाल राखय चाहब एहि जनप्रतिनिधि लोकनि समक्षः
क. अपने लोकनिक सवाल सिर्फ मीडिया आ लोकक ध्यान अपना दिश खींचय लेल होएत अछि वा सच मे फोलो-अप सेहो कयल जाइत छैक?
ख. २०१४ मे माननीय संजय सरावगी, विधानसभा सदस्य द्वारा सेहो मैथिलीक सन्दर्भ मे प्रश्न पूछल गेल छलैक। लेकिन प्रगति कि? फोलो अप कि?
हम यैह अपेक्षा करैत छी जे प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मे मातृभाषाक मौलिक अधिकार जखन संविधानप्रदत्त छैक, जखन राज्य मे राजभाषाक हैसियत बाजल गेनिहार लोकक जनसंख्या अनुरूप होयबाक बात संविधानप्रदत्त छैक – तखन फेर अपने लोकनि द्वारा एहि मामिला मे कठोर सँ कठोरतम् विरोध सदन मे कियैक नहि होएत छैक? आ कि सिर्फ लौलीपप बँटैत मौकाक लाभ उठबैत छी अपने लोकनि?
अस्तु, गम्भीरता सँ जबाब देब अपन व्यवहार आ आचरण मे परिमार्जन कय केँ!
हरिः हरः!!