स्वाध्याय आलेखः भगवान् विष्णुक मत्स्यावतार
– भावानुवादः प्रवीण नारायण चौधरी
भगवान् विष्णु केर कुल दस अवतार मे सँ एक आ पहिल अवतार मत्स्य (माछक रूप) मे भेलनि, शास्त्र उल्लेख करैत अछि। दशावतार या भगवान् महाविष्णुक दस मुख्य अवतार केर रूप मे एकर वर्णन विभिन्न पुराण सभ मे कयल गेल भेटैत अछि। संस्कृत मे माछ केँ ‘मत्स्य’ कहल जाइत छैक, जे विष्णु द्वारा एहि रूप मे अवतार लेबाक कारण ‘मत्स्यावतार’ शब्द उल्लेख कयल गेल अछि।
पुराण मे वर्णित कथा अनुसार सत्ययुगक अन्त जे एक प्रलयंकारी बाढि सँ भेल ताहि मे महाविष्णु भगवान् मत्स्यक रूप मे अवतार लेलनि। मान्यता अछि जे मानव संग पृथ्वीलोकक समस्त जीव केर रक्षा हेतु भगवान् विष्णु माछक रूप मे अवतार लय ओहि प्रलयंकारी बाढि सँ मानवता ओ महान् शास्त्र-पुराण यथा वेद आदिक रक्षा कयलनि। समस्त हिन्दू धर्मक साहित्य मे एकरे पहिल अवतारक रूप मे वर्णन कयल गेल अछि, भगवानक अवतार लेबाक गाथा एहि मत्स्यावतार सँ आरम्भ मानल जाइत अछि। महाविष्णुक एहि अवतार मे चतुर्भुज विष्णुक सिर (ऊपरी भाग) आ धर (निम्न भाग) एक माछक रूप मे वर्णित अछि। दुइ हाथ मे शंख तथा चक्र, दोसर दुइ हाथ मे अभयदानक मुद्रा संग कमलक फूल आर एक गदा धारण करबाक चर्चा कयल गेल अछि।
मत्स्य अवता आ भगवान् विष्णुक मन्दिर
मत्स्य अवतारक कथा
किंवदन्ति कहैत अछि जे परा-पूर्व द्रविड़ काल मे एक राजा ‘सत्यव्रत’ नामक छलाह, जे बाद मे मनु सँ विख्यात भेलाह, ओ भगवान् विष्णु केर परम भक्त छलाह। एक दिन, कोनो नदी मे जखन ओ अपन हाथ धो-पखारि रहल छलाह ताहि समय एकटा छोट माछ हुनकर हाथ मे हेलिकय पहुँचि गेलनि। ओ अपन जानक रक्षा लेल हुनका सँ प्रार्थना केलकनि। राजा ओकरा एकटा शीशाक बर्तन मे पानि दय सुरक्षित राखि देलखिन। कनिकबे दिन मे ओ माछ बढिकय पैघ भऽ गेल। ओहि बर्तन सँ निकालिकय ओकरा एकटा पैघ टंकी मे राखि देलखिन, पुनः पैघ होएत गेलाक बाद ओतय सँ पोखरि, पोखरि सँ नदी आ नदी सँ समुद्र धरि राजा ओकरा पहुँचा देलखिन। वैह माछ यथार्थ मे भगवान् विष्णुक प्रतिरूप छल, जे राजा सँ कहलकनि जे बस आब ७ दिनक अन्दर एहेन प्रलयंकारी बाढी आओत जे कियो नहि बचत, पूरा जीवन-तंत्र नष्ट भऽ जायत।
ओ माछ राजा सत्यव्रत सँ कहलकनि जे जतेक तरहक जड़ी, बुटी, बीज, जीव, सप्तऋषि आदि केँ एकत्रित करू आ प्रतीक्षा करू। ओ माछ हुनका सुझाव दैत कहलनि जे एकटा खूब पैघ नाव केर निर्माण करू आर ताहि मे सब तरहक वनस्पति ओ जीव जे पृथ्वी पर उपलब्ध अछि ताहि सब सँ भरू, भगवान् विष्णु पुनः अहाँ संग उचित समय पर भेंट करय औता। एहि तरहें तैयार कयल गेल नाव केँ भगवान् विष्णुक ई मत्स्यरूप अपनहि सँ खींचिकय समुद्र मे लय गेलाह आर एहि नाव केँ अपनहि माथ पर उगल सींगनुमा आकार सँ बान्हिकय सुरक्षित रखलनि। अपेक्षा अनुसार भयानक बाढि आयल आर पूरे पृथ्वीलोक (ग्रह) मे विनाशकारी तबाही मचा देलक। कोहुना मनु आर हुनक धर्मपत्नी एवं समस्त जीव प्रजातिक संग्रहित नमूना (प्रतिनिधिमूलक उपस्थिति) जे ओहि नाव मे शरण लेने छल से सुरक्षित रहि सकल। ई तबाही-बर्बादी किछु वर्षक उपरान्त शान्त भेल, पुनः ओहि नाव केँ जमीनी भूभाग धरि खींचिकय पहुँचाओल गेल। कहल जाएछ जे तेकर बाद राजा आ रानी पृथ्वीलोक मे पुनः एक नव जीवन तंत्र केर शुरुआत ओहि नाव पर मौजूद जीव-प्रजातिक नमूना संख्या सँ कयलन्हि।
भागवत पुराण केर मुताबिक, उपरोक्त कथा मे आरो किछु अतिरिक्त वर्णन भेटैत अछि। एकरा अनुसार हयग्रीव नामक एक महादैत्य भेल छल जे ब्रह्माजीक शयन-समय मे हुनकर लिखल वेद चोरा लेने छल आर तेकरा महासागर मे कतहु खूब गहींर स्थान पर जा कय नुका देने छल। विश्व केर रक्षा हेतु, भगवान् विष्णु मत्स्यक रूप मे अवतार लेलनि आ एकरा तबाह-बर्बाद होयबा सँ रक्षा कयलनि।
(मूल कथा अंग्रेजी मे, लिंक – http://www.hindudevotionalblog.com/2011/07/matsya-avatar-of-lord-vishnu-dasavatara.html)