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मैथिल कथा – हमहुँ आब दिल्लिये रहब….

हमहुँ आब दिल्लिये रहब….
 

Image Credit: Film Mithila Makhan

“अरे! तूँ ततेक बिजी छँ अरविन्दा?”

 
“कि कहियौ दोस! दिल्ली छियैक न। प्राइवेट नौकरी मे समय पर औफिस, फेर ओतय सँ घर – भोरे उठू त औफिस के तैयारी, औफिस जाय मे घर सँ मेट्रो धरिक लिंक बस मे आधा घंटा…. जाम भेल त १ घंटा…. फेर मेट्रो केर ब्लू लाइन, येल्लो लाइन आ रेड लाइन सब चेन्ज करैत-करैत पहुँचू अफिस लगका मेट्रो स्टेशन…. ओतय सँ फेर लिंक बस… तखन आयल औफिस… ओतय लेट भेला पर हाजिरी कटबाक डर सँ आध-एक घंटा पहिनहि पहुँचि जेबाक प्रेसर… फेर ८ घंटा कराचुर ड्युटी…. आ तेकर बाद ओतय सँ फेर जहिना-जहिना गेल रही तहिना-तहिना घुरिकय घर आउ….! पूछ जुनि…. घर अबैत-अबैत थाकिकय चूर भऽ जाइत छी। ओ त बुझ जे तोहर भाभी नीक घरक छथुन जे जाइत देरी गरमा-गरम रोटी-तरकारी खुआ दैत छथि आ फेर दूध पियाकय सुता दैत छथि। माइयो नहि एतेक मानैत छल गाम मे ततेक कनियाँ मानैत अछि दोस।”
 
“बाप रे… सुवाइत! ऐँ रौ… छुट्टी दिन सेहो कनी मिथिला-मैथिली कय लेमे से नहि होएत छौक?”
 
“धू बूरि! मिथिला-मैथिली करब आ सेहो हम! रौ, हमरा कि लाभ होयत? ओ त पूर्वाञ्चल मोर्चा मे जे नेतागिरी करैत अछि, जेकरा फुर्सत रहैत छैक जे ओम्हर नोचब, ओम्हर पटकब, ओकरा माथक टोपी ओकरा आ फेर तेसुरकाक टोपी चारिम केँ… ठेका-पट्टा, भीड़ जुटेबाक काज, कमिटी, कर्जा लेब, लोक केँ दियायब, फेर ५ टके सैकड़ा सुदिक दर सँ ब्याज उगाही करब, साहु केँ दियायब, कनी-मनी रियल इस्टेट आ प्रोपर्टी डीलिंग, समाज मे लोक सब केँ कनी हिरिंग-भिरिंग सब देबैक…. तखन न मिथिला-मैथिली केला स किछु लाभ भेटत रौ…. एतय तोरा पहिने सँ ततेक रास दलाल आ ठीकेदार सब छैक जे कोनो जगह वैकेन्सी रहतैक तखन न हमरा सब केँ चान्स भेटत?”
 
“ऐँ रौ, तऽ दीनबन्धु ककाक बेटा जे एतेक बड़का नेता भऽ गेलैक से कोना?”
 
“रौ, नहि बुझय छिहीन। मिथिला मे तोरा राजनीति करबाक आ कि उठा-पटक करयवला हिसाब जगन्नाथ मिसर आ कि ओ पुरना जमाना वला नहि रहि गेलैक। तोरा जहिया स लोक सब मिथिला छोड़लक, बुझ जे मिथिले उपैटकय दिल्ली आबि गेल। देखैत नहि छिहीन…. मिथिला राज्यक आन्दोलन हो आ कि दहेज मुक्त मिथिला हो, आब सबटा तोरा दिल्लिये के गल्ली-गल्ली सब मे चलैत छैक। ताहि पर सऽ तोरा दिल्ली मे नेता सब बना लेलक पूर्वाञ्चल वला एगो खेलौना… मैथिली बाजते हैं तो पूर्वाञ्चली, भोजपुरी बाजऽ तानी तो पूर्वाञ्चली, आसामी, बंगाली, मणिपुरी, नेपाली…. बुझ न जे एकरा सब केँ पूर्वाञ्चलीक नाम पर बेसी सँ बेसी गोलबन्दी करबाक आ अपन-अपन पार्टी लेल वोट बैंक बनेबाक मौका भेटैत छैक त सब दिल्लीक बहरिया जे पूब सँ पच्छिम यूपी होएत दिल्ली अबैत अछि से सबटा भऽ गेल पूर्वाञ्चली….। तही मे दीनबन्धु ककाक बेटा शुरुहे सँ खूब खर्चा-बर्चा केलक त आब ओकरो पद दय केँ राष्ट्रीय राजनीतिक दल सब अपन काज निकालैत अछि। चान्स जँ नीक रहतैक त एक दिन कोनो पार्षद् आ कि विधायक आ कि एमपी सेहो बनि जायत।”
 
“ऐँ रौ, तखन त बुझ जे अपन गाम वला उचक्का नेता सब लेल एतय नीक चान्स छैक?”
 
“हाहाहा! से आब गाम मे उचक्का बचलो देखाइत छौक? आधा सऽ बेसी त पहिनहिये दिल्ली धऽ लेने अछि। बचल-खुचल लेल बम्बई मे सेहो सुनय छियैक आब बिहारी युनिटी मे नीक स्थान भेट जाइत छैक। ताहि पर सँ तोरा मिथिला-मैथिली आन्दोलन जे देशक सब कोण मे पहुँचि गेल छैक – ओतहुओ बुझे जे एकरा सब लेल नीक चान्स बनि रहलैक अछि। से आब त बुझ जे गाम जाइत छी से न गाछी घुमय मे नीक लगैत अछि, न कोनो मेला-ठेला, न चौक… सबटा इंगेज भऽ गेल छौक पूरे देश मे।”
 
“दोस! तखन आब हमहुँ दिल्लिये रहब। लगा हमरो जोगार।”
 
“दीनबन्धु ककाक बेटा सँ बात करे…. आ… हँ… हमरा फुर्सत तोरा रवि दिन होएत अछि। छुट्टी रहैत छैक। से तूँ रहमे त जन्तर-मन्तर आ कि राजघाट जतय कहमे ओतय… आब त देखैत छिहीन जे सिरीफोर्ट… तालकटोरा… इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय कलाकेन्द्र…. राजघाट…. एनएसडी…. सब तैर अपने मिथिला-मैथिली वला कार्यक्रम सब होएत रहैत छैक। एखनहुँ एनएसडी मन्डी हाउस लग किताबक मेला लगले छैक। जे जाइत अछि, ताहि मे मुंहगर-कनगर रहल त सविता दीदी ओकर इन्टरव्यु सेहो लैत छथिन। आ, आर बात छोड़ न रे लफुआ…. सेल्फी कतहु लय लेल करे आ फेसबुक पर अपडेट मारि दहीन… एट इन्टरनेशनल थियेटर ओलंपियाड दिल्ली… हिहिहि… ओहिना नहि न पीएनसी एकर नाम दिल्लीक दिलवाली भूमि रखने छैक रे गदहा! तोरा त एक सालक भितरे मे हाईट भेट जेतौक। खाली सुनीत ठाकुर भाइ एगो छथिन… हम सब मैथिल छी ग्रुप खोलने छथिन… ताहि पर हुनका सँ पैरवी कय केँ किछु फोटो पोस्ट करबा लिहें….। मिथिलाक माटि-पानि केर सही उपयोग आब मिथिला मे कतय संभव रे बेकूफ। दिल्लिये रहे तूँ लडुआ।”
 
लड्डूक मोन मानि गेलैक। अरविन्द ओकरा एकदम आँखि खोलि देने छलैक। चढल ट्रेन सँ उतैरकय सीधा बाबू केँ गाम फोन लगा कहि देलक –
 
“बाउ हौ! आब हम २-३ मासक बादे एबह। हमरा दिल्ली मे चान्स नीक बुझा रहल अछि। गाम मे ३ बेर सऽ चुनाव हारि गेलहुँ। एतय क्षेत्र बनाबय द। एतय तरकारीक ठेक्का सजना जेना लगबैत अछि, हमहुँ शुरू करब नवका एरिया मे। हरियर तरकारी दिल्लीवला सब केँ बड़ नीक लगैत छैक। से हमरा आइडिया आबि गेल। तोहर पेन्सन वला पाइ सेहो नहि गलेबह। कनी दिनक बाद छोटको केँ आनि लेब एतय। तोरो घुमेबह। ठीक?”
 
बापक मोन गद्गद् भऽ गेल छलैक। ओहो यैह चाहि रहल छल। लडुआ दिल्लिये रहि गेल।
 
हरिः हरः!!
 
नोटः
१. ई कथा यथार्थ पर आधारित छैक, खाली पात्रक नाम बदैलकय राखल गेल छैक। किछु नाम जँ मिलियो जाय तँ चिन्ता नहि करब, कारण मिलैत नाम सँ जुड़ल बात बड़ा सम्भ्रान्त आ बेवाक तरीका सँ राखल गेल छैक। खराब लागय जेटलीजी जेकाँ मानहानि केस ठोकि देब हमरा पर, हमहुँ बाद मे केजरीवालजी जेकाँ माफीनामा दय देब… नहि त बाल साथी लऽ! जे बात छैक से लिखय मे कोन हर्जा यौ? 😉
 
२. कथा नीक लागि जाय त एकरा शेयर कय केँ आरो-आरो मित्र धरि जरूर पहुुँचा देबैक… मिथिला-मैथिली पर ठकय वला केँ आइना देखायब बहुत जरूरी छैक।

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