हमरा हिसाबे….
(सन्दर्भः मैथिलीक बोली बज्जिका, अंगिका आदि केँ भाषा मानबाक मादे)

कोनो भाषाक अकादमी द्वारा एहि विभिन्न बोली सब केँ वर्गीकृत कय मूल भाषा केर विभिन्न बोली अन्तर्गत भाषिक-साहित्यिक कार्य या गतिविधि केँ आगू बढेबाक काज करैत छैक। ताहि स्थान पर एकटा बड पैघ सवाल ठाढ होएत छैक मानकीकरण केर। द्वंद्वक स्थिति मे उपलब्ध लिखित मैथिली साहित्य सँ इतर लिखनिहार-पढनिहार अपना केँ मैथिलेतर मानैत अछि, ई स्वाभाविक स्थिति भेल। एहेन अवस्था मे मैथिली अकादमी केँ किंवा साहित्य अकादमी सँ जुड़ल मैथिली भाषाक परामर्शदात्री समिति केँ चाहैत छल जे प्रस्तुत केन्द्रीकृत मानक मैथिली जाहि मे बेसी साहित्य उपलब्ध अछि तेकर अतिरिक्त अंगिका, बज्जिका, छिकाछिकी, जोलही आदि उपभाषा (बोली) केर सेहो लिखित साहित्य केँ प्रोत्साहन दैत एहि भाषिका सभक प्रयोगकर्ता केर केन्द्रिय भाव मे मैथिली केँ स्थान दियबितय। लेकिन ई चूक त कतहु न कतहु भेले छैक जे वृहत् स्तर पर दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, समस्तीपुर, बेगूसराय, पुर्णियां, कटिहार आदि किछु जिला छोड़ि आन ठामक लेखक-साहित्यकार द्वारा मातृभाषा मैथिलीक विभिन्न रूप मे लेखनी आ प्रकाशन कार्य केँ कोनो बेसी महत्व नहि देल गेलैक। आर, परिणामस्वरूप ओ कटल जिला आ ओतुका बौद्धिक कार्य मे लागल सर्जक अपना केँ बज्जिका, अंगिका आदि भाषाक सृजनकर्ता मानिकय अपन पहिचान केँ स्थापित करबाक लेल संघर्ष कय रहल अछि। मैथिलेतर भाषाक विकास मैथिली केँ तोड़िकय भऽ रहल अछि आर सदिखन सत्ताक लोभ मे फँसल ओ भाषा विज्ञान आ बौद्धिकता आदि सँ अपरिचित राजनीतिकर्मी केँ मौका दैछ जे खरखाँही लूटबाक लेल मैथिलीक बोली सभक अकादमी निर्माणक बात उठाकय अपन स्वार्थ सिद्धि मे लागत। ललित कुमार यादव – दरभंगा ग्रामीण सँ कतेको बेर सँ निर्वाचित विधायक द्वारा हालहि विधानसभा मे बज्जिका लेल उठायल गेल सवाल एहि बातक प्रमाण रखैत अछि।
गोटेक मैथिली अधिकारकर्मी एहि लेल बितैत रहैत छथि जे हमर भाषा केँ विखंडित कय रहल अछि…. लेकिन ओ सब कथमपि ई नहि बजैत छथि जे स्वयं एहेन कोन काज कयलन्हि जाहि सँ बज्जिका आ अंगिका केँ स्वतंत्र भाषाक रूप मे स्थापित करबा सँ पहिने मैथिली द्वारा समेटबाक आ स्वीकृति प्रदान कयल जेबाक काज भेलैक। एखनहुँ प्रयास करय मे कि दिक्कत छैक। एतेक रास साहित्यिक सम्मेलन आ काव्य सम्मेलन सभक आयोजन होएत छैक, लिटरेचर फेस्टिवल केर आयोजन होएत छैक – मैथिलीक केन्द्रीकृत मानक भाषा सँ इतर अन्य-अन्य बोली मे लिखि रहल कवि, लेखक, साहित्यकार सब केँ मैथिली अन्तर्गत समेटबाक काज करेनाय शुरू करू। विभिन्न जिला मे साहित्यिक अन्तर्संबंध पर परिचर्चा गोष्ठीक आयोजन मार्फत एकटा माहौल तैयार करू। आ कि अगबे फेसबुक पर आमिल पीबिकय अंगिका-बज्जिका भाषाभाषी या ओकरा लेल वकालत कयनिहार नेता केँ गरियेला सँ किछु लाभ भेटत? एकटा आरो महत्वपूर्ण बात कि छैक जे भाषा सम्बन्धी पढाई-लिखाई सरकारी शिक्षा चौपट हेबाक कारण लगभग अन्त भऽ गेलैक वर्तमान पीढी मे। प्राइवेट शिक्षा मे भाषा प्रति सिलेबस केँ कतेक चौकन्ना राखल गेल छैक से कने अपनहि गाम-घर आ अपनहि धियापुता लेल उपलब्ध कोर्स-सिलेबस केर समीक्षा कय केँ देखियौक। नाममात्र लेल भाषा पढायल जाएत छैक आजुक पेटपोसा शिक्षा पद्धतिक युग मे। तखन, शनैः-शनैः लोक मे निज भाषा आ पहिचान प्रति केहेन समझ बनैत जेतैक सेहो स्वयं कल्पना योग्य अछि। तैँ, हमरा हिसाबे, हम सब एतेक सृजनशील बनि जाय जे आपस मे सौहार्द्र भाषा आ साहित्यक स्तरपर सेहो नीक सँ बना सकी आर मिथिलाक विभिन्न जिलाक लोक केँ ओकर अपन बोली केँ सेहो सम्मान दैत मैथिलत्व सँ आत्मसात करा सकी। केकरो जबरदस्ती मैथिलीकरण करब रिक्त बोली आ प्रतिक्रिया सँ नहि संभव होयत।
हरिः हरः!!