मिथिलाक ओ चन्द्रकूप जाहि मे विराजैत छथि स्वयं गंगा

आध्यात्म

– प्रवीण नारायण चौधरी

मित्र बसन्त झा वत्स केर किछु रास फोटोक संग देल गेल एक सर्वोपयोगी जनतबक आधार पर प्रेरित होएत अपने लोकनि लेल ई लेख लिखय लेल प्रेरित भेलहुँ । महाकवि विद्यापति आ हुनक उगना यानि साक्षात् शिव केर कथा-गाथा सँ के नहि परिचित होयब, परञ्च एहि कथा-गाथाक एकटा अबूझ हिस्साक बारे मे श्री वत्स लोकश्रुतिपर आधारित एक चन्द्रकूपक परिचय करौलनि अछि। ओ कहलनि अछि,

 

“ई अछि चंद्रकूप। ई ओ स्थान अछि जतय बाबा विद्यापति प्यास स तड़पय लगला और कहलखिन उगना जल ला नइ त मरि जेबउ। तखन, उगना अपन महादेवक रूप धारण कय अपनहि जटा सँ गंगाजल निकालि कय पियौने छलाह। ई बाबा उगना मन्दिर प्रांगण भवानीपुर में अछि। एखनो एकर जल पूर्णरूपेण गंगजल छैक, जे प्रमाणित अछि। जखन की गंगाजी केर दूरी एहि स्थान सँ लगभग १२५ किलोमीटर छैक। और, बाबा उगना केर पूजा एहि चंदकुप केर जल सँ होइत छन्हि। एकर विशेषता अछि जे इनार होइतो एकर जल पूर्णरूपेण स्वच्छ अछि। एको गो गंदगी या पीलापन नाइ भेटत। जल एकदम साफ और कल केर जल सँ बेसी स्वच्छ देखइ में लागत। जय बाबा उग्रनाथ । जय गंगा मैया॥”

वसन्तजी द्वारा फेसबुक स्टेटस मार्फत लिखल उपरोक्त आंशिक संपादित कथन केँ सर्वोपयोगी एहि वास्ते कहल जे हमरा लोकनिक मिथिला आ वेद-वेदान्त बीच अन्योन्याश्रय सम्बन्ध अदौकाल सँ स्थापित अछि। मिथिलाक भूमि केँ तंत्र भूमि सेहो कहल जाएछ। एतय स्वयं नारायणी – आदिशक्ति जगदम्बा अपन एक अत्यन्त विशिष्ट स्वरूप “सीता” बनिकय त्रेता युग मे अवतार लेलीह। तहिये सँ एहि माटि केँ एतेक शक्तिशाली मानल जाएत अछि जे एतय देवताक आवाहन हेतु कोनो चरौठ आ चौकी आदि नहि सजाबय पड़ैछ, एतय कोनो विशेष श्रीयंत्र आ कि आसनी भगवान् वास्ते नहि लगाबय पड़ैछ, साधारण गायक गोबर सँ नीपल धरापर चिक्कनि माटिक चौका पारैत अरवा चाउरक पिठार सिनूर सँ अहिपान पारू – वैह भेल भगवान् केर आवाहन हेतु सम्पूर्ण सिद्ध यंत्र आ तंत्र। ओतहि केराक पात पर अहाँ प्रदान करू यथासंभव पूजनोपचार, अक्षत, तिल, जौ, पुष्प, दुभि, बेलपत्र, तुलसीपत्र, चन्दन, जल, प्रसाद आदि सब किछु भगवान् केँ आवाहन करैत, हुनक चरण पखारैत आ हविष्य प्रदान करैत पुनः विसर्जन कय विदाह करू। भगवान् खुशीपूर्वक आबि अहाँक हविष्य ग्रहण करता, समुचित मनोवांछित आशीर्वाद प्रदान करता आ पुनः अपन लोक मे जा कय रहता, कारण अहाँ हुनका कहबनि जे हम मनुष्य संग अहाँकेँ रहबा मे दिक्कत भऽ सकैत अछि, कारण गृहस्थी जीवन मे कयल जायवला अनेको कर्म एहेन होएत छैक जे भगवानक पवित्रता केँ प्रभावित कय देतनि। यैह सर्वोच्च भावना संग मिथिला मे भगवान् संग भक्त केर अन्योन्याश्रय सम्बन्ध रहल अछि, ई हमरा लोकनिक पूजा-पाठ, आचार-विचार, अतिथि सत्कार, शिक्षा-संस्कार आदिसँ परिलक्षित होएत अछि। अतः वसन्तजी द्वारा चन्द्रकूप मे गंगाक उद्धरण हमरा एहि सर्वोच्च भाव सँ भगवान् प्रति समर्पण केँ स्मरण करौलक आर ई लेख लिखबाक लेल प्रेरित भेलहुँ।

विद्यापतिक जीवनपर कतेको बेर लिखि चुकल छी। ओ मन आ हृदय मे बसैत छथि। हुनक लेखनी आर समस्त मानवीय समाज प्रति हितचिन्तनक तथ्य त भेटिते अछि, मिथिलाक स्वजन्य हेतु ओ जे देसिल वयना (मातृभाषा) केर मीठ होयबाक बात कहि विद्वत् भाषा संस्कृत सँ इतर मैथिली मे रचनाधर्मिताक प्रखर सन्देश देने छथि ताहि सँ हमरा समान सर्जक लोक कथमपि अछूत नहि रहि सकैछ। हम मातृभाषा मैथिली मे लेखनधर्म केँ पर्यन्त भगवान् प्रति समर्पित धर्म मानिकय लेखनी करैत छी ‍‍- ई दावीक संग कहि रहल छी। विद्यापतिक ओ लेखनी सामर्थ्य छलन्हि आर तेकरा समर्पित करैत देवाधिदेव प्रति सेवा-समर्पणक नचारी सब छलन्हि जे सर्वसमर्थ भगवान् केँ सेहो प्रभावित केलकनि। तैँ महादेव उगनाक भेष मे अपन समर्पित भक्त विद्यापति संग रहय लागल छलाह। कहबी छैक न जे भगवान् भक्त केर वश मे रहैत छथि, बिल्कुल तहिना।

उगना विद्यापतिक सेवक छलाह। वैह महादेव छलाह सेहो कहब शुरू मे गड़बड़ जेकाँ लागत। लेकिन गंगा आ महादेव केर सेवा मे सदैव रत महाकवि कोकिल विद्यापति केँ जहिया जनमारा प्यास लगलन्हि, ओ चकबिदोर लगा सौंसे पानि ताकथि आ बेर-बेर प्यासे कंठ हँसोथति मुदा पानिक दरस तक नहि होइन्ह, तेहेन घड़ी मे अपन व्याकुलता अपन सेवक उगना सँ निवेदन कयलन्हि। वसन्तजी हमरा सँ बेसी नीक जेकाँ लिखलनि अछि “उगना जल ला नइ त मरि जेबउ…”, आर फेर उगना हुनका सँ कनेक कात जा दयावश अपन असली रूप मे आबि, भक्तक हालत देखि झट सँ जटा खोलि ओहि सँ गंगाजल निकालि लोटा मे विद्यापति केँ पुनः उगना रूप मे आबिकय पियौलनि। ताहि स्थान पर आइ चन्द्रकूप विराजैत अछि। ओहि चन्द्रकूप मे स्वयं गंगाजी विराजैत छथि। ओत्तहि उगना महादेवक मन्दिर सेहो अवस्थित अछि। लोक आस्थाक ई सुन्दर स्वरूप त देखू – हाय रे हमर असीम स्नेहक भूमि मिथिला आर एतुका पारंगत पाण्डित्य परम्परा – कवि सँ भक्त, भक्त संग सेवक, सेवक स्वयं भगवान्, भगवान् केर भक्त प्रति देखायल गेल भक्तवत्सलता आर प्यास सँ जरैत कंठ केँ गंगाजलक ओ स्नेहिल स्पर्श जेकर आदति छलन्हि विद्यापति केँ। विद्यापति झट सऽ पूछि देलखिन अपन सेवक उगना केँ, नहि कि महादेव केँ। कि पुछलखिन, कि जबाब भेटलनि, कनेक ई सुन्दर दृश्य देखू –

“ऐँ रौ उगना! ई जल एतय कतय भेटलौक?”

“धू छोड़ू अहूँ! प्यास मिझा गेल त संसार सुझाय लागल। कहय छइ जे….!”

“बात अन्ठा जुनि उगना। पहिने ई बतो, ई जल कतय सँ भेटलौक एहि निर्जन स्थल मे?”

“एह निर्जन स्थल! हैवा ओ जे दूर मे मधुबनी जिलाक पण्डौल लगका गाम भगवानपुर देखैत छियैक, ओत्तहि सँ अनलहुँ।”

“चल कनी हमरा देखा ओ स्थान।”

आब भक्तक बात सुनि महादेव कि करता, खूब टालमटोल केलाक बादो भक्त मानयवला नहि…. अन्त मे हुनका प्रसन्न भऽ दर्शन देबय पड़लन्हि। बताबय पड़लन्हि जे ओ असली मे महादेव थिकाह आर जटा सँ साक्षात् गंगाजलक धारासँ लोटा भरिकय ओ विद्यापतिक प्यास केँ मिझौलनि। लेकिन विद्यापति जे गंगाक असीम भक्त छलाह, जे मासो-मास गंगाक किनार मे भौतिक शरीर केर आध्यात्मिक उपयोग करैत धर्म-निर्दिष्ट जीवन जियैत छलाह से गंगाजलक स्वाद पकड़ि आखिर उगनाक सेवकरूपक पाछाँ जाहि ईष्ट केर कृपा रहय तेकर दर्शन कय लेलनि। आर दुनू गोटा मे कि सब गप भेलनि से मात्र कल्पना कय सकैत छी। लेखक, कवि कल्पना सँ ओ दृश्यक वर्णन अपना-अपना हिसाबे करता। उपरोक्त चन्द्रकूपक आलोक मे ई कहबा मे कोनो हर्ज नहि जे भक्त अपनहि जेकाँ आरो भक्तक कल्याण हेतु तहिये महादेव सँ वरदान मांगि अपन वचन केँ सत्य करबाक लेल भगवानपुरक ओहि स्थानपर चन्द्रकूप मे गंगाजीक वास लेल विनीत वचन सँ प्रार्थना कयने हेताह आर तहिये सँ चन्द्रकूप मे गंगाजी विराजैत छथि।

ओहि स्थान पर स्वयं विद्यापति महादेवक कामोद-लिंग केर स्थापना कयलनि। ओतय ओ चन्द्रकूपक जलसँ पूजा कयलनि। स्वजन्य मानव समाज केँ सेहो बजाकय एहि स्थान सँ परिचित करौलनि। चन्द्रकूपक रहस्य बता पुनः महादेव सँ कयल शर्त मुताबिक उगना सेवक केँ लय अपन आगामी गन्तव्य स्थल लेल प्रस्थान कयलन्हि। उगना सच मे साधारण बुद्धिक एकटा सेवक छलाह। मुदा हुनका मे महादेव प्रति एहेन गहिंर आस्था छलन्हि जे महादेव हुनकहि मे वास केलनि। जरुरत मे जखन उगना केँ जल कतहु नहि भेटलैक तँ ओ बेर-बेर महादेवक पुकार केलक आर आखिरकार महादेव उगना मे प्रवेशकय अपन प्रभुत्व सँ भक्तक लिलसा केँ पूरा कयलन्हि। कथा आगू बहुत छैक। लेकिन अपन कलम एहि चन्द्रकूपक चमत्कार धरि सीमित राखि शीघ्रहि उगना महादेवक दर्शन हो ताहि अभिलाषाक संग लेख केँ एत्तहि विराम दय रहल छी। शुभम् अस्तु!

हरिः हरः!!