जातिवाद व्यवस्था पर रोक लगेबाक विचार हो, कानून बनय

जातिवादक अन्त पर विचार हो
 
आइ भोरे-भोर एक विद्यार्थी बैजू यादव भाइ रमानाथ साफी (कम्युनिष्ट पार्टी कार्यकर्ता) केर एक पोस्ट जे मधुबनीक आरके कालेज एहेन महाविद्यालय मे राजद केँ छात्र नेता उम्मीदवार तक नहि भेटबाक बात लालू यादवजीक तरफदारी करैत बजलाह जे एहेन महान नेता लालूजी व हुनक पार्टीक बारे मे एना नहि बाजू, धन्य लालूजी जे हमरा-अहाँक मुंह मे आवाज फूटल। हम कनेकाल वास्ते छुब्ध रहि गेलहुँ। सोचय लगलहुँ जे केहेन युवा समाज अछि हमर मिथिलाक जेकरा माथ मे लालूजीक जातिवादी उन्माद आ जाति-आधारित राजनीति प्रति एखनहु नजरि नहि खुजल अछि।
 
सबसँ पहिने त हुनका टोकैत कहलियैन जे एना अपन बाप-पुरखाक पुरुषार्थ केँ गारि जुनि पढू, पहिने कियो केकरो बोली पर लगाम नहि कसने रहय आ सब केँ अपन अभिव्यक्तिक स्वतंत्रता सँ लैत जनप्रतिनिधि चुनबाक आ अपन समाजक हित लेल हर तरहक डेग उठेबाक अधिकार रहबे करय। लालूजीक योगदान सँ अहाँ कैसकय बजैत छी से दंभ आ अपनहि समाजक एक वर्ग सँ घृणा आ विद्वेष भावना केर द्योतक अछि। एहि सँ कोनो प्रगति आ विकास केर परिणाम नहि निकलल। ई त समाज केँ तोड़ि देलक। लालूजी आ हुनकर पार्टी सँ जुड़ल नेतागण जरूर लाभ कमेलनि, लेकिन ताहि सँ समाज आ राज्य केर कतेक हित भेल से केकरो सँ छूपल नहि अछि। एहि वार्ताक यथार्थ स्थिति एना रहयः
 
बैजू यादवः आइ हम आहा अतेक कैस कअ बजै छी उ माननीय श्री लालू प्रसाद यादव के देन छै।
 
हमः माने ओहि स पहिने अहाँक बाप-पुरखाक बोली कियो सीज कय लेने रहय कि? कथी लय अपन पुरुषार्थसंपन्न बाप-पुरखाक बेइज्जत एना करैत छी। लालूजी त अहाँक जेहेन बोली देलक ताहि मे जेकरा संगे-संग समाज रचेने-बसेने छी ताहि ठामक पड़ोसी सँ घृणा आ विद्वेष भावना उत्पन्न कराकय माथमे आगि लगा अगड़ा-पिछड़ा लड़ा वोटक राजनीति भेल। ताहि सँ बेसी यदि किछुओ भेल हो, कोनो तरहक विकास, कोनो तरहक शिक्षाक अवस्था मे प्रगति-उन्नति आ आर्थिक समृद्धि त हम अहाँ सँ ओहेन उदाहरण सुनब आ कहब जे लालूवाद सँ हमरा समाजक कोनो वर्ग केँ फायदा भेल।
 
राम नाथ साफीः बात मे जान अछि।
 
आइ फेर स जरुरत ई अछि जे समाजक हरेक वर्ग केँ आपस मे बैसिकय ई तय करबाक चाही जे विकासक सही मार्ग पर चलबाक लेल आपसी सौहार्द्र केना बनत। बाहरी लोक अपन फायदा घरक लोक केँ तोड़ि-फोड़िकय लेलक, धरि समाज केँ उपलब्धि कि भेटल? एहि विषयपर समीक्षाक आवश्यकता अछि।
 
लोक अंग्रेज शासक सँ मुक्तिक लेल स्वाधीनता संग्राम लड़लक। हजारों लोक शहादत देलक। बर्बर अंग्रेजी हुकुमतक अत्याचार सहैतो लोक स्वतंत्रता लेल अपन लड़ाई कमजोर नहि होमय देलक। अन्ततोगत्वा भारतक गुलामी सँ मुक्ति १५ अगस्त १९४७ ई. केँ भेटल। लेकिन ई आन्तरिक उपनिवेशी सम्राज्यवादी सत्तालोलुप नेतृत्व सँ भारतक लोकतंत्र आजाद नहि भऽ सकल अछि। अंग्रेजहु सँ पूर्व जखन छोट-छोट राजा-रजवाड़ा आ जमीन्दारी रियासतक युग रहय तहिया सामन्ती प्रथाक जेहेन प्रभाव रहल तहिना आइयो एहि सत्तालोलुप नेतृत्वक चपेट मे समाज छहोंछित अवस्था मे पहुँचि गेल अछि। लोकसरोकारक विषयपर – लोककल्याणकारी योजनापर – लोकहि द्वारा चुनल सरकार बनितो कोनो ध्यान नहि दैत सिर्फ आ सिर्फ जातिक अहंकार, संख्याबल केर अभिमान आ थाना-प्रशासनक माध्यम सँ अत्याचार आ जुर्म केँ बढावा दैत लोकतंत्र केँ मजाक बनेबाक कुत्सित काज कयनिहार केँ रोकनाय जरूरी अछि। यदि अवस्था मे एहि तरहक गलत बुनियाद पर राजनीति आबो नहि रुकत त आगामी पीढी मे आबयवला सन्तानक समय धरि जनता सब आपसे मे लड़त-मरत आ देशक कोनो सुरक्षा तंत्र ओहि अन्तर्युद्ध केँ रोकय मे सक्षम नहि भऽ सकत। आन्तरिक सुरक्षा आ जन-सुरक्षा वास्ते एहि तरहक कुत्सित राजनीति केँ रोकबाक लेल समाजक हरेक स्तरक लोक मे आपसी चर्चा बढेनाय आवश्यक अछि।
 
मानव समाज केँ मानवता केँ सर्वोपरि धर्म आ सर्वोपरि जातीय पहिचान बुझक चाही। मानव-मानव बीच जे विविधता छैक तेकरा प्राकृतिक नियम बुझि एक-दोसरक परिपूरक-सम्पूरक बनिकय समाज केँ आगू बढेबाक लेल मात्र वर्ण-व्यवस्था, श्रम व्यवस्था, अर्थ व्यवस्था आ संगठित संचालन तंत्र छैक। एहि वर्ण-व्यवस्थाक सदुपयोग समाजक हित लेल हेबाक चाही, अन्य कोनो तरहें जँ ई समाज केँ तोड़ैत अछि त तत्काल प्रभाव सऽ एकर अन्त करबाक लेल राज्य द्वारा कानून बनायब आवश्यक अछि। जातिवादिता कथमपि मानव-मानव बीच युद्धक स्थिति बनेबाक लेल कतहु परिकल्पित नहि छल। सनातन धर्म मे मनुष्यक कार्य क्षमता, दक्षता आ योग्यताक आधारपर समाजोपयोगी कार्य पूरा करबाक लेल वर्ण व्यवस्था आ जातीय व्यवस्थाक परिकल्पना कयल गेल अछि। वर्तमान समय जँ राज्य द्वारा अन्तर्जातीय विवाह केँ बढावा देल जा सकैत छैक त तत्काल प्रभाव सँ जाति व्यवस्था हँटेबाक निर्णय सेहो कयल जा सकैत छैक।
 
आइ कोनो व्यवसायिक संगठन अथवा सरकारी निकाय या व्यवस्थापिका संस्थाक संचालन लेल अलग-अलग तह केर पद मे ऊपर सँ नीचाँ धरिक क्रम बनैत छैक – ठीक तहिना सामाजिक व्यवस्थापन लेल समिति बनाकय लोकक योग्यता, दक्षता आ क्षमता अनुरूप मानव सभ्यताक संरक्षण, संवर्धन आ प्रवर्धन लेल व्यवस्था कायम कयल जा सकैत छैक। पश्चिमी सभ्यता मे आखिर ई जातिवादी व्यवस्था नहि छैक त ओकर संचालन भऽ रहल छैक कि नहि! हमरा सब सँ बेसी प्रगतिशील ओ सब अछि बहुतो मामिला मे…. तैँ हमरो लोकनिक समाज मे ई जातीय व्यवस्था केँ निर्मूल साफ कय देला सँ यदि बेहतरी संभव छैक त एहि दिशा मे राज्य द्वारा तुरन्त प्रभाव सँ विचार शुरू कय देबाक चाही। जेना सब नागरिक लेल समान अधिकारक बातक वकालय कयल जाएछ, ठीक तहिना समाजक हरेक वर्ग, जाति, धर्म केँ पूर्ण निरपेक्ष बनबैत समान अवधारणा मे पुनः व्याख्या करब आवश्यक बुझा रहल अछि।
 
हरिः हरः!!