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हँसनाय मना नहि अछि, लेकिन बातो बुझब जरूरी छैक: व्यंग्य प्रसंग संग्रह

एक दर्जन व्यंग्य प्रसंग 

– प्रवीण नारायण चौधरी

१. व्यंग्य प्रसंग – १ 

“मैख गेलहुँ! मैख गेलहुँ!! तिनू ठाँ मैख गेलहुँ!!” घूरन झा चिकरैत-भोकरैत अचानक मिलन विहार चौक पर दिल्ली मे लोक सब केँ सोर करय लगलाह।

बगले मे फूदन मोची जे हुनकर जुत्ता डेली चमकाबैत छल ओ बाजि उठल, “यौ घूरन बाबु! अहाँक जुत्ता छूबि साफ केलहुँ हम आ मैख गेलहुँ अहाँ?”

घूरन बाबु ओकरा उदास आ खौंझाएत कहलाह, “रौ बूरि! तोरा साफ करय देबा सँ पहिने अपने हम जुत्ता मे जे लागल छल तेकर छूबिकय चेक करबाक लेल हाथ सँ छूबि लेने रही। पहिने पियर-पियर देखि किछु आरे बुझायल छल… आ फेर…।”

फूदन कहलकैन, “से त अहाँक आदति देखैत छी। गुंहो पर फेकर रहत त पाइ उठा लेब। जरुर ओहि पीरा मे सोनाक भ्रम भेल होयत।”

घूरन बाबु फूदनक दिमाग केँ काट नहि पाबि कहि उठलाह, “ईह! तूँ कोन दूधक धोल छँ? पियर धातु जेकाँ लगतौक त तूँ नै उठेबहीन कि?”

फूदन केँ जोरदार हँसी लागि गेलैक। ताबत रामू मंडल सेहो पान दोकान सँ फांगिकय बाहर आबि गेल रहय मिलन चौकक ओहि स्थान पर जतय घूरन झा तितम्भा पसारने रहैथ। सब कियो जिगेसा केलकैन जे कि भेल घूरन बाबू। जे जेम्हर सँ आबय, एतबे पूछय कि भेल यौ..? घूरन बाबु कहैत – कहैत थाकि गेलाह त फूदन सब केँ कहय लागल जे भेलैन ई जे घूरन बाबू मखलाह गुंह मुदा बुझलकिन पियर धातु। चेक करबाक क्रम मे पैर मे सँ उठा हाथ मे छूलनि आ फेरो विश्वास नहि भेलैन त नाको में सुंघिकय चेक केलैन। अन्त मे ओकर गंध सँ प्रमाणित भेल जे ई आर किछु नहि गुंहे छल।

सब कियो ठहाका मारिकय हँसय लागल। घूरन बाबु एम्हर-ओम्हर ताकि पानिक जोगार दिस धोबय लेल चलि गेलाह। रामू मंडल बाजि उठल, “बुझू! एहेन-एहेन पढुआ बाबु केर जखन ई हाल अछि तखन हमरा आरक धिया-पुता त सहजहि बोनिहारक धियापुता थीक। ओ सब कि बुझय जायत मिथिला चौक केर मैथिलत्व।”

फूदन फेर रामू मंडल केर ई जिलेबी जेकाँ घूमल बात नहि बुझि सकल। ओ पूछलक जे बुझाकय कहह। रामू तखन ओकरा बुझबैत कहलक, “रौ फूदन! देखैत नहि छिहीन अखिल भारतीय मिथिला पार्टीक जन्मौटी छौंड़ा सब दिल्ली मे अभियान चलबय छै जे मिथिला राज्य अभियान मे जुड़ू… से जुड़ल लोक तीन ठाँ मैख जाएत अछि, सेहो एहेन लोक जे गुंहे लागल जुत्ता तोरा हाथ मे दकय साफ करबबैत छौक। मुदा पीरा रंग देखि ओ भ्रम मे पड़ि जाएछ। ओकरो अपन आदति मुताबिक सोने बुझिकय चेक करय लगैत छैक।”

फूदन कहलकैक, “हौ! जीवन जिबय लेल कर्म करब बेजा नहि। ई त हमर काज छी जे जुत्ता सिबी, पालिश करी, बनाबी। मुदा लोभ मे आबि जुत्ताक शोल मे सोना ताकय लागी आ ताहि क्रम मे गुंह छुआय…. ईहो कोनो बात भेलैक। सीधा बात छैक जे घूरन बाबु बड बुधियार बनला तैँ तीन ठाँ मखलाह। पुरना लोक कोनो गलत नहि कहने छैक।”

रामू कहलकैक, “छोड़ हँटा। तूँ एखन नहि बुझबिहीन। स्वार्थी लोकक कारणे सब लोक ओहि ठाँ जाय सँ डेराइत अछि। स्वार्थक सीमा देखिते छहीन जे जतय अपन नाम हेतैक ओतय जी-जान एक करइ य आ जतय देखलक जे एतय किछु प्राप्ति नहि होयत, ओतय सँ कटि जाए य।”

फूदन-घूरन कनीकाल आपस मे गपियाएत रहल, घूरन बाबु साबून सँ हाथ धोए – मुंहकान साफ कय सेन्ट-वेन्ट मारिकय आबि गेलाह। चमचमाइत जुता मे पैर घोंसियबैत एकटा नमड़ी दैत फूदन केँ कहलखिन, “बुझल छौक न! जहिया जखन जतय कहबौक, भीड़ लगबय लेल आबि जइहें। एहिना मालामाल करैत रहबौक।”

हरिः हरः!!

२. व्यंग्य प्रसंग – २

एकटा एहेन कोढि लोक छल जे बंसी पाथि देने छलैक, आ अपने महारे पर छाहरिक गौर मे ओंघरा गेल छल। एकटा कोम्हरौ सऽ कोढियेक गौंआँ छौड़ा आबि ओकर बंसी मे माछ केँ खोंटी करैत देखि ओकरा उठेलकैक – हे रौ! ललित! उठ-उठ! देख माछ खाइ छौ तोहर बंसी मे।

ललित ओकरा जबाब देलकैक – रौ! तऽ कने तोंही देख न दे। वास्तव मे माछ खेबे टा नहि तरैला डूबेलकैक तऽ ओ छौंड़ा माछो ऊपर कय देलकैक। आ कहलकै, “ले सार! २ किलो के रौह ऊपर भेलौ।”

ओ कोढिया कहलकैक, “हे! कने छोड़ा कऽ ओहि खन्ता मे धऽ दही जाहि मे पहिने सऽ दू टा फरी मारिकय तोरे जेकाँ एकटा आरो आयल छल संगी से राखि देने अछि।”

आब ओहि छौंड़ा केँ रहल नहि गेलैक… माछ-ताछ छोड़ाकय ओना ओहो खन्ता मे राखि देलकैक… बोर लगाकय बंसियो पाथि देलकैक। आ कोढियाक निचैन भऽ के सूतल देखि कहलकैक… “हे रौ ललितबा! आब तों बियाह कय ले। धियापुता हेतौक तऽ माछ मारि-मारि खुएतौक।”

तऽ ओ कोढिया कहलकैक, “हे रौ मोहना! हम तऽ बाउ के कय बेर कहलियैक जे देखहक कतहु। मुदा कहाँ कोम्हरौ सऽ घटक एलौ?”

छौंड़ा कहलकैक जे हमहुँ सब ताकि दियौक कि कथा?

तऽ ललितबा चट दिना जबाब देलकैक, “हँ रौ! देखहीन न कतहु। मुदा हे ओ गर्हुआर मौगी हेबाक चाही।”

“धियापुता चाही ताहि लेल बियाह करत, मुदा मौगी गर्हुआर चाही!” छौंड़ाक बुझय मे आबि गेलैक जे ई महान कोढिया थीक। एकरा सँ पैघ कोढिया दोसर कियो एहि संसार मे नहि भऽ सकैत अछि। ताबत काल एकटा आरो फरी निकालि ओकरा इज्जत सहित खन्ता मे राखि, बोर लगा ओकर बन्सी पाथि ओ छौंड़ा आगू बढि गेल।

कोढिया आराम सऽ पड़ल रहल।

हरि: हर:!!

३. कनियां सँ आइ फेर झगड़ा भऽ गेल!!

(व्यंग्य प्रसंग)

काल्हिये सँ हुनका कहैत छलियैन जे “प्रिये! हमर सब संगीक कनियां जीन्स पहिरैत छैक। सबहक कनियां कनेकबो कनियां सनक बुझाइते नहि छैक। एखनहु जेना छौंड़िये-नौरी जेकाँ कमसिन जबान – फिल्मी हिरोईन समान! से प्रिये! अहाँ सेहो काल्हि हमरा संगे ईन्डिया गेट पर जे घूमय लेल चलब तऽ जीन्स वला सेट जे हम अहाँ लेल खास रूप सँ कीनकय अनने छी, वैह पहिरि के चलब।” मुदा ओ एकरा मजाक मे टारि देलनि। जखन कि हम सिरियस रही, राति एक बेर कान मे सेहो फुसफुसाइत-वार्ता काल सेहो मोन पारि देने रहियैन। “प्रिये! ओहि जीन्स केर खासियत छैक, जतेक तक झाँपब ओहू सँ जबानीक ओज छलकैत छैक, बुझू जे हमरा एकदम घायल कय दैत अछि।” ओ बस मुस्कुराइत हमर मुँह टा तकने छलीह, तऽ एना बुझायल जे ओ राजी छथि। मुदा फेर मोन मे शंका हुअय जे हमर कनियां तऽ निछछ देहाती लोक, दिल्लीक दिलवाली भूमि पर रहैत दिल्लगीक ढेरो रास इतिहास देखिते स्वयं सेहो दिलवाली दुलहनियां बनि गेल छलीह। तैँ, कनेकबो शंका नहि छल जे काल्हि जखन सप्ताहांत पर ओ अवश्य स्पेशल ड्रेस पहिरिकय हमरा संग घूमती। ओहो सप्ताहांत जेकरा विकेन्ड कहैत छैक आ जाहि दिन लोक कतहु घुमय लेल जाइत अछि आ पत्नीक संग फोटो खिचबैत फेसबुक पर सेहो अपडेट करैत अछि … ‘अन इन्डिया गेट – विद माइ डार्लिंग स्वीटी… अन विकेन्ड…’ आदि।

भोरे सँ हम मोने-मन अपन कनियां केँ जीन्स आ ओ टप जाहि सँ जबानीक शबाब कतेको ठाम सँ मुह बबैत फ्लाइंग किस पठबैत रहैत छैक, जेकर चलते हमरा अपने कतेको दिन गड़बड़ अवस्था बनि जाइत छल आन-आन केँ जीन्स आ टप पहिरने देखि… यैह सोचिकय कनियां लेल कीनकय अननहिये रही जे दोसर केँ कियैक देखब… बरू अपन कनियें केँ ओहने ड्रेस पहिरायब आ ओकरे भरपूर देखब। अपनो देखब आ लोको सब केँ देखायब। कनियां हमर ग्रामीण आ देहाती छलीह ताहि सँ कि… ओहो आब देशक राजधानी मे रहि रहल छथि… हुनको क-ट क-के अंग्रेजी बाजहो आबि गेलनि अछि आ फेसबुक पर ओहो अपन अपडेट लगा सकैत छथि। हम जखन ड्युटी पर चलि जाइत छी तऽ बेचारी हमरा संगे खिंचायल बियाहक फोटो सँ लैत मधुश्रावणी आ द्विरागमन-भरफोड़ी अन्य कतेको बेर स्टुडियो मे खिंचायल फोटो सबकेँ एन्ड्राइड मोबाइलक १२ मेगा-पिक्सेल कैमरा सँ रि-स्नैपिंग करैत लगबैत समय कटैत छथि। दिन भैर मे ओ ई गानिकय रखैत छथि जे कोन फोटो केँ कतेक लाइक भेटल, कतेक कमेन्ट आ कतेक लोक देखौंस सँ शेयरो केलक… सब सँ खास बात जे अपन लोक मे के सब लाइक नहि करैत अछि ताहि पर विशेष नजरि रखैते ओ अपनो आ हमरो लोक सब सँ यथार्थ जीवन मे व्यवहार करबाक लेल प्रेरित करैत रहैत छथि। निश्चित आइ ओ जखन अपन गौर-वर्ण शरीर पर टाइट जीन्स आ कटिंगदार टप पहिरती, ताहि मे जे फोटो सब आयत ओ जरुर एक दिन लाइक्स आ कमेन्टक ढेर हिनका देखाओत, ओ खूब प्रसन्न हेती… आदि कतेको रास बात दिमाग मे बेर-बेर आबय आ हम खूब उत्साहित रही। अपना लेल कौशलजी वला मैथिली खादी कमीज आ लेवी’ज जीन्स पर एडिडास केर स्पोर्ट शूज – आह, गज्जब भऽ जेतैक।

हमर सारि-सरहोजि सब खूब प्रसन्न हेती जे चौधरीजी ई फोटो सब अपडेट केला। मोछ पिजौने रही… मुदा ई कि… कनिया तैयारी करैत हमरा बजौली आ संतोला रंगक साड़ी देखबैत भैर-बहुआँ ब्लाउज देखबैत कहली जे “ई ड्रेस केहेन रहत… माँ एहि बेर बरसाइत मे पठौने छल… चलू यैह पहिरिकय चलैत छी इन्डिया गेट!” हम फेर कहलियैन जे देखू, हम बहुत प्रिप्लान्ड छी जे आइ अहाँ केँ जीन्स पहिरैये टा पड़त। कारण ओहि मे हमर लगानी सेहो नीके भेल अछि। एक प्राइवेट कंपनीक एकान्टेन्ट लेल कनियांक ओहि ड्रेस पर लगानी, नहि-नहि… अहाँकेँ… हमर मोन राखहे टा पड़त। कनियां फेर सँ हँसैत हमर बात जेना अनसुनी कय रहल छलीह… ओ कनखियाइते हमर मनोभावना केँ जेना सब तरहें बुझैतो जीन्स नहि पहिरबाक शप्पथ खेने बाथरूम मे साड़िये लेने प्रवेश कय गेलीह। हम दरबाजा पर ठाढ हुनका बेर-बेर कहैत रहलियैन आ ओ भीतर सँ बेर-बेर चुड़ी खनकबैत हमरा साड़ी-ब्लाउज पर चुड़ीक कम्बिनेशन मोन पारैत रहली। हम तैयो अपन जिद्द पर आ ओ अपन जिद्द पर… अन्त मे अपन सोचल कल्पना जे जीन्स मे कनियें केँ देखब, आन केँ नहि ओ पूरा नहि भेल आ झगड़ा सेहो भऽ गेल। जखन कि फोटो सब नीके खिंचायल… संतोला रंगक साड़ी आ हरियरका ब्लाउज पर हरियर चुड़ी आ केश मे इन्डिया गेट पर जे जास्मिन (चमेली) फूलक गजरा लगबा देलियैन ताहि सँ ओ आइसक्रीम खाइत काल जे फोटो हमरा संगे खिंचौली ओ जबरदस्त हिट भऽ गेल। एखन धरि ७००० लाइक्स आ ५००० कमेन्ट्स आबि चुकल अछि। सासु सेहो फोन पर धन्यवाद कहली। लेकिन झगड़ा तऽ हमरा भइये गेल जे हमर इच्छाक कतहु कोनो सम्मान नहि आ देहाती कनिया अपने जिद्द पर हमरा झुका देली।

हरि: हर:!!

४. व्यंग्य प्रसंग – ४

प्रवीण नारायण चौधरीक घरक बाहर गेट पर घंटी बाजल, ओ अन्दरे स कहलखिन जे एखन जाउ, काल्हिये विद्यापति स्मृति पर्व समारोह केर वार्षिकोत्सव समाप्त भेल आ अहाँ आइये उठबय लेल आबि गेलहुँ… आब ऐगला साल दिसम्बर केर समारोह सँ पूर्व मास नवम्बर मे हम जागब।

बाहर स आवाज एलैन जे सर, हम गृहमंत्री राजनाथ सिंह केर डाकिया छी, ओ जे अहाँ अपन पुत्रक….

प्रवीण नारायण चौधरी बिच्चे मे बात भँपैत मोन पाड़लन्हि जे बाप रे… ई त हमरे काज सँ आयल अछि…. कहलखिन जे,

“एह त से पहिने न कहितहुँ…. आउ-आउ! पाँजे पर देने चलि आउ….” –

ओ जे खट्टरकाका केँ नोत देबय लेल आयल छल तेकरा जेना कहने रहथिन जे दु-चारि गो गाछो-ताछो धंगायत त कोनो बात नहि…. मुदा नोत देबय लेल आयल छी त पाँजे पर देने चलि आउ।

प्रवीण नारायण चौधरी सेहो किछु ताहि अन्दाज मे गृहमंत्री राजनाथ सिंह केर पठायल तथाकथित डाकिया केँ आबय लेल कहलनि।

क्रमशः…..

हरिः हरः!!

(आब फेर कियो गोटा ई नहि कहब जे तेकर बाद कि भेलैक…)

५. व्यंग्य प्रसंग – ५

एक बेर मुसरी हाथी के ४-५ बेर उठक बैठक करा देलकैक….

बात रहैक जे कोनो पुरान सनक ५ सितारा होटलकेर बार के कालीन तर मे रहयवला मुसरी कोनो गेस्ट द्वारा लेल गेल व्हिसक्कीक गिलास पीलाक बाद कनी छोड़ि गेलाक बाद ओ मुसरी चुटुर-चुटुर पीब लैत अछि आ ओकरा वैह बेसी भऽ जाएत छैक। ओतय सँ ओ मस्त हवा खेबाक लेल बाहर निकैल पड़ैत अछि, आ एम्हर-ओम्हर घूमि शहरक बीचोबीच रानी पोखरि पर जाय ओतय राजाक हाथी केँ नहाएत देखि ओकरा जोर सँ आवाज दय केँ ‘कम हेयर’ कहैत बजेलक… आ तेकर बाद…. हाथियो ओकर मूड देखि मजा लेबाक लेल नजदीक अबैत छैक आ फेर मुसरी,

“सीट डाउन”

हाथी बैसि जाएत छैक… तखन फेर मुसरी,

“स्टैन्ड अपन”

हाथी ठाढ भऽ जाएत छैक… तखन फेर मुसरी,

“सीट डाउन”

एना दु-चारि बेर हाथीकेँ उठक-भैठक करेलाक बाद फेर मुसरी,

“यू नो, हम तोरा किया एना उठा-बैठा रहल छियौक?”

तऽ हाथी पूछैत छैक जे कियैक सरकार… तखन फेर मुसरी…

“अरे, एक्चुअली, हमहुँ दिन मे एतय नहाय लेल आयल रही…. अपन जंघिया एतय बिसैर गेल रही कपड़ा बदलबाक बाद… वैह चेक कय रहल छलियौक जे कहीं तूँ हमर जंघिया तऽ नहि पहिरि लेलें!!”

हाथी केँ हँसी लागि गेलैक, त फेर मुसरी…

“अरे, तोरा हँसी लगैत छौक? कहियो हमरे जेकाँ तहुँ पीब लेमे तखन पता चलतौक जे तोरा सन-सन कतेक केँ हम पैदा केने छी।”

फेर दुनू हँसैत अपन घर दिस विदाह भेल।

खिस्सा खतम – पैसा हजम!!

हरिः हरः!!

६. व्यंग्य प्रसंग – ६

“बाबू हौ, हमहु अध्यछ बनब!”

“चुप खच्चर! एला हे अध्यछ बनय! बुझितो छिहीन जे अध्यछ कि होएत छैक?”

“ईह! आबो नै बुझबैक! एतेक दिन पिछड़ल वर्गक रही। पेपर-तेपर पढब नहि जनैत रही। आब त हाथ मे मोबाइल आ फेसबुक के टन-टन घंटी। हौ, दिल्ली मे पदय छै त एतय टेंगराहा मे गन्हाएत छै। मुदा तूँ कि बुझय गेलऽ ई सब।”

“रे करमकूट! घर पर बैसिकय एनएच मे काज केले त २ गो पाइ भेलौ आ ई लोलका मोबाइल कीनि लेलें त हमरे कहइ छँ जे हम कि बुझबइ सुगराहा? बापो स जेठ भऽ गेलें रे?”

“हौ बाबू! छोड़ऽ ई सब बात। हमहुँ अध्यछ बनब से मैनजन स बात करह। पाइयो खर्च हेतैक त करब।”

“मैनजन जाबत जियत सार दोसर कियो अध्यछ नहि बनत। हम सब एकता मे बान्हल लोक छी। बुझलें रे हरासंख?”

“हौ! चैटलाइन मे ओहि दिन अध्यछ बनल छलय फेसबुक पर। हम देखलियइ जे आइ-काल्हि अध्यछ बनय ल बस १० गो अपन मनक नाम लय लाइक बटन थिच-थिच-थिच आ अपन लोक के घिच-घिच-घिच!”

“ए! ई छौंड़ा के त बुझाइ हय जे सब दुनिया मोबाइले मे हय। खच्चर थिच-थिच-थिच आ घिच-घिच-घिच मे रहय है। जो रे कपरजरुआ! थिच-थिच-घिच-घिच मे अध्यछ तोंहे बने।”

“……”

हरिः हरः!!

७. व्यंग्य प्रसंग – ७

नवका नेताः मिस्टर बुफैलो

आधुनिकताक क्रान्ति या विज्ञानक चमत्कार मात्र मनुखे लेल कियैक, एहि सँ पूर्ण दमन आ उत्पीड़नक अनुभूति पबैत एकटा गामक सब पोसा जानवर सब सुतली राइत मे अपन विशेष आवाज सँ खुट्टा पर बन्हले-बान्हल वार्ता शुरु कएलक। बड़-बुजुर्ग सब जे छल ओ सब पहिने अपन-अपन स्मृति सँ विषय पर संबोधन केलक। ओकर सबहक साफ कहनाए भेलैक जे मनुखक आगाँ ज्ञापन देलाक बादो कोनो तरहक असैर नहि भेल। फल्लाँ-फल्लाँ विद्रोहो केलक, खुट्टा तोड़लक, मालिक केँ लथारि सँ पछाड़लक, सामूहिक हड़ताल सेहो भेल, हर जोति लौटैतकाल बरदो-पारा सब एकाएक हुड़दंग मचेलक मुदा, मनुष्यक चतुराई सँ ओकरा सबकेँ पहिरायल नाथ पर विजय प्राप्त करब संभव नहि भेल, कारण पेटक भूखरूपी आगि जखन स्वयं केँ पीड़ी दैत अछि आ गाम-घरक परिवेश मे बिना मालिकक कुट्टी-सानीक ओकर भूख नहि मेटाइत अछि तखन ओकर सबहक सब आन्दोलन फेर ध्वस्त भऽ जाइत अछि।

दोसर पीढीक जानवर सब ओहि बात केँ आत्मसात करैत मनुखक चतुरता सँ जानवर नहि पार पेबाक कारण निकालैत बाजल जे देखू, हमरा लोकनि आइयो कतेक मजबूर छी… हम सब खुट्टे पर बान्हल-बान्हल एक-दोसर सँ अपन विशिष्ट भाषा मे वार्ता कय रहलहुँ अछि। मनुष्य कतेक आगाँ चलि गेल। आब तऽ असगरो मे कान मे किदैन सटाकय बजैत भेटैत अछि। हम सब हर जोताइ मे काज करैत रहैत छी, मनुख सब ‘आउ-आउ’ सेहो नहि करैत अपन बढैत दुनिया मे लागि गेल अछि। खेत जोतबाक लेल सेहो हमरा सबहक पूछ कम पड़ि रहल अछि। ट्रैक्टर आ मशीन आदि सँ ई सब खेत जोति लैत अछि। जमाना कतय सँ कतय आबि गेलैक। हमरा सब ओतहि छी। दूधो दुहय सँ पहिने किदैन एगो सुइया भोंकि दैत अछि, हमरा सबहक शरीर सँ बुझू जे खूनेकेँ दूध बनाय ४ के बदला ८ सेर दुहि लैत अछि।

तेसरका पीढीक एकटा नंगट परू बाजल – बुझि गेलहुँ! बुझि गेलहुँ! अहाँ सब सँ किछु होमयवला नहि अछि। मनुख संगे मनुखेवला बुद्धि लगाकय नटवारलालपंथी करैत काज नहि कय सकलहुँ। आब एना पार नहि लागत। जाइत छी हर जोतय लेल आ कहैत छियैक जे आन्दोलन पर रही। मालिकक डाँड़्ह तोड़लहुँ पेट भरय लेल तऽ कहैत छियैक जे हड़ताल मचेलहुँ। देखू हमरा! हम सब अलगे युनियन बना लेलहुँ। मनुखक बुद्धि केँ पार पाबि गेल छी। देखू, कोना-कोना होइत छैक। मालिकक बेटा अबैत अछि, चारि बेर जीभ सँ चाटि जाइत छी। आ कि ओ अपन कान मे सँ ठूसनी निकालि हमरा कान मे लगा दैत अछि। चश्मा उतारिकय हमरा पहिरा दैत अछि। मोबाइल पर कते-कते बाद देखबैत अछि। मनुख संगे हल्का टचिंग सेन्टीमेन्टल व्यवहार करैत हमरा सब करोड़ों वर्षक गुलामी सँ पार पाबि सकैत छी। देखियौक न! कुकूर सब केँ! कतेक जल्दी मनुख संग दोस्ती कय लैत अछि। आब तऽ ओकरा सब लेल दूध, मीट, आदि विशेष पोसाहारक इन्तजाम होइत छैक। मेलकानि सब संग सेहो बेड पर सुतैत अछि। कि कमी रहि गेलैक अछि?

तकर बाद कनेकाल लेल सब बुढ सँ बच्चा धरि ओहि परुक बात सुनिकय मंत्रमुग्ध होइत आपस मे ओकर बात सँ संतोष प्रकट करय लागल। ओ परु तेकर बाद कहलकैक, जानवर तखनहि मनुख सँ जितत जखन चरवाहा, हरवाहा, घसवाहा आदि सँ दोस्ती करैत मनुखक नटवरलालपंथी केँ सिखय। ईहो आइडिया सब जानवर केँ बड नीक लगलैक आ अन्त-अन्त मे ओहि परुक नाम सब कियो हँसैत राखि देलकैक ‘मिस्टर बुफैलो’। ओ मि. बुफैलो मने-मन गद्गद् भेल।

सब जानवर एहि फूट भरिक परूक बात सुनिकय ओकर नव अंदाज मे कैल गेल बात सँ सहमति दैत कहलकैक – ‘ले आइ सऽ तोंही हमरा सबहक नेता! आब बना अपन राज। जेना मोन होउक से करे।’ तहिये सँ ‘मिस्टर बुफैलो’ केँ नवका नेता मानिकय पोसा जानवर सब गुलामी सँ निवृत्तिक आन्दोलन पर रहबाक बात संचारक्षेत्र मे चर्चाक विषय बनि गेल छैक।

८. व्यंग्य प्रसंग – ८
सैँ-बौह केर झगड़ा
बात कोनो बड़ पैघ छलैक सेहो नहि, बस एतबी टा कहनाय कि ‘कतेक नीक होइत जे हमरो बियाह कोनो कोसीक्षेत्रीय मैथिली कन्याक संग होइत….’ – एतेक सुनिते कनियैन समूचा घर केँ माथ पर उठा लेली… अन्ट-शन्ट बाजैत गेली… ‘के करितय अहाँ संग बियाह… ओ तऽ हमर बाबुक मति फिरि गेल छलनि… नहि जाइन कोना एहन पापी संग हमर बियाह विधना लिख देलनि… कहू जे आब धिया-पुताक बियाहक बेर भेल आ अपने मनसा केँ बियाह पर मोन अछि…’।
हे भगवान्! के बुझाबय आब… ‘यै! हमर कहब छल जे एहि दिसका कनियां कहाँ दैन रमणगर…’ – हौ बाबु… बाजहो देली… बिच्चहि मे फाँगिकय बाजि उठलीह… ‘कि रमणगर… माने मन-मियाइद वश मे नहि अछि कि? ऐँ यौ! रमणगर आ किदन-कहाँ… लाजो नहि होइत अछि? ई सब बात बजैत छी। घर मे धिया-पुता सुनत तऽ कि कहत?’
हँसियो लागि गेल… हम कहलियैन “देखू! हम लिखैत-लिखैत जे कल्पना करैत छियैक ताहि समय एकटा बात मोन मे आबि गेल…”।
“बन्द करू, ई लिखब-तिखब! जखन एहने-एहने बात सब मोन मे अबैत अछि…”।
खैर… ई स्पष्ट छल जे लफड़ा हेब्बे करत, कारण किछु दिन सँ जेना हिरोइन सबहक फोटो-फिचर न्युज बनबैत रही तऽ बीच-बीच मे आबिकय ओ कंप्युटरक मुह निहारैत हमरा देखि ईर्ष्यावश ओकरो नहि छोड़थिन आ बेर-बेर साइड स्क्रीन पर अनेको मोडेल सबहक फोटो आदि देखि एतबी बुझथिन जे हो न हो ई सदिखन यैह सब देखैत रहैत छथि… तैँ आर सब बातक चिन्ता छोड़ि ओहि मे डूबल रहैत छथि।
“लिखैत रहैत छी – से कहनाय अहाँक बहन्ना छी… राखी सावंत कोनो गलत नहि कहैत रहैक ओहि इन्टरव्यु मे जे अंकलजी म्युट कर‍-करके आप भी तो मेरा ही डान्स देखते रहते हो और आये हो मुझे समझाने कि प्रदर्शन ऐसा नहीं हो… ई पुरुखक आदत होइते छैक छुलाहवला… जतय देखू ओतय नजरि खराब कय हिलैत-डोलैत रहत।”
एहेन कतेको बात कहि रहल छलीह… आब हमरो लाज होमय लागल जे एहेन कोनो बात नहियो रहैत बेकार हिनकर एतेक बात सुनय पड़ि रहल अछि… अन्त मे शान्त करबाक आर कोनो उपाय नहि देखायल तऽ कहलियैन जे आउ, एकटा सेल्फी संगे खिचा ली… देखबैक जे ओहि पर कतेक लाइक्स आ कमेन्ट्स भेटत अहाँ केँ….। तुरन्ते लरगुजाइत बजलीह… ‘धू जाउ! पहिने तऽ तमशा दैत छी आ फेर कहैत छी जे सेल्फी खींचब…’, हम मुस्कुराइते हुनकर मोनक अवस्था बुझैत कहलियैन जे ‘तामशे पर न ओ शोखी चेहरा पर नजरि पड़त…’, ‘नहि-नहि! रुकू! कनेक तैयारी कय लैत छी। फेर दिल्लीवाली दियादिनी आ भाउज-बहिन सब देखत तऽ कि कहत…, कनियेकाल मे तैयार भऽ के अबैत छी।’
आब अहुँ सब बुझि गेल हेबैक जे आइ-काल्हि पत्नीक संग फोटो खिंचेनाय कतेक जरुरी भऽ गेलैक अछि। फेसबुक चलबैत छी कि नहि?? 🙂 आगाँ बतायब जे कोन सेल्फी खिंचाकय झगड़ा शान्त केलहुँ। लेकिन ताबतकाल लेल ई सीख जरुर लऽ लेब जे एहेन परिस्थिति नहि बनय। मैथिली जिन्दाबाद!!
९. व्यंग्य प्रसंग – ९

garam photoजनकपुर बजार पर रमना आ चुमना पोस्टकार्ड कीन रहल छल। रमना दोकानदार सँ कहलकय जे भाइ हौ, हमरा मैथिली फिल्मी हिरोइन के फोटो दहु। ओकर बात सुनिकय दोकानदार कहलकय मैथिली फिल्म मे कौन ऐसन हिरोइन है जे तोरा निमन लागय हौ। तयपर रमना कहलकय नाम हम आर ओतना कहाँ जानय छी। सुनली जे आजकाल मैथिली फिलिम मे छौंड़ी आर छौंड़ा सब पर बज्जर खसबय है तही लागी सोचली जे तनि देखी कि ऊ कैसन हिरोईन है। दोकानदार के हँसी लागि गेलैक। ओ बुझि गेल जे निछछ देहातक ई छौंड़ा आर पहिले बार जनकपुर बजार के मेला घूमे खातिर अइलय है। एकरा आर के बस ‘गरम फोटो’ चाही, जेकरा ‘हौट फोटो’ कहे हलय हिरो अरु ओ दिना सूटिंग समय मे।

तखन दोकानदार किछु हिरोइनक फोटो ओकरा सबके सामने राखि कहलकय ई सब ‘गरम फोटो’ सब है। तोरा अरु के जे पसिन पड़य हौ ऊ ले ले। हरेक माल ५ टाका दाम हय। रमना-चुमना गौर सँ सब फोटो निहारय लागल। ओकरा आर के सब निमने लागय हलय। पर जेबी मे मेला घूमे खातिर बाबु एगो ५० टकिया टा देने हलय। तब कैसे काम चलतय। आब एगो तऽ लेबे के है। दुनू भाइ मिलके एगो मोतिहारीवाली हिरोइन के फोटो लेबे के निर्णय केलक। फेन दुहु भाइ आपस मे बात करे लागल जे मोतिहारीवाली हिरोइन एन्ने-ओन्ने के हिरोइन से बड़ निमन है। कि रे चुमना? हँ रे रमना!! चल तब दुहु भाइ मिलके ५ गो टाका ढौआ देके ईहे लै छी। हप्ता मे ४ दिन हमे राखब ३ दिन तोंहें रखिहें। चुमना छोट भाइ रहय ईहे खातिर हँ मे मूरी डोलाके दुहू भाइ ऊहे मोतिहारीवालीक गरम फोटो कीन लेलक।

गाम जखन घूरिके लौटल तब बाबु आर पूछलक जे कि सब लेलें बजार पर… दुनू भाइ खुशी-खुशी कहलक जे आर जे भी है… हमरा आर के मोतिहारीवाली हिरोइन जे मैथिली फिल्म मे काम करे है तेकर ‘गरम फोटो’ लेली बाबु। दोकानदार कहलक जे ई गरम फोटो है। बाबु देखलक तऽ सच मे गर्मीक एहसास ओकरो भेलैक। ओ कहलक दुनू बेटा के जे अभी तोरा आर के एकर गर्मी ना पचतउ, ई हमरे पास रहे दे। तोरा आर के लागि १०० फोटोवला भगवान् आर के फोटो पोस्टकार्ड लाबि दय हियौ। ऊहे राख। बापक सोझाँ धिया-पुता चुप हो गेल। गरम फोटो पर बाबु के अधिकार स्थापित हो गेल।

वर्तमान समय मे गरम फोटो के जमाना है। गीतो आर ‘शुभे-हो-शुभे’ उठ गेल आ अब तऽ ‘खा ले तिरंगा पुरिया फाड़ के… जा झार के’ बेसी चलय हय। ई दूधमुँहाँ आर कि जाने गेल जे ‘गरम फोटो’ कि होइ है। बाबु मोनेमोन चपचपाइत सांझ खिन ताड़ी पिबयकाल साथी आर के देखायत सोचैत खुश हो गेल। अहुँ आर के गाम के दोकान आर मे गरम फोटो मिलय है? आ के सिडी – जा झाड़ के?

१०. व्यंग्य प्रसंग – १०

मुंगेरीलाल मैथिल

भुमिका:
हँ! हँ! मुंगेरीलाल वैह जे भारतीय दुरदर्शन डीडी१ चैनल सँ धारावाहिक केर पात्र छल। बेसी उम्मीद ओ बिहारहि केर कोनो भाग सँ छल सैह देखायल गेल स्मृतिमे अबैछ। शहरी परिवेश मे पलायनदंशक शिकार मुंगेरीलाल प्रवेश पबिते अचानक अपना-आप मे कहियो राजनेता, कहियो अभिनेता, कहियो सुपरमैन, कहियो भगवान्, कहियो हाकिम, कहियो राजा… विभिन्न दर्शन करैत छल। धारावाहिक केर खासियत छलैक जे जागल जुग मे जेहन दृश्य सोझाँ अबैक, ओकरा तुरन्त अपना-आप मे ओहि अनुकूल ‘भिन्न-भिन्न चरित्रक’ दर्शन होइक आ ओहि चरित्रक अनुकूल ओकर व्यवहार मे एकबैगे परिवर्तन होइक, धारावाहिक अपन अवधि भरि विभिन्न एपिसोड (भाग) अनुसार ओहि चरित्र केर भूमिका एकमात्र अभिनेता ‘मुंगेरीलाल’ मे देखैक, तैँ एहि धारावाहिक केर नाम छल ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’।

वर्तमान कथा थीक एक विशुद्ध मैथिल छौंड़ा जे जाने-अन्जाने अपन चरित्रमे मुंगेरीलाल बनबाक सपना देखैत अछि। फेसबुक केँ ओ अपन सपना सजेबाक धरातल मानैत अछि। यथार्थ जीवन मे सेहो ओकर व्यवहार अन्ततोगत्वा मुंगेरीलाल समान बनि जाइछ आ तैँ एतय ‘मुंगेरीलाल मैथिल’ केर शीर्षक देल गेल अछि। शब्द संयोग एहि कथाक भाव पाठकवर्ग मे स्पष्ट केने होयत एहि विश्वासक संग ई लेख एतय देल जा रहल अछि जाहि सँ जनकल्याणक होयब निश्चित अछि। मुंगेरीलाल जेकाँ सपना टा देखब आ जीवनक व्यवहार मे ओतबे दाकियानूसी-झाड़फानूसी राखब, हमरा बुझने वर्तमान मिथिला समाज केर ‘अच्छे दिन’ मे बाधक अछि। तैँ एहि कथा सँ सीधा उद्देश्य जे ‘मुंगेरीलाल मैथिल’ बनबाक चेष्टा नहि कियो नहि करय, यैह लेखकक मूल भाव अछि।

कथा-सार:

मुंगेरीलाल मैथिल मध्यमवर्गीय परिवार सँ छल। गाममे जन्म आ पोषण उपरान्त बाबु-माय कतेक कष्ट काटिकय शहर मे सेहो पढौने छल। चौतरफा दबाव छल मुंगेरीलाल पर जे ओ अपनाकेँ सुयोग्य प्रमाणित करय। शिक्षाक ऊँचाई आ गुणस्तर पर ओकर विवाह सेहो एकटा पैघ घरक बेटी संग कए देल गेल छलैक, जाहि मे भरपूर दान-दहेज सेहो लेल गेल छलैक। परिवार, समाज आ सासूर मुंगेरीलाल मैथिल सँ जे अपेक्षा करैत छल ताहि अनुसार यथार्थ मे पुष्टता ओकरा मे अपूर्ण विद्या आ अपूर्ण ज्ञानक चलते नहि आयल छलैक। यैह मजबूरी मे – सबहक अपेक्षा पर ठाढ उतरबाक लेल ओ एक हिसाबे जानि-बुझि मुंगेरीलाल बनि गेल छल। एमटी वेसेल्स साउन्ड मच – ई एकर सपना टुटबाक लक्षण छलैक। पहिने सब कियो बुझि जाय जे मुंगेरीलाल वास्तव मे एकटा सम्भ्रान्त लोक, खूब मेहनती, खूब पाइ कमेनिहार, गाम-सासूर दुनू सँ सबल, राजनीतिक सोच मे सेहो पूर्ण चौकस, मोदी तक केँ सल्लाहकार आ पक्ष-विपक्ष सबहक नीतिकार अपनहि केँ प्रमाणित करनिहार ताकतवर मस्तिष्कक मालिक – कोनो गुण नहि जे मुंगेरीलाल मे नहि भेटय। मुदा एमटीनेस लास्ट नो लोंग – रियलिटी एपियर्स सून, जी! बेचाराक अपन असलियत अपनहि पलायन सँ खोलि दैत छल।

पहिले दिन भेट मे ओ ई जरुर कहि दैत छल जे हमरा लंग दु टा गाड़ी अछि, एकटा लक्जरियस फूल अप्शन पजेरो आ दोसर जे आइ धरफरी मे चढि आयल छी से मारुती ८००… ई वैह मारुती ८०० छी जे अपन कठिन कमाईक पैसा सँ किनने रही, पजेरो बेसीकाल पैघ-पैघ व्यक्ति जेना सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, नितीश गडकरी, राजनाथ सिंह, नरेन्द्र मोदी, सीताराम येचुरी आ भारतक ए-क्लास नेता सब सँ भेटयकाल बेसी प्रयोग करैत छी। सुशील मोदी आ नितीश कुमार आदि सँ बेसीकाल फोनहि पर सब गप भऽ जाइत अछि। कोनो काज लेल बाधा उत्पन्न नहि होइछ। सुखी छी। अपन लोक सब सँ बहुत प्रेम अछि। सबहक लेल जान आ जिगर सब हाजिर कए दैत छी। आदि। भेटनिहार आब एकटा आशा राखैत जे कहियो हमरो काज पड़त तऽ मुंगेरीलाल मैथिल जरुर काज एता, से सोचि खुश-खुश घर घुरैत छथि। आब मुंगेरीलाल सेहो बाग-बाग जे नवका सपना जिनका संग सजेलहुँ ओ दीवाना बनि गेलाह, शुरु होइत अछि फोन-लव आ घंटों-घंटा अपन विभिन्न बहादुरीक गाथा शुरु होइत अछि। ओकरा लंग ओकर शिकायत, बस अपना केँ महान मानि सब ज्ञान मुंगेरीलाल मैथिल देनाय नहि बिसरैत अछि। यैह ओकर सामान्य जीवनशैली छैक।

ओहो दिन दूर कहाँ जे सामनेवला केँ कोनो काज पड़ि गेलैक आ ओ मुंगेरीलाल मैथिल सँ कहि देलक जे कने भाइ हमरा फल्लाँ नेता सँ – फल्लाँ पार्टी सँ ई काज करबा दितहुँ…. मुंगेरीलाल मैथिल सहजहि गछि लैत छल। दिल्लीक दिलवाली भूमि पर सबहक दिल आ दिलेरी ओकरा सँ छूपल थोड़ेके न छैक, बस दुइ दिन बचल अछि ओकर एकटा देहरादूनक प्रोजेक्ट पूरा होइ मे, ओ बड जरुरी छैक कारण विदेश सँ क्लाइन्ट सब इन्दिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विमानस्थलहि पर ओकरा संग इन-ट्रान्जिट मिटींग रखने छैक, सेम फ्लाइट सऽ ओकरा सबकेँ रिटर्न पठा देत तेकर बाद चलत ओ अहाँक काज कराबय। बस दुइ दिन रुकि जाउ। हे प्रभु! दुइ दिन रुकनाय कोन बड़का बात भेलैक, जैँ एतेक दिन तैँ दुइ दिन आर। हौ बाबु! मुंगेरीलाल मैथिलक वादा आ फेर ई अन्तिम दुइ दिनक समय…. बितैत बेर नहि लगैक, आ तेसर दिन मुंगेरीलाल मैथिलक फोन मे अहाँक फोन स्पेशली डिजाइन्ड सेट अप सँ डिसकनेक्ट अछि। आब आशा पालनिहार लेल तऽ ई बड पैघ दिन छलैक, आखिर सपना देखबाक अधिकार केकरा नहि छैक।

एम्हर शुरु होइक मुंगेरीलाल मैथिलक उनटा ड्रामा – “सार! कि बुझैत अछि अपना आप केँ… हमर भाइ फल्लाँ (अहाँ) वला एकटा छोट काज कहलियैक… सत्रह गो रस्ता देखा देलक… सार हेन्ना…. सार मेन्ना…. सार टेन्ना…” घंटौआ फोन-लव केर समय फेर फोन आबि जाइक मुंगेरीलाल मैथिलक ओहि आशा पोसल लोक लग आ ओम्हर सऽ ई कथा-गाथा शुरु भऽ जाइक। ओ काज तऽ नहि भऽ पायत, लेकिन चिन्ता नहि करू, विदेशिया पार्टी सब संग नीक वार्ता भेल हँ, अहाँ लेल किछु उमदा अछि मुंगेरीलाल मैथिल लंग।… भरोसा… भरोसा… गप्प…. गप्फ… गप्पा! कतेक लोक बुझि गेल जे वास्तव मे मुंगेरीलाल खोखला ढोल मात्र छी, एकरा जतेक जोर सँ पीटब ई ततबे आवाज टा करैत अछि। बाकी ई शून्य!! आब अहाँ बुझलहुँ तऽ बुझलहुँ, ई गप कतहु बजलियैक कियैक… बाजि देलियैक… तऽ आब देख लियौक मुंगेरीलालक बकथोथी! फेसबुक सँ शुरु होइक ओकर तीन पुस्त केँ उकटनाय – ओकर बाप एना, ओकर बाबा एना, ओकर खानदान एहेन, ओकरा लंग औकात कि… कननी, बजनी, हगनी, मुतनी, सब कला मे मुंगेरीलाल मैथिल निपुन – बस कलाक इजहार करैत अपन परिवारक संग जीवन गुजारैत रहल। कनी दिन मे ओ टूटल, फेर कनी दिन बात दोसर टूटल… टूटिते रहल, लोक भगिते रहल। तखन दिल्ली सन जगह पर कोनो लोकक कमी छैक। जेकरा आइ ठकब ओकरा सँ दोबारा भेंट तहिये होयत जे फेर शुरु सँ सेम पैटर्न पर मुंगेरीलाल मैथिल जेकाँ ओकरा ठकू, ओहो ठकेलाक बादे याद करत जे ‘अरे राम! एहि सँ पूर्वो यैह मुंगेरीलाल मैथिल ठकने छल।’

जँ अपन इज्जत सँ कनिकबो लगाव हो तऽ एहन-एहन मुंगेरीलाल मैथिल सँ दूरे टा नहि रहू, सोझाँ पड़य कि मोन पारि दियौक, ‘कि रे मुंगेरी! आइ धरि जतेक बजलें तेकर एको प्रतिशत काजो केलें।’ ओ अपनहि नांगरि सुटका कय दूर रहत।

हरि: हर:!!

अनुरोध: ई कथा-सार पूरा पढलाक बाद अपन प्रतिक्रिया आ सुझाव जरुर व्यक्त करी जाहि सँ पूर्ण कथा लेखन मे लेखक केँ सहयोग भेटत। मैथिली भाषा मे पठन संस्कृति फेर आबि जायत एहि कामनाक संग समस्त युवा मैथिल सँ अपन भाषा पढबाक, लिखबाक आ संवर्धन-प्रवर्धन लेल प्रयास करबाक अनुरोध करैत छी।

११. व्यंग्य प्रसंग – ११

मिथिला मे आन्तरिक शत्रु जे एक-दोसर केँ टांग घिचय लेल बेहाल रहैत अछि…. तेकरा लेल एक संदेशः

तूँ जरमें तऽ जर मैथिली हँसबे करतौ!
कियो मरमें तऽ मर मैथिली जीबे करतौ!!

जितौ एको बेटा मिथिला उठबे करतौ!
करतौ काज महान पौरुख जगबे करतौ!!

केलें कते प्रहार फेर-ओ सम्हरबे करतौ!
लिपिक केलें खून भाषा रहबे करतौ!!

लडतौ मिथिलापुत्र राज्य बनेबे करतौ!
गणतंत्र में अधिकार अपन ओ लेबे करतौ!

मिथिला पुण्यक भूमि ई चमकबे करतौ!
संस्कारक सींचल भूमि सोन उगलबे करतौ!!

हरि: हर:!!

१२. व्यंग्य प्रसंग – १२

एक छल आन्डु दोसर छल गैन्डु! वृहस्पति दिन अबैत-अबैत गैन्डु बताह होइत छल आ सालमें एक मास (कठोर जार) पडला सऽ आन्डु सेहो बताह होइत छल। जारक मासमें कतेक बेर एहेन होइत छलैक जे संयोग मिलि जाय आ दुनू संगे बताह बनि जाइत छल। बतहपनीके समय ओ कोनो गन्दा हरकत नहि करय लेकिन एक कोठली में बन्न भऽ लागय समाजके गरियाबय। आन्डू कहैत जे शिवशंकर बाबु के ओ शीशो नहि काटक चाहैत छलन्हि, ओकर वृद्धि हमरा हिसाबे ५ वरख आरो होइतैक। आ कि गैन्डू शिवशंकर बाबु के नामे पचासो गो गैर पढनाइ शुरु करैत छल। एम्हर शिवशंकर बाबु के कि पता जे भाइ हमरे नाम लऽ के आन्डु-गैन्डु गारागारी कय रहल अछि… लेकिन हुनकर छोटका एगो भाइ ई सभ सुनि लेने छल से कहलकैन जे भैया हौ! सार पगलबा फूसियाहा काल्हि तोरे नाम सऽ गैर पढि रहल छलह। शिवशंकर बाबु के बड आश्चर्य लगलैन जे कि बात भेलैक परसु तक तऽ ओ दुनू तोरे संग सटासटी खेलैत छल आ आइ बापतुल्य के गैर पढलक? हुनका नहि पता छलन्हि जे वृहस्पति सेहो ३ दिन पहिने बितलैक आ जाड सेहो बड कठोर पडि रहल छैक। बादमें छोटके समझेलकैन जे छोडह सार के – पहिले ई बिपरीत समय ओ सभ अपन जाने कोहुना के जोगाबय, समय नीक रहैत छैक तऽ सभ बात हमरहि सऽ पूछि के करैत अछि आ हम जेना चलेबैक तहिना चलत। एखन अपनहि जाने बेहाल अछि आ एगो कोठरी में बन्द भऽ के गरियाबय के पुरान आदैत छैक। किछुवे पागल के संगति रहैत छैक आ कोनो जोगरक नहि अछि सार, अपनहि छेरैत अछि आ फेर अपनहि साफ करैत अछि।

शिवशंकर बाबु कहलखिन जे ठीके कहैत छह छोट! हाथी चले बजार – कुत्ता भूके हजार! जखन अपने जान लेल झखैत अछि तऽ कहू जे सार के हम कि करियौक। जाय दही! जखन ठीक भऽ जाय तऽ हमरा सऽ भेट करय कहिहे सरबा के!

हरि: हर:!!

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