एक दर्जन व्यंग्य प्रसंग
– प्रवीण नारायण चौधरी
१. व्यंग्य प्रसंग – १
“मैख गेलहुँ! मैख गेलहुँ!! तिनू ठाँ मैख गेलहुँ!!” घूरन झा चिकरैत-भोकरैत अचानक मिलन विहार चौक पर दिल्ली मे लोक सब केँ सोर करय लगलाह।
बगले मे फूदन मोची जे हुनकर जुत्ता डेली चमकाबैत छल ओ बाजि उठल, “यौ घूरन बाबु! अहाँक जुत्ता छूबि साफ केलहुँ हम आ मैख गेलहुँ अहाँ?”
घूरन बाबु ओकरा उदास आ खौंझाएत कहलाह, “रौ बूरि! तोरा साफ करय देबा सँ पहिने अपने हम जुत्ता मे जे लागल छल तेकर छूबिकय चेक करबाक लेल हाथ सँ छूबि लेने रही। पहिने पियर-पियर देखि किछु आरे बुझायल छल… आ फेर…।”
फूदन कहलकैन, “से त अहाँक आदति देखैत छी। गुंहो पर फेकर रहत त पाइ उठा लेब। जरुर ओहि पीरा मे सोनाक भ्रम भेल होयत।”
घूरन बाबु फूदनक दिमाग केँ काट नहि पाबि कहि उठलाह, “ईह! तूँ कोन दूधक धोल छँ? पियर धातु जेकाँ लगतौक त तूँ नै उठेबहीन कि?”
फूदन केँ जोरदार हँसी लागि गेलैक। ताबत रामू मंडल सेहो पान दोकान सँ फांगिकय बाहर आबि गेल रहय मिलन चौकक ओहि स्थान पर जतय घूरन झा तितम्भा पसारने रहैथ। सब कियो जिगेसा केलकैन जे कि भेल घूरन बाबू। जे जेम्हर सँ आबय, एतबे पूछय कि भेल यौ..? घूरन बाबु कहैत – कहैत थाकि गेलाह त फूदन सब केँ कहय लागल जे भेलैन ई जे घूरन बाबू मखलाह गुंह मुदा बुझलकिन पियर धातु। चेक करबाक क्रम मे पैर मे सँ उठा हाथ मे छूलनि आ फेरो विश्वास नहि भेलैन त नाको में सुंघिकय चेक केलैन। अन्त मे ओकर गंध सँ प्रमाणित भेल जे ई आर किछु नहि गुंहे छल।
सब कियो ठहाका मारिकय हँसय लागल। घूरन बाबु एम्हर-ओम्हर ताकि पानिक जोगार दिस धोबय लेल चलि गेलाह। रामू मंडल बाजि उठल, “बुझू! एहेन-एहेन पढुआ बाबु केर जखन ई हाल अछि तखन हमरा आरक धिया-पुता त सहजहि बोनिहारक धियापुता थीक। ओ सब कि बुझय जायत मिथिला चौक केर मैथिलत्व।”
फूदन फेर रामू मंडल केर ई जिलेबी जेकाँ घूमल बात नहि बुझि सकल। ओ पूछलक जे बुझाकय कहह। रामू तखन ओकरा बुझबैत कहलक, “रौ फूदन! देखैत नहि छिहीन अखिल भारतीय मिथिला पार्टीक जन्मौटी छौंड़ा सब दिल्ली मे अभियान चलबय छै जे मिथिला राज्य अभियान मे जुड़ू… से जुड़ल लोक तीन ठाँ मैख जाएत अछि, सेहो एहेन लोक जे गुंहे लागल जुत्ता तोरा हाथ मे दकय साफ करबबैत छौक। मुदा पीरा रंग देखि ओ भ्रम मे पड़ि जाएछ। ओकरो अपन आदति मुताबिक सोने बुझिकय चेक करय लगैत छैक।”
फूदन कहलकैक, “हौ! जीवन जिबय लेल कर्म करब बेजा नहि। ई त हमर काज छी जे जुत्ता सिबी, पालिश करी, बनाबी। मुदा लोभ मे आबि जुत्ताक शोल मे सोना ताकय लागी आ ताहि क्रम मे गुंह छुआय…. ईहो कोनो बात भेलैक। सीधा बात छैक जे घूरन बाबु बड बुधियार बनला तैँ तीन ठाँ मखलाह। पुरना लोक कोनो गलत नहि कहने छैक।”
रामू कहलकैक, “छोड़ हँटा। तूँ एखन नहि बुझबिहीन। स्वार्थी लोकक कारणे सब लोक ओहि ठाँ जाय सँ डेराइत अछि। स्वार्थक सीमा देखिते छहीन जे जतय अपन नाम हेतैक ओतय जी-जान एक करइ य आ जतय देखलक जे एतय किछु प्राप्ति नहि होयत, ओतय सँ कटि जाए य।”
फूदन-घूरन कनीकाल आपस मे गपियाएत रहल, घूरन बाबु साबून सँ हाथ धोए – मुंहकान साफ कय सेन्ट-वेन्ट मारिकय आबि गेलाह। चमचमाइत जुता मे पैर घोंसियबैत एकटा नमड़ी दैत फूदन केँ कहलखिन, “बुझल छौक न! जहिया जखन जतय कहबौक, भीड़ लगबय लेल आबि जइहें। एहिना मालामाल करैत रहबौक।”
हरिः हरः!!
२. व्यंग्य प्रसंग – २
एकटा एहेन कोढि लोक छल जे बंसी पाथि देने छलैक, आ अपने महारे पर छाहरिक गौर मे ओंघरा गेल छल। एकटा कोम्हरौ सऽ कोढियेक गौंआँ छौड़ा आबि ओकर बंसी मे माछ केँ खोंटी करैत देखि ओकरा उठेलकैक – हे रौ! ललित! उठ-उठ! देख माछ खाइ छौ तोहर बंसी मे।
ललित ओकरा जबाब देलकैक – रौ! तऽ कने तोंही देख न दे। वास्तव मे माछ खेबे टा नहि तरैला डूबेलकैक तऽ ओ छौंड़ा माछो ऊपर कय देलकैक। आ कहलकै, “ले सार! २ किलो के रौह ऊपर भेलौ।”
ओ कोढिया कहलकैक, “हे! कने छोड़ा कऽ ओहि खन्ता मे धऽ दही जाहि मे पहिने सऽ दू टा फरी मारिकय तोरे जेकाँ एकटा आरो आयल छल संगी से राखि देने अछि।”
आब ओहि छौंड़ा केँ रहल नहि गेलैक… माछ-ताछ छोड़ाकय ओना ओहो खन्ता मे राखि देलकैक… बोर लगाकय बंसियो पाथि देलकैक। आ कोढियाक निचैन भऽ के सूतल देखि कहलकैक… “हे रौ ललितबा! आब तों बियाह कय ले। धियापुता हेतौक तऽ माछ मारि-मारि खुएतौक।”
तऽ ओ कोढिया कहलकैक, “हे रौ मोहना! हम तऽ बाउ के कय बेर कहलियैक जे देखहक कतहु। मुदा कहाँ कोम्हरौ सऽ घटक एलौ?”
छौंड़ा कहलकैक जे हमहुँ सब ताकि दियौक कि कथा?
तऽ ललितबा चट दिना जबाब देलकैक, “हँ रौ! देखहीन न कतहु। मुदा हे ओ गर्हुआर मौगी हेबाक चाही।”
“धियापुता चाही ताहि लेल बियाह करत, मुदा मौगी गर्हुआर चाही!” छौंड़ाक बुझय मे आबि गेलैक जे ई महान कोढिया थीक। एकरा सँ पैघ कोढिया दोसर कियो एहि संसार मे नहि भऽ सकैत अछि। ताबत काल एकटा आरो फरी निकालि ओकरा इज्जत सहित खन्ता मे राखि, बोर लगा ओकर बन्सी पाथि ओ छौंड़ा आगू बढि गेल।
कोढिया आराम सऽ पड़ल रहल।
हरि: हर:!!
३. कनियां सँ आइ फेर झगड़ा भऽ गेल!!
(व्यंग्य प्रसंग)
काल्हिये सँ हुनका कहैत छलियैन जे “प्रिये! हमर सब संगीक कनियां जीन्स पहिरैत छैक। सबहक कनियां कनेकबो कनियां सनक बुझाइते नहि छैक। एखनहु जेना छौंड़िये-नौरी जेकाँ कमसिन जबान – फिल्मी हिरोईन समान! से प्रिये! अहाँ सेहो काल्हि हमरा संगे ईन्डिया गेट पर जे घूमय लेल चलब तऽ जीन्स वला सेट जे हम अहाँ लेल खास रूप सँ कीनकय अनने छी, वैह पहिरि के चलब।” मुदा ओ एकरा मजाक मे टारि देलनि। जखन कि हम सिरियस रही, राति एक बेर कान मे सेहो फुसफुसाइत-वार्ता काल सेहो मोन पारि देने रहियैन। “प्रिये! ओहि जीन्स केर खासियत छैक, जतेक तक झाँपब ओहू सँ जबानीक ओज छलकैत छैक, बुझू जे हमरा एकदम घायल कय दैत अछि।” ओ बस मुस्कुराइत हमर मुँह टा तकने छलीह, तऽ एना बुझायल जे ओ राजी छथि। मुदा फेर मोन मे शंका हुअय जे हमर कनियां तऽ निछछ देहाती लोक, दिल्लीक दिलवाली भूमि पर रहैत दिल्लगीक ढेरो रास इतिहास देखिते स्वयं सेहो दिलवाली दुलहनियां बनि गेल छलीह। तैँ, कनेकबो शंका नहि छल जे काल्हि जखन सप्ताहांत पर ओ अवश्य स्पेशल ड्रेस पहिरिकय हमरा संग घूमती। ओहो सप्ताहांत जेकरा विकेन्ड कहैत छैक आ जाहि दिन लोक कतहु घुमय लेल जाइत अछि आ पत्नीक संग फोटो खिचबैत फेसबुक पर सेहो अपडेट करैत अछि … ‘अन इन्डिया गेट – विद माइ डार्लिंग स्वीटी… अन विकेन्ड…’ आदि।
भोरे सँ हम मोने-मन अपन कनियां केँ जीन्स आ ओ टप जाहि सँ जबानीक शबाब कतेको ठाम सँ मुह बबैत फ्लाइंग किस पठबैत रहैत छैक, जेकर चलते हमरा अपने कतेको दिन गड़बड़ अवस्था बनि जाइत छल आन-आन केँ जीन्स आ टप पहिरने देखि… यैह सोचिकय कनियां लेल कीनकय अननहिये रही जे दोसर केँ कियैक देखब… बरू अपन कनियें केँ ओहने ड्रेस पहिरायब आ ओकरे भरपूर देखब। अपनो देखब आ लोको सब केँ देखायब। कनियां हमर ग्रामीण आ देहाती छलीह ताहि सँ कि… ओहो आब देशक राजधानी मे रहि रहल छथि… हुनको क-ट क-के अंग्रेजी बाजहो आबि गेलनि अछि आ फेसबुक पर ओहो अपन अपडेट लगा सकैत छथि। हम जखन ड्युटी पर चलि जाइत छी तऽ बेचारी हमरा संगे खिंचायल बियाहक फोटो सँ लैत मधुश्रावणी आ द्विरागमन-भरफोड़ी अन्य कतेको बेर स्टुडियो मे खिंचायल फोटो सबकेँ एन्ड्राइड मोबाइलक १२ मेगा-पिक्सेल कैमरा सँ रि-स्नैपिंग करैत लगबैत समय कटैत छथि। दिन भैर मे ओ ई गानिकय रखैत छथि जे कोन फोटो केँ कतेक लाइक भेटल, कतेक कमेन्ट आ कतेक लोक देखौंस सँ शेयरो केलक… सब सँ खास बात जे अपन लोक मे के सब लाइक नहि करैत अछि ताहि पर विशेष नजरि रखैते ओ अपनो आ हमरो लोक सब सँ यथार्थ जीवन मे व्यवहार करबाक लेल प्रेरित करैत रहैत छथि। निश्चित आइ ओ जखन अपन गौर-वर्ण शरीर पर टाइट जीन्स आ कटिंगदार टप पहिरती, ताहि मे जे फोटो सब आयत ओ जरुर एक दिन लाइक्स आ कमेन्टक ढेर हिनका देखाओत, ओ खूब प्रसन्न हेती… आदि कतेको रास बात दिमाग मे बेर-बेर आबय आ हम खूब उत्साहित रही। अपना लेल कौशलजी वला मैथिली खादी कमीज आ लेवी’ज जीन्स पर एडिडास केर स्पोर्ट शूज – आह, गज्जब भऽ जेतैक।
हमर सारि-सरहोजि सब खूब प्रसन्न हेती जे चौधरीजी ई फोटो सब अपडेट केला। मोछ पिजौने रही… मुदा ई कि… कनिया तैयारी करैत हमरा बजौली आ संतोला रंगक साड़ी देखबैत भैर-बहुआँ ब्लाउज देखबैत कहली जे “ई ड्रेस केहेन रहत… माँ एहि बेर बरसाइत मे पठौने छल… चलू यैह पहिरिकय चलैत छी इन्डिया गेट!” हम फेर कहलियैन जे देखू, हम बहुत प्रिप्लान्ड छी जे आइ अहाँ केँ जीन्स पहिरैये टा पड़त। कारण ओहि मे हमर लगानी सेहो नीके भेल अछि। एक प्राइवेट कंपनीक एकान्टेन्ट लेल कनियांक ओहि ड्रेस पर लगानी, नहि-नहि… अहाँकेँ… हमर मोन राखहे टा पड़त। कनियां फेर सँ हँसैत हमर बात जेना अनसुनी कय रहल छलीह… ओ कनखियाइते हमर मनोभावना केँ जेना सब तरहें बुझैतो जीन्स नहि पहिरबाक शप्पथ खेने बाथरूम मे साड़िये लेने प्रवेश कय गेलीह। हम दरबाजा पर ठाढ हुनका बेर-बेर कहैत रहलियैन आ ओ भीतर सँ बेर-बेर चुड़ी खनकबैत हमरा साड़ी-ब्लाउज पर चुड़ीक कम्बिनेशन मोन पारैत रहली। हम तैयो अपन जिद्द पर आ ओ अपन जिद्द पर… अन्त मे अपन सोचल कल्पना जे जीन्स मे कनियें केँ देखब, आन केँ नहि ओ पूरा नहि भेल आ झगड़ा सेहो भऽ गेल। जखन कि फोटो सब नीके खिंचायल… संतोला रंगक साड़ी आ हरियरका ब्लाउज पर हरियर चुड़ी आ केश मे इन्डिया गेट पर जे जास्मिन (चमेली) फूलक गजरा लगबा देलियैन ताहि सँ ओ आइसक्रीम खाइत काल जे फोटो हमरा संगे खिंचौली ओ जबरदस्त हिट भऽ गेल। एखन धरि ७००० लाइक्स आ ५००० कमेन्ट्स आबि चुकल अछि। सासु सेहो फोन पर धन्यवाद कहली। लेकिन झगड़ा तऽ हमरा भइये गेल जे हमर इच्छाक कतहु कोनो सम्मान नहि आ देहाती कनिया अपने जिद्द पर हमरा झुका देली।
हरि: हर:!!
४. व्यंग्य प्रसंग – ४
प्रवीण नारायण चौधरीक घरक बाहर गेट पर घंटी बाजल, ओ अन्दरे स कहलखिन जे एखन जाउ, काल्हिये विद्यापति स्मृति पर्व समारोह केर वार्षिकोत्सव समाप्त भेल आ अहाँ आइये उठबय लेल आबि गेलहुँ… आब ऐगला साल दिसम्बर केर समारोह सँ पूर्व मास नवम्बर मे हम जागब।
बाहर स आवाज एलैन जे सर, हम गृहमंत्री राजनाथ सिंह केर डाकिया छी, ओ जे अहाँ अपन पुत्रक….
प्रवीण नारायण चौधरी बिच्चे मे बात भँपैत मोन पाड़लन्हि जे बाप रे… ई त हमरे काज सँ आयल अछि…. कहलखिन जे,
“एह त से पहिने न कहितहुँ…. आउ-आउ! पाँजे पर देने चलि आउ….” –
ओ जे खट्टरकाका केँ नोत देबय लेल आयल छल तेकरा जेना कहने रहथिन जे दु-चारि गो गाछो-ताछो धंगायत त कोनो बात नहि…. मुदा नोत देबय लेल आयल छी त पाँजे पर देने चलि आउ।
प्रवीण नारायण चौधरी सेहो किछु ताहि अन्दाज मे गृहमंत्री राजनाथ सिंह केर पठायल तथाकथित डाकिया केँ आबय लेल कहलनि।
क्रमशः…..
हरिः हरः!!
(आब फेर कियो गोटा ई नहि कहब जे तेकर बाद कि भेलैक…)