सम्पादकीय – १४ जनवरी, २०१८. मैथिली जिन्दाबाद!!
वर्तमान मिथिलाक बाजार पर गैर-मैथिलक नियन्त्रण

मनुष्य जीवन आ कार्मिक पद्धति मे मिथिलावासीक आडम्बर कम नहि, ताहि हेतु बिना अर्थक एको डेग निमैह जायत ई सोचनाइयो ब्यर्थ। आर्थिक कारोबारक मात्रा बढलेपर लोक नकदी अपन जिम्मामे कोना आनत ताहि लेल खेतीबारी आ कि गामहि-घरक बोइन-मजदूरी कमेबाक, कम्मो नगदी सँ काज निकालि लेबाक मानसिकता सँ आजाद होएत आइ पलायन कय परदेश जाएत अछि। परदेश गेल लोक अपने कष्टोमे अछि मुदा अपन लोकवेद-बालबच्चा सभक हरेक मांगकेँ पूरा करय लेल अधिकतम प्रयास करैत अछि जे आर्थिक अवस्था सुदृढ राखी। आजुक स्थितिमे केकरा पास कतेक नगदी पूँजी आ नगदी व्यवहारक प्रवाह अधिक छैक यैह देखिकय ओकर सामाजिक हैसियत आंकल जाएत छैक। अहाँ बिघाक-बिघा खेती करैत तरह-तरह केर उपजा सब उपजाबैत छी, बखारीक बखारी अन्नक भंडार रखैत छी, आर्थिक परनिर्भरता न्यून अछि, नगदी व्यवहार मे आन वेसाह कीननिहारो सँ पाछाँ छी – त वर्तमान मिथिला अर्थतंत्रमे अहाँक गिनती पाछू अछि। नगदीक संग्रह आ नगदीक प्रवाह – यैह निर्णायक थिक आजुक सम्पन्न लोकक। तैँ, खेतियो-बारी पर निर्भर कयनिहार अपन उपजल अन्नकेँ अपना कोठी-बखारी मे भरिकय राखय सँ नीक बनियांक दोकान किंवा आढतियाक ढेरीमे मिला अपना हाथ पर खड़ा-खड़ी कतेक पाइ आयल ताहि सँ अपन लाभ-हानि गनैत अछि। एहि तरहें सेहो कठोर परिश्रम सँ कयल कृषिक आमद घुमा-फिराकय बहरिये ब्यापारिक खाद्यान्न कारोबारक रस्ते देशक अर्थतन्त्र लेल त हितकर बनैत अछि, मुदा मैथिल जनमानसक अवस्था पहिनो सँ बदतर बनल अभरैत अछि। कृषक वर्गकेँ कृषि-उत्पाद लेल कतेक प्राप्ति छैक से केकरो सँ छूपल नहि अछि। आवश्यकता त ई रहैक जे एहि सब उत्पाद केँ एकत्रित करय वास्ते मैथिल समुदायक लोक उचित भंडारण सँ उचित लाभार्जन हेतु बिक्री-वितरणक व्यवस्थापन करैत; परञ्च कोनो जिला हो, कोनो बाजार हो, नगदी पूँजीक प्रवाह मे मैथिलक भागीदारी कतेक ई ग’र सँ देखब त पता चलत जे वर्तमान मिथिला आर्थिक पराधीनताकेँ स्वीकार कएने अछि।
आइ बाजारक दृश्य पर ग’र करू – कि सोना-चांदीमे मिथिलाक सोनार समुदाय आगू अछि? सर्राफा बाजापर ओकर २% भागीदारी कतहु देखाय दैत अछि? नहि कारोबारी – मिस्त्रीये बनिकय, मजदूरियो कमाएत मिथिलाक सोनार यदि मिथिला मे भऽ रहल सोनाक कारोबारपर अपन पकड़ राखि सकल हो त ई मानि सकैत छी जे नगदी प्रवाहक कड़ी मे कतहु-न-कतहु हमरो सभक भागीदारी अछि। विस्मित नहि होयब, ई बस एक गोट उदाहरण थिक – अहाँ ओतय उत्पादनक काज कम, बनियौटी टा बेसी भऽ रहल अछि, कारण छैक जे अहाँ आब मिथिलाक सोनारक गढल गहनापर कम आ पीपी ज्वेलर्स आ चिप्पी ज्वेलरीज केर बड़का-बड़का नामक पाछाँ पागल अपन शहरिया बाजारमे ताहि नामसँ स्थापित कएने कोनो मारवाड़ी सेठक दोकानसँ सोना-चाँदीक गहना कीनयलेल बेसिये अगुतायल छी। आब अहाँ अपन पड़ोसी मैथिल सोनार समुदाय केर भट्ठी घरे मे लगबाकय गहना सामने मे वगैर बेसी मसल्ला मिलेने बनबाबय केर झंझटि सँ मुक्त ओ कोरपोरेट स्तर पर ठगी करैत मार्जिन बेसी कमायमे लागल ज्वेलरीज कारोबारी सँ १८, २० आ २२ कि २४ कैरेट सोना कीनय मे विश्वास करैत छी। ई कैरेट देखि सोना ग्रहण केनिहार (बेटी-पुतोहु कि जमाय आदि सम्बन्धी) सब सेहो संतुष्ट भऽ रहल छथि। सोनाक तर्जपर अहाँ ई देखू जे कतेक समान अपन मिथिला मे निर्मित अहाँ कीनैत छी? दूध-दही, साग-सब्जी, अन्नमे चाउर-गहुंम-दालि आदि, कपड़ा-लत्ता, गृह-निर्माणक विभिन्न समान, जीवनोपयोगी रोटी, कपड़ा आ मकान सँ दबाइ-दारु आ सख-मनोरथक सम्पूर्ण कारोबार मे मिथिलाक पूँजी मिथिलहिमे आपसी मैथिलीभाषी समुदायक हाथे हम सब कतेक कय रहल छी? शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, संचार, कृषि, – कोनो एहेन क्षेत्र देखाउ जाहिमे मैथिलक पूँजी मैथिलहि केर माध्यम सँ गुणात्मक अभिवृद्धि पबैत हो – आर्थिक स्वतंत्र अवधारणाक मार्ग सुनिश्चित करैत हो। ई सब सवालमे माथापच्ची करब भले ब्यर्थ बुझाय – लेकिन एकमात्र निष्कर्ष जे आइ मिथिला परतंत्र अछि – ई बड तीत लागत। हम सब अपनहि मे कतेक टूटल छी जे विश्व भरिक समुदायकेँ ‘भाषा’क नामपर एकत्रित करयवला भाषा सेहो सभक एक रंग अछि, एतबो विश्वास अपना मे नहि रहि गेल अछि। गये दिन देखय लेल भेटैत अछि – हम सब मैथिली भाषा आ कि मिथिला राज्यक बात कोनो एक समुदाय लेल मानि बैसैत छी। धरि, अपन मौलिकताक रक्षा मे आबि गेल ह्रास सँ बाल-मतलब वला स्थितिक बात सुनैत दाँत निपोरि अपन दरिद्रतापर हँसैत टा छी, किछु करबाक योग्य तागति शरीरमे नहि लगैत अछि। एहि परतंत्रता सँ कोना मुक्त होयब, से सोचियो नहि पबैत छी।
अस्तु! वैचारिक चिन्तन सँ व्यवहारिक परिवर्तनक क्रान्ति होयत, ध्यान ओहि दिशामे जरुर लगाउ।
हरिः हरः!!