मैथिली मचान – दिल्ली विश्व पुस्तक मेला विभिन्न दृष्टिकोण मे

मैथिली मचानः दिल्ली विश्व पुस्तक मेलामे मैथिली भाषाक स्वतंत्र सहभागिताक पहिल अनुभवक पाँच दिन बीतल

भारतक राजधानी क्षेत्र मे मैथिलीभाषीक जनसंख्या जतबा विशाल अछि ओतबा विशाल छैक अपन मातृभाषा मैथिली प्रति सभक लगन, समर्पण आ लगाव। दिल्ली सन जगहपर भाषा-साहित्यसँ जुड़ल कार्यक्रममे विगत किछु वर्ष सँ निरन्तर बढोत्तरी भऽ रहलैक अछि जेकर सकारात्मक प्रभाव आब मैथिली पठनीय संस्कृति मे सेहो बढोत्तरी होयबाक लक्षण सँ क्रान्तिकारी परिवर्तन स्पष्ट छैक। धीरे-धीरे वार्षिक उत्सव-महोत्सवरूपी आयोजन सँ आब मासिक आयोजनमे परिणति पेबाक संग-संग छोट-छोट परिचर्चा गोष्ठी, नाट्य प्रस्तुति, कवि गोष्ठी, कलाकृति आ गृह उद्योगक उत्पाद सभक बिक्री-प्रदर्शनी, पोथी सभक बिक्री-प्रदर्शनी, मिथिला चित्रकला प्रदर्शनी, साहित्यिक विमर्श आदिक संख्या दिन-ब-दिन बढैत जा रहलैक अछि। राजनीतिक अधिकार प्रति सचेतनाक प्रसार हेतु सेहो ई सब आयोजन महत्वपूर्ण भूमिकाक निर्वाह कय रहल छैक आर एकर संख्या जनसंख्याक अनुपातमे एखनहु तेहेन उल्लेखनीय नहि भेलाक बादो निरन्तर बढैत कहि सकैत छी। एहि क्रममे २०१८ केर दिल्ली विश्व पुस्तक मेलामे मैथिली-अभियानीद्वय अमित आनन्द ओ डा. सविता झा खान केर संयुक्त प्रयास सँ मैथिली मचान नामक सिर्फ मैथिली भाषाक पोथी बिक्री-प्रदर्शनीक संग विभिन्न साहित्यिक विमर्श ओ पोथी विमोचन आदिक आयोजन एक संग ६ जनवरी सँ १४ जनवरी धरिक उल्लेख्य समयान्तराल वास्ते लगाओल गेल अछि जेकर सफलताक खिस्सा कतेको रास पत्र-पत्रिका आ मीडियाक हाईलाइट्स मे स्पष्ट देखा रहल अछि। सबसँ खास बात ई जे मैथिली जनमानस लेल ई मचान एकटा अमृतक घैला जेकाँ सिद्ध भऽ रहलैक अछि जतय नित्य सैकड़ों-हजारों मैथिलीभाषी पहुँचिकय अमृतक किछु विन्दु अपनो पान करय वास्ते लूटि मचौने छथि।
ओना त एहि तरहक आयोजनक समर्थन मे शुरुहे सँ समय देने छथि प्रवीण कुमार झा – काल्हि पाँचम दिन मेलाक अवस्थापर विस्तार सँ हिनका संग चर्चा भेल। मैथिली जिन्दाबादपर सन्दर्भ मैथिली मचान प्रति अलग-अलग दृष्टिकोणसँ जिज्ञासा कयलापर श्री झा अपन विचार सम्प्रेषित कयलनि अछि। सबसँ पहिने ओ ई कहला जे मैथिली मे पढबाक रुचि स्वयं मे अछि आर परिणामस्वरूप कुल २१ गोट किताब कीनलहुँ। लोकक जुटान आइ पाँचम दिन केहेन रहय – श्री झा कहैत छथि जे लोकक बहुत नीक झुकाव मचान प्रति देखाएछ। आस-पड़ोसक स्टालपर अन्यान्य भाषाक नामी-गिरामी प्रकाशक सभक पोथीक तुलनामे मैथिलीक स्टाल एकटा अलगे रौनक मे देखाएत अछि। टिमटिमाएत तारा सभक बीच पूर्णिमाक चान जेकाँ चमैक रहल अछि मैथिली मचान। अगबे भीड़ अछि आ कि पोथियो खरीदल जा रहल अछि, एकर उत्तर मे कहैत छथि जे पोथीक उपलब्धता समुचित ढंग सँ वर्गीकृत नहियो रहैत स्वयं मैथिली पाठक अपन रुचि मे कविता, उपन्यास, लघुकथा, कथासंग्रह, इतिहाससँ जुड़ल पोथी आदिक मांग करैत छथि, कियो-कियो लेखकक नाम लयकेँ पोथीक मांग करैत छथि, मंच व्यवस्थापक ताहि क्रममे सहयोग करैत उल्लेख्य पोथी बिक्री सेहो भऽ रहल अछि।
मैथिली साहित्य केर अवस्था केहेन देखाएत अछि, ओ कहलनि जे युवावर्गक पाठकक झुकाव अपन भाषा-साहित्यक पोथी दिस देखि ई आइयो ओतबे सुरक्षित आ उज्ज्वल कहल जा सकैत अछि। सबसँ बेसी भयावह तखन होएत छैक कोनो भाषाक भविष्य लेल जखन ओकर पठनीयता आगूक पीढी लेल कोनो औचित्य नहि रखैत हो। मैथिलीक पठनीयतापर सेहो सवाल उठैत रहैत छैक, हालाँकि पाठकक तरफसँ सेहो उपलब्धताक सवाल उठाओल जाएत रहल छैक। मुदा एहि गैप – लेखक आ पाठक बीचक अन्तरकेँ नीक सँ सम्बोधन कयलक अछि मचान। तखन त ई मचान काफी दूर तक जायत भविष्य मे, प्रवीण कुमार झा दाबीक संग कहैत छथि जे ई बहुत दूरे धरि नहि दूरो सँ दूर जायत। मैथिली पोथीक पाठक जाहि तरहें एहि मचानकेँ स्वीकृति आ समर्थन देलनि अछि ताहि सँ स्पष्ट अछि जे मचान ठोस स्वरूप मे बारह-मासा उपक्रमक रूपमे सेहो उपलब्ध भऽ सकत, देशक आन-आन राज्य मे सेहो ई प्रदर्शनी आ बिक्रीक केन्द्र स्थाई-अस्थाई तौरपर चलायत, एहि सब विन्दुपर संचालक लोकनिक संग-संग हम समर्थक सब सेहो चर्चा कय रहल छी।
मचान-दलान-घूर आदि मिथिला संस्कृतिक एहेन ठामक नाम थिक जतय सब कियो एकत्रित होएत कोनो विषय या प्रसंगपर रमणगर चर्चा करैत अछि। मैथिली मचान पर सेहो नित्य कोनो न कोनो विन्दुपर – कोनो न कोनो रचनाकार-लेखक आदिक संग विमर्श स्थापित कयल जा रहल अछि। हालाँकि जगहक कमीक कारण आ विमर्शक वातावरण प्रदर्शनी-बिक्री केन्द्रपर आम भीड़ लेल कम सिर्फ सरोकारवाला लेल बेसी होयबाक कारण तेहेन आकर्षक आ मनलग्गू नहि भऽ रहल अछि; तखन एडवर्टाइजमेन्ट केर मसल्ला त जरुर छी ई। फेर जँ डा. रमानन्द झा रमण, डा. उषा किरण खान, नेपालसँ श्याम शेखर झा, दिल्लीसँ गंगेश गुंजन, शेफालिका वर्मा आदिक प्रस्तुति होयत आर तेकरा फेसबुक लाइव सँ दुनिया भैर मे परोसि सकब त विज्ञापन दूरगामी अवस्स होयत। विमर्शक प्रासंगिकता पर प्रवीणजीक ई विचार भेटल। विमर्श मे यदि ध्वनि-विस्तारक माइक्रोफोन-स्पीकर आदिक उपयोग होएत त ई आरो जनोपयोगी भऽ सकैत छल। तथापि, कम सँ कम लोक ई जानि पाबि रहला अछि जे फल्लाँ-फल्लाँ बिग शौट्स सब एला, हुनका संग फल्लाँ-फल्लाँ बिग शौट्स सब वार्ता कयलनि, वार्ता फल्लाँ-फल्लाँ बिग शौट्स लेखनीपर कयल गेल, आदि। पोथीक मचान पर विमर्शीक विचार में दूरदृष्टिता समुचित रूप सँ अबैत रहल मुदा एकर लाभ दूरगामी नहि भऽ सकल, ओ कहलनि।
यूपीएससी परीक्षार्थी केर क्रय मादे सकारात्मकताक अवस्था रहबाक बात सेहो बतौलनि। मैथिली साहित्यक कोन विधा व्यवसायिकता सम्पन्न लागि रहल अछि, ताहि सन्दर्भ मे हुनकर मन्तव्य रहलनि जे लघुकथा केर बहुलताक संग मैथिली साहित्यक इतिहास प्रति पाठक मे बेसी जिज्ञासा देखैत ई कहि सकैत छी जे एहि सब दिशामे बेसी स बेसी लेखन केला सँ मैथिली व्यवसायिक भाषाक रूपमे सेहो ख्याति प्राप्त करत। ग्राहक सब गीतनाद आ खिस्सापिहानीक पोथीसँ ऊपर उठलाह कि नहि, एहु विषयमे प्रवीणजी सकारात्मक अवस्था हेबाक बात कहलनि। संचालक लोकनिक जे चिन्तन छलन्हि ओ त पूर्ण सफल होएत देखायल, तखन आगाँक लेल हिनका लोकनिक समग्र भाव केहेन लागल – एकर जबाब दैत ओ कहैत छथि जे सोशल मेडिया केर कएक टा आदमी सम्पर्क में छैथ सविताजीक, एकरा आगाँ बढ़ाबय लेल। कइएको हिन्दी प्रकाशक सब सेहो काफी रुचिपूर्वक मैथिलीक गरिमा सँ परिचित भऽ पेला अछि, ओहो सब आगामी समयमे मैथिलीक लेखक सँ किताब लिखबेनाय आ प्रकाशित करैत बाजार व्यवस्थापन मे हिन्दी-अंग्रेजी जेकाँ अर्थ उपार्जनक भविष्य देखि रहला अछि।
अन्तमे प्रवीणजी नवारम्भ प्रकाशनक संचालक अजित आजाद संग शेयर कयल काफी रास अनुभव प्राप्तिक संग पान सेहो खेबाक अवसर भेटल, संग देलनि मैथिली लेखक संघक अध्यक्ष विनोद कुमार झा आ मैथिली कवि – विमलजी मिश्र।
हरिः हरः!!