विशेषांकः दुर्गा पूजाक अवसर पर मैथिली कवि लोकनिक भक्तिभावपूर्ण रचनाक संकलन
मिथिला केँ शक्तिपीठ बहुतो कारण सँ मानल जाएछ। स्वयं जगज्जननी जगदम्बा महालक्ष्मी ‘सीता’ केर रूप मे एतय अवतार लेलनि। ओ कोनो माताक गर्भ सँ नहि बल्कि स्वयं धरा – वसुधा – पृथ्वी – भूमि सँ राजा जनक द्वारा हर जोतलापर कुम्भ मे सुन्दर बालिकाक रूप मे अवतरलीह आर सीता, भूमिजा, जानकी ओ मैथिली नाम सँ प्रचलित भेलीह, पूजल गेलीह आर अपन त्यागपूर्ण मानवीय जीवनक लीला सँ सबहक हृदय केर जैड़ बनि आइयो स्थापित छथि।
मर्यादा पुरुषोत्तम रामक भार्या रहितो राम द्वारा कैल गेल साधारण मनुष्यक चरित्र अन्तर्गत पवित्र सीता मानवीय व्यवहार केँ सम्मान दैत अग्नि परीक्षा देलीह, पति-परित्यक्ता बनिकय गर्भक रक्षा करैत दुइ पुत्र लव ओ कुश केँ जन्म देलीह आ हुनका सबकेँ पितातूल्य बाल्मीकि केर आश्रम मे आश्रय लैत रहितो खूब नीक जेकाँ पालन-पोषण करैत स्वयं सब शास्त्र-पुराणक संग युद्ध कौशल केर सुन्दर शिक्षा देलनि। अन्त मे पिता राम केँ स्वयं आबय पड़ि गेलनि अश्वमेध यज्ञक ओहि घोड़ा केँ स्वतंत्र करेबाक लेल अपनहि वीरपुत्र लव-ओ-कुश केर हाथ सँ; ताहि तरहक तालिम देनिहाएर जगज्जननी सीता छलीह। जाहि धरा सँ ओ स्वयं अवतार लेलनि निश्चित ओ सिद्ध भूमि थीक आर एतय जन्म लेबयवला सब कियो हुनकहि अंशावतार थीक।
अपाटक – राक्षस – दुर्जन त सब ठाँ जन्म लैते रहल अछि, मिथिला सेहो एहि सँ खाली नहि अछि। मनुष्य केर स्वयं प्रकृति मे षट्दोष केर चर्चा शास्त्र करैत अछि। लोभ, मोह, क्रोध जे नरकगामी अछि ईहो तीन केँ धारण करयवला हेब्बे करैत अछि। परन्तु सौभाग्यक बात ई जे एतय देवी दूर्गाक उपासना – शक्तिकेर उपासनाक विशेष विधान अछि जाहि सँ ई षट्दोष केँ ओहिना संहार होएछ जेना देवी शुम्भ-निशुम्भ-रक्तबीत-महिषासुर सहित संपूर्ण असुरक संहार करबाक लीला आदिकाल मे केलनि। वैह देवी अनेक रूप मे पूजित छथि। हमहुँ सब देवीक चरण-शरण मे शरणागत होएत अपन भीतर रहल असुर केर संहार लेल देवीक आह्वान करैत रहल छी। घर-घर मे देवीक पीरी स्थापित अछि। कुमारि पूजन सँ लैत हर तरहक देवी प्रति समर्पित भक्ति साधना एहि मिथिला मे प्रचलित अछि। निश्चिते एहि सुअवसर फेर सँ मैथिली सर्जक लोकनि एक सँ बढिकय एक रचना सब प्रस्तुत करता। मैथिली जिन्दाबाद अपन पाक्षिक केर एक अंक देवी भक्ति विशेषांक पर आधारित रहत, ताहि मनसाय सँ एतय सब भक्तिभावपूर्ण रचना सब संकलित करबाक नियार सँ ई आलेख आरम्भ कय रहल छी। पाठक सँ अनुरोध जे ओ अपन प्रतिक्रिया मे देवी प्रति समर्पणक भाव राखैथ।
आरम्भ अपन एक छोट रचना सँ करैत छी। ई रचना कुर्सों दुर्गास्थान मे गेबाक ध्येय सँ बनेलहुँ अछि।
माँ केँ करी प्रणाम
हे सभक जगज्जननी माँ
चरणन मे प्रणाम!!
दुःख-दारिद्र्यक हारिणी माँ
शत-शत अहींके प्रणाम!!
चरणन मे प्रणाम मैया –
शत-शत अहींके प्रणाम!!
हे सभक जगज्जननी माँ चरणन….
असुररूपी मोरा दुर्गुण माँ
करियौ सदिखन नाश,
असत् अविवेक आसक्ति माँ
होय सतत सर्वनाश,
नवरात्रा नवदुर्गा माँ
शक्तिदात्री प्रणाम!!
दुःख-दारिद्र्यक हारिणी माँ
शत-शत अहींके प्रणाम!!
हे सभक जगज्जननी माँ….
सह-सह दुर्जन शत्रु सँ माँ
रक्षा करू निधान,
बाधा संकट शंका माँ
अज्ञानक करू निदान,
ज्ञानरूपी प्रकाशिनी माँ
भक्तक राखू मान!!
दुःख-दारिद्रयक हारिणी माँ
शत-शत अहींके प्रणाम!!
हे सभक जगज्जननी माँ….
शरण अहींक सदिखन चाही
चरण मे चारू धाम,
माय-पिता-गुरुजन सभ केर
राखि सकी हम मान,
आशीष दियऽ हे जग जननी
पुत्र करै य ध्यान!!
दुःख-दारिद्र्यक हारिणी माँ
शत-शत अहींके प्रणाम!!
हे सभक जगज्जननी माँ…..
शारदीय नवरात्राक मंगलमय शुभकामना!!
हरिः हरः!!