Search

महाकुम्भः सनातनी संस्कृतिक उत्कर्ष अभिव्यक्ति

साहित्यः कुम्भ यात्रा संस्मरण

– धर्मेन्द्र विह्वल

(कुम्भमेला – प्रयागराज सँ वापसी पर)

महाकुम्भः सनातनी संस्कृतिक उत्कर्ष अभिव्यक्ति

पृष्ठभूमि – कुम्भक चर्च

पौराणिक आ आध्यात्मिक मान्यता छैक जे कुम्भस्नान केलासँ जीवनमे नीक आ सकारात्मक प्रभाव पडै़ छै । एहि प्रभावक परीक्षण तँ के केने अइछ जाइन ने, मुदा धर्मग्रंथसबमे एकर महत्वक मादे वेश चर्चा कएल गेल छै । एहि सम्बन्धमे हमर अध्ययन आधिकारिक नहि अइछ । पढ़बासँ बेसी सुनल अइछ आ हमर अध्ययनक सीमाक मादे स्वीकार करबामे हमरा कोनो संकोच नहि अइछ । खायर जे से । कुम्भक समयमे गङ्गा या कोनो संगम (प्रयाग) नहेबाक बड्ड इच्छा रहए मुदा ई इच्छाा पूरा नहि भऽ सकल छल । हमरा परिवारमे करिब-करिब सबगोटे (हमर पत्नी सेहो) इलाहावाद (प्रयागराज) आ हरिद्वारक कुम्भ आ अर्धकुम्भऽक स्नानमे सहभागी भऽ चुकल छथि । मुदा हम समय व्यवस्थापन नहि कऽ सकबाक कारणे नहि जा सकल छलौं । पौराणिक मान्यता अनुसार इलाहावाद (प्रयागराज), हरिद्वार, नासिक आ उज्जैनमे कुम्भक आयोजन होइत छै जे मेलाक रुप धारण करैत छै ।

दिन बितैत जा रहल छलै । सामान्यतया अर्धकुम्भक चर्चा छ वर्ष आ पूर्णकुम्भक चर्चा बारह वर्षपर भेल करैए । विगतमे मोन तँ हमरो छल जे कुम्भमे हमहुँ सहभागी होइतौं । मुदा सायद समयक प्रतीक्षा पूरा नहि भेल रहए । एहिक्रममे महाकुम्भक चर्चा उत्कर्षपर पहुँचि रहल छल । बुझारहल छलए जेना सम्पूर्ण मानव सभ्यता ओतहि अर्थात् भारतक इलाहावादस्थित प्रयागराजमे एकत्रित भऽ रहल होइक । एहिबेरुक प्रयागराजक कुम्भ सम्भवतः विश्वक सबसँ पैघ एहन आयोजन छै जतऽ एकहि जगहपर एतेक बेसी लोकऽक उपस्थिति आ सहभागिता रहलैक । शिवरात्रि (२०८१ फागुन १४ गते अर्थात् फेब्रुअरी २६) दिन समापन होबऽबला ई आयोजन ४५ दिन आयोजित भेल आ एहि आयोजनमे करिब ६० करोड़ लोकऽक उपस्थिति रहल बात मानल गेल अइछ । ई पूर्णकुम्भ जे महाकुम्भक नामसँ प्रचलित अइछ, खगोलीय आ ज्योतिष गणना आ संयोगक आधारपर एक सय चौआलीस (१४४) वर्षक बाद मात्र सम्भव भऽ सकैत छै । एगारहटा पूर्णकुम्भक बाद जे कुम्भ आयोजित होइत छै अर्थात बारहम् पूर्णकुम्भ जे एक सओ चौआलीस वर्षमे अबैत छै ओ महाकुम्भ कहबैत छै ।

कुम्भ प्रस्थान–रात्रिबसक यात्रा

२०८१ फागुन ८ अर्थात २०२५ फेब्रुअरी २० । आइ साँझ साढे़ सात बजे कलंकीसँ बस पकड़बाक छल – द प्यालेस बस । सोफा सिट । हम हमर कार्यालयक गाड़ी चालक यादव गोतामेकेँ पहिने कहने रहियैन । ओ सहयोग केलैन । गाड़ीसँ कलंकी पहुँचा देलैन । नियत समयपर पहुँचल रही । मुदा आधा घण्टा जते विलमऽ पड़ल । करिब आठ बजे बस आएल आ हमसभ अपन स्थान पकड़ि बैसलौं । हम एहिबेर बहुत वर्षक बाद रात्रिवस सेवा प्रयोग कऽ रहल छलौं । करिब छ वर्षक बाद । शायद तएँ, बस सेवाक बारेमे बड बेसी अद्यावधिक नहि छलौं । ई बस चढ़लाक बाद बुझाएल जे नेपालक बस सेवाक स्तरीयतामे बहुत अन्तर एलैए । बसक एहन सुविधासम्पन्न अवस्था कमसँ कम हमर कल्पनासँ दूरक बात छल । सोफा सिट, बोतलक पानि, कम्मल (व्ल्यांकेट)क उपलब्धता साक्षी छल जे हम एहिसब बातसँ जानकार नहि रही । हम आदित्यकेँ कहलियैन – बौवा बस नीक छै ने ? हम तँ नेपालमे एहन बसमे नहि चढल छलौं । बौवा कहलैन– आहाँ बसे कहिआ चढै छी ? आब तँ लम्बा यात्राक बहुतो बस एहने छै । एखने तुरत्ते तँ हम राजविराज गेल छलौं । ओतहु एहने बस छलै ।

हमरा बुझाएल जे हमही अवस्थासँ अद्यावधिक नहि छी । जमाना किछुकिछु बदलि रहल छै आ तकर पर्याप्त जानकारी हमरा नहि अइछ । कोनो विषयक बारेमे हमरा जानकारी नहि भेनाइ जमाना आ समयक दोष नहि, ओ तऽ हमर दोष ने । जमाना तँ आगाँ बढबे करतै । जमानाक पएरसँ हम अपन पएर कते मिला सकै छी, ई त हमर बात अइछ ने । आ, बौवाक आगाँ हम ई बात स्वीकार कएल । जानकारीक अभाव आ सहज स्वीकारोक्तिक समस्याक कारण पुस्तान्तरणक प्रक्रिया बाधित अइछ आ दू पुस्तबीच दूरी बढ़ि रहल छै । हम दुनूगोटे इएह आ एहने बात कऽ रहल छलौं आ बस नौवीसे पहुँचि गेल रहै । रस्ताक अवस्था ओहने बुझाएल । रस्ताक सम्बन्धमे तँ हम पूर्ण जानकार छलौ । बस नहिओ तँ छोटका चारिपहियासँ बरोबरि यात्राक अवसरि भेटि जाइए । लम्बा समयसँ एहि सड़कऽक मरम्मति जारी छै । सड़क विस्तार कऽ चारि लेनक बनेबाक योजना छै । छिटफूट ठामकेँ अपवाद मानी तँ करिब करिब बुटवलधरिक रस्ताक हालति खराब छै आ ई अवस्था कहियाधरि विद्यमान रहतै केओ नहि कहि सकैत अइछ । बस आगाँ बढै़त कनेकाल रामनगर आ बुटवलमे विलमैत चारि नम्बर जीतपुर होइत करिब सात वजे भोरमे तौलिहवा पहुँचल ।

क्यालेण्डरक तारिख आ गते बदलिचुकल छल – २०८१ फागुन ९ गते अर्थात् २०२५ फेब्रुअरी २१ । प्रयागराज जेबा हेतु जे गाड़ी रविजी ठीक केने छलाह ओ दू बजेक करिब आओत से जानकारी छल । गाड़ी लऽ चालक मनिष करिब डेढे़ बजे आबि गेलाह । यात्रा टोलीक आन सदस्य रविजी, हुनकर पत्नी आ एक बचिया रेखा (रवि जीक पड़ोसीक लड़की) स्कोर्पिओ आ चालक मनिषसहित सात गोटेक यात्रा दल दूपहरक ठीक दू बजे आगाँ बढ़ल । दलक भौतिक नेतृत्वक जिम्मेबारी छल मनिषपर आ अन्य जिम्मेबारी छलैन रविजीपर ।

गाड़ी नेपालक बहादुरगञ्ज आ कृष्णनगर होइत बढ़नीमे भारत प्रवेश केलक आ ओतऽसँ बस्ती, हर्दिया चौराहा, सिद्धाार्थनगर, टण्डा, डुमरियागञ्ज, अम्बेदकरनगर, सुल्तानपुर–दोस्तपुर, आजमगढ़, अमेठी, प्रतापगढ़ होइत प्रयागराज पहुँचल । एहिबीच हमरालोकैन हर्दिया चौराहापर चाय पिने रही तँ अमबेदकरनगरमे भोजन केने रही ।

इलाहाबाद तँ नहि मुदा बढ़नी, सोहरतगढ़, बस्ती, महाराजगञ्ज, सिद्धार्थनगर, गोण्डालगायत एहि इलाकाक सामान्य भ्रमण हम पहिने कऽ चुकल छलौं । एहि आधारपर एहि जगहसभक बारेमे हम तुलनामत्मक अध्ययन कऽ सकैत छी आ हमर अध्ययन कहैत अछि, ई क्षेत्र यातायात, भौतिक संरचना, सरसफाई आ व्यवसायक क्षेत्रमे अभूतपूर्व उपलब्धि प्राप्त केलक अइछ ।

हमरासभक गाड़ी रातुक करिब साढे एगारह बजे प्रयागराज आबि चुकल छल । चारुकात गाड़ीक करमान । पार्किंगक समस्या बुझना गेल । गाड़ीक भीड़क आधारपर कुम्भमे सहभागीक संख्याक अनुमान सहजहि कएल जा सकैत छलै । आब मनिष पार्किंगक खोजीमे छलैथ । कनेकालक गोलगोल घुमानऽक बाद अन्ततः मनिष जगह ताकिए लेलैन– लक्ष्मीद्वार बड़ा बघाड़ा । गाड़ीकेँ एतऽ पहुँचलापर हम घड़ीमे समय देखलौं साढे बारह बाजिगेल छल । अर्थात् तारिखमे परिवर्तन आबिगेल छल– २०८१ फागुन १० अर्थात् २०२५ फेब्रुअरी २२ ।

मनिष कहलैन जे संगमधरि पहुँचबालेल सबसँ छोट दूरीक रस्ता इएह अइछ । एतऽसँ घाटधरि पहुँचबामे तीन किलोमिटरक यात्रा तय करऽ पड़त आ तकरबाद संगमघाटक यात्रा । मनिष हमरालोकैनकेँ रस्ता देखा स्वयं गाड़ीमे जा कनेकाल सुतबाक उपक्रममे व्यस्त भऽ गेलाह । आ एमहर हमहुँसभ संगम घाटपर जेबाक यात्रा प्रारम्भ केलौं । एतऽ हमरासभक पथप्रदर्शकक काज कऽ रहल छलीह रेखा । हिनका एतहुका बारेमे किछु जानकारी छलैन जे ई एतऽ प्रयोग करबाक प्रयास कऽ रहल छलीह । हमसभ सेक्टर ६ मे छलौं । हमरासभकेँ सेक्टर ५ मे पहुँचबाक छल । हमसभ बासुकि नाग मन्दिर, नीरन्जन अखाड़ा, दशास्वमेध घाट, पण्टुन पुल, कच्छप द्वार, नन्दी द्वार तथा संगम द्वार आदि होइत संगम घाटदिसिक यात्रा करैत जा रहल छलौं । रस्ताक दुनू कात अस्थायी प्रकृतिक दोकानसब छलै । जतऽ चाय, जल, उपहारक सामग्री, होटल, विभिन्न धार्मिक तथा गैरधार्मिक संस्थाद्वारा भोजनक निःशुल्क स्टल आ चुरा, मुरही, अराँची दाना, मुरब्बा (पेठा) आदि भेट सकैत छलै । एकटा बात तँ निश्चित बुझाएल जे एहि आयोजनसँ स्थानीय अर्थतन्त्रकेँ सकारात्मक प्रभाव पड़ल हेतै । नागा बाबासभक संख्या शायद एखन कम भऽ गेल छै ।

एखन जाएकालमे बड बेसी भीड़ नहि बुझाएल । भीड़ तँ छलैहे मुदा जेना वर्णित छलै तेहन नहि बुझाएल । एकटा बात स्वीकार करहि पड़तै, डेढ़ महिनाधरि एकहि ठाम लोकऽक ई विशाल हुजुमकेँ व्यवस्थापन केनाइ साधारण बात नहि छलै । मुदा किछु अपवादकेँ छोड़ि देल जाए तँ व्यवस्थापन कएल गेलै । १५-२० हजारक संख्यामे निरन्तर सुरक्षाकर्मी, डेढ़ लाखके संख्यामे शौचालय आ मुत्रालय, वस्त्र परिवर्तन कक्ष, स्नानहेतु असंख्य घाटके निर्माण आ व्यवस्थापन, अस्थायी आ स्थायी सडक व्यवस्थापन, डेढ़ दर्जन सँ बेसी विशाल पार्किंग क्षेत्रक व्यवस्थापन कम चुनौतीपूर्ण नहि छलै । मुदा सम्बन्धित व्यक्ति आ निकायसभक सामूहिक प्रयासक कारणे ई सम्भव भऽ सकलै आ नीकजकाँ सम्भव भऽ सकलै ।

भोरक करिब अढ़ाइ-पौनेतीन बजैत हेतै हमसभ संगम घाटपर पहुँचलौ – सेक्टर ५ घाट नम्बर ३२ । हमसभ जाधरि धाटपर पहुँचलौं लोकऽक भीड़ बढ़ल नहि छलै तएँ हमरालोकैन सहजता मूल्यांकन कऽ घाटऽक चयन करबालेल स्वतन्त्र छलौं । ई स्वतन्त्रताक लाभ हमसभ उठेबो केलौं मुदा एकर आनन्द बेसीकाल कायम नहि रहि सकल । बुझाएल एना जे, दसे मिनटक भितर लोकऽक भीड़ बेहिसाब बढ़िगेल हुअए आ से भीड़ बढ़िते जा रहल छलै । जेना सलह कृषि फसलपर फैलैत जाइत छै तहिना एतऽ लोक संगम अर्थात गङ्गा, यमुना आ सरस्वती नदिक मिलन क्षेत्रपर पसरैत जा रहल छलए ।

रविजीक कहल बातक अर्थ हमरा आब नीकजकाँ बुझबामे आएल । ओ यात्रामे निकलऽसँ पहिने तौलिहवेमे कहने रहैथ – प्रयास करब जे हमरालोकैन एकबजेधरि घाटपर पहुँचब आ तीन-चारिबजेधरि स्नानादिक कार्य सम्पन्न कऽ बेसीसँ बेसी साढ़े पाँचबजेधरि प्रयागराज छोड़ि दी । हमसब हुनके बातऽक अनुशरण कऽ रहल छलौं । जँ हमसभ ओहिसँ कनिको विलम्ब होइतहुँ तँ सम्भव छल बड़का जाममे फँसि जैतौं ।

संगममे स्नान

अन्ततः शनि दिन फाल्गुन कृष्ण पक्षक दशमीक दिन प्रयागराजमे चलिरहल महाकुम्भ २०२५ मे स्नान करबाक सौभाग्य भेटल । हमरालोकैन छओ गोटे श्रद्धा आ प्रेमपूर्वक संगममे डुबकी लगा स्नान केलौं । कहल जाइत छै कि ई खाली धार्मिक आयोजन नहि छै, बल्कि मानवता, आस्था, आ सनातन संस्कृतिक महान पर्व छै । ई एक दुर्लभ दिव्य अवसर छै जे एक सओ ४४ वर्षमे मात्र उपलब्ध होइत छै । कमसँ कम चारि पीढ़ी आगाँ आ चारि पीढ़ी पाछाँक लेल ई अवसर उपलब्ध नहि होइत छै । आ बोध भेलाक बाद कि ई आध्यात्मिक शुद्धि, ऐतिहासिक अनुभव, आ सांस्कृतिक समृद्धि जीवनमें प्राप्त होबऽबला दुर्लभ अवसर छै, हम रविजीक सँग महाकुम्भमे सहभागी होबाक नेआर केने रही ।

उपरउल्लेख कऽ चुकलौं जे हमरालोकैन संगम घाटपर पहुँचि गेल रही । ओहिठाम एकटा प्लास्टिक बिछा अस्थायी विश्राम कायम केलौं आ सभकेओक कपड़ालत्ता ओतहि राखल गेल । बेराबेरी जा सभकेओ स्नान कएल । तकरबाद मुन्नी पुनः घाटपर धुपदीप लऽ जा पूजा केलीह । एते सब काज केलाक बाद घड़ीदिसि नजरि पड़ल, पौने चारि बाजिगेल छल । लोकऽक भीड़ बढै़त जा रहल छलै । आब ओतऽसँ जते जल्दि निकलब नीक हएत से विमर्श करैत हमरालोकैन आब फिर्ति यात्राहेतु आगाँ बढऽ लगलौं । ओहिसँ पूर्व आदित्य घाटपर जा दूटा वर्तनमे संगम जल भरि अनलैन । मुन्नी सेहो घाटपर गेलीह आ तखन पूजाकालमे दोनामे जे बाती बरैत छोड़ि आएल छलीह ओकरा जलमे प्रवाह क’ एलीह । हमसभ आगाँ बढऽ लगलौं । एक दूबेर पाछाँ उनटि तकलियै दीपऽक दोना सेहो बहैत हमरेसभजकाँ आगाँ बढ़िरहल छलए ।

Related Articles