भावी पीढ़ी कें सिष्टाचार वा नैतिक मूल्य केर शिक्षा देब आवश्यक

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लेख विचार
प्रेषित:  आभा झा
श्रोत: दहेज मुक्त मिथिला समूह
लेखनी के धार ,बृहस्पतिवार साप्ताहिक गतिविधि
विषय :- ” बढ़ैत शिक्षाकेँ संग घटैत नैतिक व्यवहार—-आबय वाला समयमे एकर दुष्प्रभाव!! दुनूमे सामंजस्य बना कऽ रखबाक लेल कि उपाय!”

स्कूलेसँ बच्चाकेँ नैतिकता आ आदर्शक पाठ पढ़ाओल जाइत छैक। नैतिकता आ उच्च आदर्श एक तरहसँ अप्पन भारतीय संस्कृतिक पहचान व पुरखासँ विरासतमे भेटल अनमोल धरोहर अछि। वर्तमान समयमे युवा पीढ़ीमे नैतिक मूल्य, संस्कार आ आचरणकेँ ग्रहण लागि गेल छैक। युवा पीढ़ी खाली वर्तमानक चिंता करैत अछि। ओ चाहैत छथि कि वर्तमानमे जे भी भौतिक सुख-सुविधा अछि, ओ सभ हुनका प्राप्त भऽ जाइन। ओ अपन वर्तमानक स्वर्णिम आनंदक प्राप्तिक लेल किछु भी करयकेँ लेल तैयार छथि। आजु हम रोज अखबारमे पढ़ैत छी कि अबोध बालक-बालिका कोन तरहे नशाक प्रवृत्ति, हिंसा, वासना, आ अनैतिकताकेँ शिकार भेल जा रहल छथि। वासनाक पूर्तिकेँ लेल ओ अपन माता-पिताक इज्जत आ सामाजिक प्रतिष्ठाकेँ सेहो चिंता नहिं करैत छथि आ एहेन निर्णय लऽ लैत छथि जेकरा कारण हुनका शर्मिंदगी झेलय पड़ैत छैन्ह। अभिभावक अपन संतानकेँ दुष्कृत्यसँ एतेक ठगल महसूस करैत छथि कि अपन जीवन लीला सेहो समाप्त कऽ लैत छथि या हुनका हार्ट अटैक आबि जाइत छैन्ह।आजु युवामे फूहड़ व अश्लीलताक चलन बढ़ि रहल छैक। स्मार्ट फोनक चलन हमर सामाजिक सुदृढ़ नैतिक स्वरूपकेँ तहस-नहस कऽ देने अछि। आजु घर-परिवारमे तकनीककेँ प्रति एतेक आकर्षण बढ़ि गेल छैक कि हम अपन पारिवारिक भूमिकाकेँ निर्वहन सेहो जिम्मेदारीसँ नहिं कऽ पाबि रहल छी। बच्चा माता-पिता, बूढ़-बुजुर्ग तथा गुरूजनक आदर नहिं करैत अछि। बच्चामे खौंझाहट, उदण्डता आ अनुशासनहीनता बढ़ैत जा रहल अछि। खाली उच्च शिक्षाक सुविधा देलासँ किछु नहिं हैत। एहि लेल हमरा सभकेँ प्रयास करय पड़त। हमर सभक जिम्मेदारी बनैत अछि कि पारिवारिक पाठशालाकेँ संस्कार शाला बनाबी। बच्चाकेँ हुनक जीवनक बाल्यकालसँ ही संस्कारक सीख दी। जे संस्कार हुनका बाल्यकालमे सिखाओल जाइत छैन्ह वैह जीवनकेँ उज्ज्वल बनाबैमे महत्वपूर्ण भूमिका निभबैत अछि। हम परिवार रूपी उद्यानमे अपन बच्चाकेँ सुंदर पौधाकेँ संस्कार रूपी ज्ञानसँ सिंचित करी। जाहि परिवारमे संबंधक माधुर्य छैक हुनकर बच्चा नैतिक मूल्यसँ युक्त होइत छथि। हमर सभक दायित्व बनैत अछि कि हम नैतिक बात ही नै करी बल्कि नैतिकताकेँ व्यवहारिक जामा पहिराबी अर्थात नैतिक मूल्यक अनुरूप जीवन जीबी। हमर नैतिकताकेँ झलक हमर आचरणमे होइ, ई प्रयास सभ करी। हमर दायित्व बनैत अछि कि हम बच्चाकेँ पूजा-पाठ, समाज व धर्मक ईष्ट देवी-देवताक ज्ञान कराबी। अपन आराध्य व कूलदेवीक ज्ञान कराबी। गोत्र व सामाजिक परंपराक ज्ञान कराबी। युवा पीढ़ीमे ऊर्जाक अथाह भंडार होइत अछि, हुनकर ऊर्जाकेँ सही सदुपयोग होइ एकरा लेल जरूरत एहि बातक अछि कि हुनकर नैतिक बल मजगूत होइन। मनुष्य जीवनमे शिक्षा ही सभ किछु नहिं, संस्कारक महत्वपूर्ण स्थान छैक आ संस्कार कतौसँ कीनल नै जाइत छैक। आजुक बच्चा आगू बढ़नाइ तऽ सीख रहल अछि, मुदा जीवनक जरूरी मूल्य जेना शिष्टता, नैतिकता व संस्कारकेँ बिसरल जा रहल अछि। अखनो समय अछि कि बच्चा पर दोष मढ़यकेँ बजाय बच्चाक संस्कार, नैतिक मूल्य व शिष्टाचार सिखबियौ। हुनका उचित मार्गदर्शन दियौन। नैतिकता मात्र एक कल्पना नै, एक व्यवहार अछि जे परिवेशक अनुसार हमर सभक आचरणमे झलकैत अछि।