लेख
प्रेषित : रिंकु झा
लेखनी के धार
शीर्षक -नरक निवारण चतुर्दशी व्रत के उत्साह मे पहिले आर आबक समय में अंतर********
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पावैन -तिहार कोनो भी क्षेत्र वा ओहि क्षेत्र के संस्कृति के पहचान होईत अछि। मिथिला के पावैन -तिहार मूल रूप स प्रकृति स जूरल मिथिला के हृदय आर आत्मा के प्रतिक छै। जेकरा मिथिलावासी बहुत उत्साह आर आस्था स मनाबय छैथ।
अहि पावैन सब मे नरक निवारण चतुर्दशी सेहो मिथिलांचल के एक टा विषेश महत्त्व पूर्ण पावैन होईत अछि।जे मिथिलावासी शिवराईत के जेना बहुत श्रद्धा आर विश्वास स मनावय छैथ। ओना तऽ साल भैर मे चौबीस टा चतुर्दशी तिथि होईत अछि।बारह टा कृष्ण पक्ष के आर बारह टा शुक्ल पक्षक। जाहि मे सब चतुर्दशी शिवरात्रि के जेना खास होईत अछि।धैर माघ मासक कृष्ण पक्षक आर फागुन मासक कृष्ण पक्षक चतुर्दशी शिव के बहुत प्रिय छैन्ह। शास्त्र के अनुसार अहि नरक निवारण चतुर्दशी के दिन हिमालय ऋषि अपन पुत्री पार्वती के बियाहक प्रस्ताव भगवान शिव लग भेजने रहथीन।आर बसंत पंचमी के दीन हिनकर छेका यानी शगुन भेल छलऐन।फेर ठीक एक मास बाद फागुन मासक कृष्ण पक्षक चतुर्दशी क हुनकर बियाह भेल रहैन ,जे हम सब शिवरात्रि के रुप में हरेक साल मनावय छी। महादेव त अहिना औढरदानी छैथ , भक्त पर ढरल रहय छैथ ।कहबि छै कि नरकक यातना स बचय लेल ,पापक प्रभाव कटबय लेल आर स्वरगक कामना करैत मनुष्य ई व्रत कय भगवान शिव के आराधना करय छैथ। अहि व्रत में शिवजी के संग -संग माता पार्वती आर गणेश जी के आराधना केला स मनुष्य के विषेश फल भेटय छै। ओना पहिले आर आबक समय में व्रत,उपास करय के उत्साह में कमी भ गेला।आब त बहुत रास पावैन सब विलुप्त भ रहल अछी। हमरा सब के याद अछि जखन बच्चा रही दश बारह दिन पहिले स रटय लागय छलहूं जे बेर बला पावैन हेतय , फल्लां मंदिर पर जेब , मेला मे घुमब आदि आब कहां छै ई सब। भोरे भोर धार-पोखैर मे नहाय लेल जाई छलैथ लोक सब संगी बहिनपा मिली ।तखन सब मिली आस -पास के महादेव मंदिर पर जाय पुजा -अर्चना करय छलैथ।भांग , धतूर,आर बेर केशौर चढबय छलैथ प्रसाद महादेव के।गीत -नाद स मंदिर सब गुंजैत रहय छल भैर दिन। मेला -ठेला खुब लागय छल ।भैर दिन निराहार व्रत में रही सांझ परैत देरी सब बेर आर तिल खाक पारण करय छलैथ हे।घर मे नाना तरहक तरुवा, तरकारी बनय छल । जाहि मे सिम आर भाटा के सब्जी बनबे टा करय छल कारण सिम खेनाई अनिवार्य रहय छै अहि व्रत मे।आब मनुष्य भौतिक सुख सुविधा के पाछू एतेक तीव्र गति स भागि रहल छैथ कि ई पावैन -तिहार हुनका सब लेल ब्यर्थ के समय गमायब लागय छै। बहुत लोक त जनितो नहीं छथिन जे चतुर्दशी कि होई छै वा कहिया होई छै।कारण घर मे माय बाबूजी सब अहि तर क चर्चा करिते नै छथिन। हुनका सब के लागय छनि जे अहि सब के पाछू कहीं समय बिताक बच्चा सब डाक्टर आर इंजीनियर के रेश स पाछू नही भ जाईथ।ई नै बुझय छथिन कि अहि सोच के कारण हमरा आंहा के आबय बला युवा पीढ़ी सब धर्म -कर्म स पाछु हटि रहल अछी। आस्था के भावना हुनका भीतर कम भ रहल अछि ।
ईहो बात छै पहिले पैसा रहितो बहुत किछु नहि भेटय छलै लोक के कारण गाम -घर मे एतेक सुविधा उपलब्ध नै रहय ।त कोनो खास दिन के लोक बहुत उत्साहित भय पहिलेहे स इंतजार करय।आब गाम -घर के शहरीकरण भ गेल सब किछु समय स भेट जाई छै। बच्चा सब आब पहिले जकां कलायल नही रहय छै।
ओना अखनो गामे घर पावैन -तिहार के पाऽत रखने छैथ।ई हमरा आंहा लेल गंभीर विषय अछी। ।