“साहित्य आ समाजक घनिष्ठ संबंध होइत छैक।”

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— आभा झा।     

साहित्य आ समाजक घनिष्ठ संबंध होइत छैक। समाज आ साहित्य एक-दोसरक पूरक अछि, ई आदिकालसँ लऽ कऽ आजु तक एक-दोसर पर आश्रित व एक-दोसरक प्रेरणास्रोत रहल अछि। साहित्य व्यक्तिमे बदलावकेँ संग-संग, नब विचार, नब खोज, नब क्रांति व नवाचार करयकेँ लेल प्रोत्साहित करैत अछि। साहित्यक व्यक्तिकेँ जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ैत अछि। साहित्यक बिना मानव नीक जीवन जीबयकेँ कल्पना नहिं कऽ सकैत अछि। साहित्य ही मानव जीवनमे आबय वाला चुनौतीकेँ सामना मजबूतीक संग केनाइ सिखबैत अछि। नीक जीवन जीबयकेँ लेल हमरा नीक साहित्य पढ़यकेँ जरूरत अछि। साहित्य पढ़यसँ बहुत ज्ञान आ जानकारी भेटैत छैक। कहलो गेल अछि कि ” साहित्य समाजक दर्पण होइत अछि।” समाज व्यक्तिसँ मिलि कऽ ही बनैत अछि। नीक व्यक्ति रहत तखने ओ समाजो नीक/ सभ्य होयत। कोनो समाजक आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक व भौगोलिक जानकारीक लेल हमरा ओकर साहित्य पढ़य पड़त। ओहि समाजक प्राचीन इतिहास, सामाजिक जीवन केहेन छल? ओहिमे समय -समय पर कथि-कथि बदलाव आयल। एहि सभक जानकारी हमरा साहित्य पढ़यसँ ही होइत अछि। हमर जीवनमे आबय वाला चुनौतीक सामना केनाइ सेहो हमरा साहित्य सिखबैत अछि। जीवनक कतेक उलझल प्रश्नक हल हमरा साहित्यकेँ पढ़यसँ भेटैत अछि। साहित्यमे भूत आ वर्तमानक सच्चाई व अनुभूति होइत अछि। साहित्यिक सामग्री
पाठकक दिल व दिमाग पर गहिंर प्रभाव छोड़ैत अछि। नीक साहित्य जीवनक हरेक पहलूकेँ बुझबैकेँ सामर्थ्य रखैत अछि। जीवनमे सद्गुणक विकास हो, ताहि लेल व्यक्तिकेँ निरंतर साहित्यक अध्ययन करैत रहबाक चाही। हमर दैनिक जीवनमे नीक साहित्य कोना प्रभावित करैत अछि। एकर बहुत रास उदाहरण समाजमे देखय लेल भेटैत अछि। जे नीक साहित्य पढ़ैत अछि हुनकर गप्प-सप्प करयकेँ लहजा, रहन-सहन, वेश-भूषा सबमे अपन संस्कृति व संस्कारक झलक देखय लेल भेटैत अछि।
साहित्यक अध्ययनसँ व्यक्ति समाजमे बदलाव आनैत अछि। एहि बातकेँ मानैत तऽ सब अछि। मुदा बहुत कम घरमे अहाँकेँ साहित्य पढ़य वाला भेटत। धार्मिक पोथी गीता, रामायण सेहो कतेक घरमे नहिं भेटत। बच्चामे साहित्य पढ़यकेँ रूचि समाप्त भेल जा रहल अछि। बस स्कूलक लेल नीक अंक अनबाक लेल पढ़ि रहल अछि। बच्चाकेँ कोनो संस्कार, मानवीय मूल्य, संवेदनाक बारेमे बहुत कम लोक सिखबैत अछि। एहि सभक परिणाम हम देखि रहल छी। ऊँच-ऊँच डिग्री वाला सब जघन्य अपराधमे संलिप्त भेल जा रहल अछि। बच्चामे साहित्य पढ़यकेँ रूचि बढ़ेबाक लेल हुनका प्रोत्साहित केनाइ बहुत जरूरी अछि। हुनका नीक-नीक पोथी आनि कऽ पढ़य लेल प्रेरित केनाइ जरूरी अछि। शिक्षाक संग-संग संस्कार देनाइ बहुत जरूरी अछि। साहित्यमे जीवनक अच्छाई, हमर सांस्कृतिक गौरव आदिकेँ बारेमे जानकारी भेटैत अछि। साहित्यक व्यक्तिकेँ मन आ दिमाग पर प्रभाव पड़ैत अछि। नीक साहित्य पढ़ब तखन नीक प्रभाव पड़त आ खराब साहित्य पढ़ब तखन खराब प्रभाव पड़त।
19वीं शताब्दीसँ लऽ कऽ आइ तककेँ साहित्य अपन युगीन समाजक समस्याक चित्रण प्रस्तुत करी कऽ समाजक यथार्थ रूपकेँ उपस्थित करैत आबि रहल अछि। भारतेंदु युगीन साहित्य ‘ भारत दुर्दशा ‘ वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवतिः’ आदि साहित्यिक विधामे तत्कालीन भारतीय समाजक दोहरा दुर्दशा चित्रित भेल अछि। साहित्यक गद्य-पद्य दुनू रूपमे तत्कालीन समाजक समस्या मुखरित भेल अछि। मातृभाषाक प्रचार-प्रसार एवं देशभक्तिक भावनाक स्वर साहित्यमे स्पष्ट सुनाई पड़ैत अछि।
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा उन्नति के, मिटै न हिय को सूल।।
बढ़ैत पाश्चात्य संस्कृतिक चकाचौंध हमर जीवन मूल्यकेँ प्रभावित कएने अछि। एहि दौरमे उत्कृष्ट साहित्य रचना ही समाजक उत्थानक मार्ग प्रशस्त कऽ सकैत अछि। आवश्यक अछि कि हम साहित्यकेँ नित नब आयाम दी जाहिसँ हमर प्राचीन पहचान संसारमे अक्षुण्ण रहै आ हम अपन पुरान वैभवकेँ प्राप्त कऽ सकी। समाजक निर्माणमे साहित्यक महत्व एक अहम भूमिका निर्वहन करैत अछि।
जय मिथिला, जय मैथिली।