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” मिथिलामे गताती विवाहक गुण आ दोष “-

— आभा झा।       

वैवाहिक संस्कार मानव जीवनक सबसँ महत्वपूर्ण संस्कारमे सँ एक अछि। ई संस्कार ने केवल दू प्राणी वरन दू परिवारकेँ जोड़ैत अछि। एकर माध्यमसँ नव दम्पत्तिकेँ एक सुसंस्कृत पीढ़ी समाजकेँ सौंपैकेँ दायित्व सेहो सौंपल जाइत अछि।
वर-वधू चयनमे विशेष सावधानी राखल जाइत अछि कि दुनू एक-दोसरकेँ पूरक व अनुरूप होइथ। अपन भारतीय संस्कृतिमे नारीकेँ शक्ति, दया, क्षमा, व बुद्धधमताक प्रतिमूर्ति मानल जाइत अछि। ताहि दुवारे प्राचीन कालमे भारतीय संस्कृतिमे कन्याकेँ अपन भावी जीवन साथी स्वयंवरक रूपमे चुनयकेँ स्वतंत्रता देल जाइत छल। माँ सीता, द्रौपदी आदि राजकन्याक विवाह स्वयंवर पद्धतिसँ भेल छलनि। कखनो-कखनो कन्या अपन पिता, भाई द्वारा चयन कएल गेल वरक अपेक्षा अपन मनपसंद जीवन साथी चुनि लैत छलीह जेना रुक्मणी श्रीकृष्णकेँ चुनने छलीह। वरक योग्यता गुण देखि कऽ वधू वरक चुनाव करैत छलीह। धीरे-धीरे सामाजिक परंपरामे परिवर्तन आबैत गेल। वर-वधूक चयन परिवारक सदस्य द्वारा कएल जाय लागल। परिवारक आपसी संबंध दूर होमय लागल। सुयोग्य वरक चयन मुश्किल होमय लागल। वर-वधूक तलाशक लेल नब परंपराक उदय भेल गताती या मध्यस्थ द्वारा। प्रारंभमे मध्यस्थक काज पुरोहित व पंडित करैत छलाह। कियैकि हुनकर अधिकांश घरमे एनाइ-गेनाइ छलनि। वर-वधू पक्षक लोक हुनकर बातकेँ महत्व दैत छलखिन। धीरे-धीरे एहि प्रथामे परिवर्तन आयल। कतेक बेर गतातीमे मध्यस्थ अपन जजमानक गुणगान ततेक करैत छलाह कि दुनू पक्षक लोक भ्रमित भऽ जाइत छलाह। बेमेल विवाह होमय लागल तकर नतीजा ई भेल कि दम्पत्तिक जीवनमे कटुता आबय लगलनि। परंतु सामाजिक बंधन मानि कऽ दुनू संबंधकेँ निभबैत चलि गेलाह। एकर असर हुनकर पारिवारिक जीवनक संग-संग संतान पर सेहो पड़य लागल। पहिनेकेँ समयमे विवाह संबंध मध्यस्थक द्वारा ही बनैत छल। ओहि समय मैरेज ब्यूरो जेहेन कोनो व्यवस्था नहिं छलैक। गतातीमे मध्यस्थक द्वारा विवाहमे गलत होइकेँ गुंजाइश नहिं छलैक।आइ काल्हि मध्यस्थ बनयकेँ लेल कियो तैयार नहिं अछि। कियैकि अगर सब किछु ठीकठाक रहल तऽ दुनूकेँ भाग्य नीक छै आ किछु गड़बड़ भेल तऽ मध्यस्थक दोष!!! बेचारा कि करै!! एहि प्रकारक वैवाहिक संबंधमे मध्यस्थ दहेजक लेन-देनक लेल सेहो जिम्मेदार होइत छथि। अगर संबंध नीक भेल तऽ मध्यस्थक खूब वाहवाही होइत छलनि आ अगर खराब भेल तऽ हुनका गारी पड़ैत छलनि। एहि बदनामीसँ मध्यस्थ दूर रहय लगलाह। जेना-जेना विदेशी सभ्यताक खुलापन व शिक्षाक प्रभाव बढ़ल विवाहक विधमे बदलाव आयल। लोक काजक लेल नब शहर या विदेशक दिस पलायन करय लागल। लड़की नौकरी कऽ आर्थिक रूपसँ स्वतंत्र भऽ गेलीह। लड़का आ लड़की अपन अनुरूप विवाह केनाइ पसंद करय लागल।
गतातीमे विवाहक लाभ आ दोष दुनू रहै। गतातीमे विवाह कएलासँ लड़की या लड़काकेँ माता-पिताकेँ परिवारक बारेमे सभटा जानकारी रहैत छलैक। मुदा कखनो-कखनो गतातीमे झूठ बाजि कऽ विवाह कऽ देल जाई। आब तऽ डिजिटल युगमे सोशल मीडिया, फेसबुक आ मेट्रोमोनियल साइट द्वारा विवाह तय भऽ रहल छैक। आब मैरेज ब्यूरोक व्यापार दिन दूनी आ राति चौगुना फल- फूल रहल अछि। जे काज पहिने मुफ्तमे भऽ जाइत छल,आब ओहि काजक लेल मोट रकम देबय पड़ैत अहि। आब गताती आ मध्यस्थक काज समाप्त भऽ रहल छैक। आब विवाहक आयु लड़कीकेँ 25 सँ 30 आ लड़काकेँ 30 सँ 35 भऽ गेल छैक। एहिसँ संतान उत्पत्ति पर सेहो असर पड़ैत छैक। पैघ आयुमे विवाह करयसँ विचारमे परिपक्वता आबयकेँ कारण लड़का व लड़की एक-दोसरक संग सामंजस्य करयमे दिक्कत भऽ रहल छैक फलस्वरूप तलाकक मामला बढ़ि रहल छैक।

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