“शिक्षित आ सबल मैथिल सभक मिथिलाक स्थिति यथावत बनल रहवाक कारण”

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— कीर्ति नारायण झा।   

शिक्षित आ सबल मैथिल सभक मिथिलाक स्थिति यथावत बनल रहवाक कारण – अपना सभक ओहिठाम एकटा कहबी छैक जे “चढू समैध चढू समैध आ गाड़ी गेल छूटि” अर्थात पहिले अहाँ तऽ पहिले अहाँ आ एहि मे काज कोनो नहिं होइत अछि। विद्वान में एकटा इहो कमी होइत छैक जे कोनो बात पर ततेक बेसी तर्क वितर्क होइत अछि जे अंत में ओ काज नहिं भऽ सकैत अछि। पढल लिखल लोक के जँ कियो कहै जे सभ अपन अपन पैएर पर ठाढ़ भऽ जाउ तऽ अस्सी प्रतिशत लोक नहिं ठाढ हेताह। हुनक दिमाग मे इ नाचय लगतैन्ह जे पएर पर ठाढ़ होयवाक लेल कियए कहल गेल अछि? एहि में कहय बला के कोनो स्वार्थ तऽ नहिं छैक? अथवा बुरिबक तऽ नहिं बना रहल अछि, एहेन विचलित मानसिकता के कारण कोनो काज नहिं होइत अछि। ने एम्हरे के आ ने ओम्हरे के। दुर्भाग्य सँ येएह स्थिति छैन्ह हमरा सभक मैथिल भाई बन्धु के। समस्त देश विदेश मे उच्च उच्च पद पर आसीन मैथिल सँ जखन मिथिलाक विकास के लेल बात करू तऽ ओ सदिखन कन्नी कटैत रहताह। आब मिथिला में एकहि टा चीज के कमी रहि गेलैक अछि आ ओ थिक रोजगार के, जकरा लेल मिथिला में बन्द फैक्ट्री सभ खूजय, नव रोजगारक सृजन होअय। नव नव फैक्ट्री सभ मिथिला मे खूजय ताहि लेल पढल लिखल लोक, पैघ पैघ पद पर बैसि कऽ एहि विषय में सोचय नहिं चाहैत छैथि।हुनका सँ जँ एहि विषय में बात करू तऽ सभ सँ पहिले बात नहिं करय चाहताह आ जँ बातो करताह तऽ कहताह जे सभटा बेचि कऽ खा लेत, कियो काज नहिं करत, अर्थात् प्रयास करबा सँ पहिले ओकर नकारात्मक अभिव्यक्ति मैथिल सभ देबा मे सभ सँ आगू रहैत छैथि। जखन कि हेवाक ई चाही जे एक बेर विश्वास कऽ कऽ एहि दिशा मे प्रयास करवाक चाही। दोसर मैथिल में एकता के पूर्ण अभाव रहैत छैन्ह संगहि एक दोसर के प्रति ईर्ष्या भाव। ओकरा जँ भऽ जेतैक तऽ ओ हमरा महत्व नहिं देत, एहि सँ बढियां जे तटस्थ रही आ तटस्थ रहवाक भावना हम समस्त मैथिल के जाहि ठाम पहिले सँ ठाढ़ छी ओहिठाम ठाढे छी, एक डेग आगू नहिं बढलहुँ आ जखन पूछब तऽ कहताह जे प्रशासनिक सहयोग के अभाव छैक तेँ मिथिलाक विकास नहिं भऽ रहल अछि। इ कहि हमरा लोकनि विकास के बात के एक दोसर पर टालैत रहैत छी आ मिथिलाक विकास ओहिना छटपटा रहल अछि। पलायन के समस्या यथावत बनल अछि। एक दोसर के एकरा लेल अभियोग लगबैत हमरा लोकनि कुकुरकटाउज करैत रहैत छी। बहस करवा में हम मैथिल के समक्ष कियो नहिं टिकि सकैत अछि मुदा समस्या के समाधान एहि बात विवाद सँ संभव नहिं अछि। मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना के सभ सँ पैघ संवाहक हम मैथिल छी। मिथिला पेटिंग, मिथिलाक हस्तकर्घा इत्यादि के आगू बढेवाक बात के हमरा लोकनि बिसरि जाइत छी। पण्डौल सूत मिल दयनीय स्थिति में, लोहट, रैयाम चीनी मिल कुहरि रहल अछि एकर कियो देखनिहार नहिं, हम सभ दूरहि सँ झटहा फेकैत छी आ ओहो राम भरोसे जकर परिणामस्वरूप हम मैथिल मिथिलाक विकास के लेल किछु नहि कऽ पाबि रहल छी, मात्र एक दोसर पर दोषारोपण लगबैत रहैत छी। हम समस्त मैथिल के एहि विषय में सोचय पड़त। स्वयं भागीरथ बनि विकासरूपी गंगा के मिथिला में आनय पड़त आ तखने हमरा लोकनि अपन समृद्ध मिथिलाक परिकल्पना कऽ सकैत छी