“लोककला ,परम्परा आ संस्कृतिकेँ ध्वजवाहक : मैथिल नारी”

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— उग्रनाथ झा       
मिथिला आदिकाल सँ अपन विद्या वैभव आ कलाक क्षेत्र में विशिष्टता स्थापित कएने रहल अछि। मिथिलाक धरती सतत एक एक गुणवान सुच्चा हीरा के गढ़ैत रहल अछि जे अपन अलौकिक प्रकाश पूंज सं जग के चमत्कृत करैत रहल अछि। एहन दिव्यजन सं प्राप्त गरिमामय विरासत के सम्हारि रखबाक जे मुल होईछ ओ थिक भाषा साहित्यक सृजनशीलता । वास्तविक समाजिक परिदृश्यके साहित्यिक सृजनशीलता जखन गायन वादन नृत्य के माध्यमे आम जन मानस के चेतना केँ झंकृत करय लगैत छैक त ओ लोक परंपरा बनि पिढ़ी दर पिढ़ी लोक गीत , लोकनृत्य रूपे संवाद प्रेषित करैत छैक।
जहां तक देखल जाए त गायन वादन आ नृत्यक संतुलित संगम संगीत कहाएत छैक ।संगीतक मुख्य पांच धारा छैक जे – लोक संगीत , शास्त्रीय संगीत , उपशास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत आ फिल्मी संगीत । संगीत के पांचों विधा अपना आप में महत्वपूर्ण आ उत्कृष्ट छैक मुदा एहि बीच लोकगीत के भांति भांति डाढ़ि पसरि संपूर्ण संसार में अपन स्थान बनेबा में सफल रहल ।जेकर मुख्य कारण छैक जन जन के बोली मे व्याप्त लयबद्ध पाँति। सांगितिक विधा सं अन्हचिन्हार , अक्षरज्ञान सं दूर ठेठ सं ठेंठ देहाती परिवेश में रहनिहार/रहनिहारि सेहो सुख दुख , मिलन- बिछुड़ी , हर्ष -विस्मय के गीत गाबी उठैत छथि । जाहि मे शब्द आ भाषा जौ बुझना य़ोग नहियो होएत मुदा गायन स्वर सँ मूल भाव केँ भांज चलिए जाएत । ई गीत मूल रूप सं ग्रामिण क्षेत्र में प्रचलीत छैक।एहि गीतक राग भाष सर्वमान्य छैक । सभ गीतक स्थिति परिस्थिति आधारित स्वर होएत छैक जेना एहि गीत में आदिकाल सं अबैत परंपरा /रीति-रिवाज के छांह देखबा में भेटैत छैक जेना जन्म , मुंडन , उपनयन , विवाह के अवसर पर गबै बला गीत । चैतावर , बरहमाशा , बटगबनी , विरहा , पराति, सोहर समदाऊन सभक गायकीक भास आ कंठ सँ नीकसैत स्वर सं बुझा जाएत जे कोन अवसर पर उत्सव आयोजित छैक।यानी की लोक संस्कृतिक प्रतीक ई लोक गीत कोनो भी समाजक जीवंत सभ्यताक आईना छैक।
एहन स्थित में जौ मिथिला के पारंपरिक गायन पर नजरि देल जाए त घर घर में य़दी लोक गीत जीबैत छैक त ओ मैथिल नारि के उत्साह उमंग पर । मिथिला सतत उत्साह जीवि रहल अछि।समाज में रिति रिवाज आ परंपरा के अक्षुण्ण बना रखबा में पुरूषक संग सतत महिला के बढ़ि चढ़ि वा ई कहि जे प्राथमिकता रहैत छैक त अतिशयोक्ति नहि होएत । प्रयोजन कोनो भी हो मुदा ओहि मे श्रम विभाजन होएतै छैक मुदा जाहि विधा के विभाजन हम बुझैत रूचि आधारित रहल जाहि मे स्त्रीगण बाजी मारलन्हि। जहन गीतनादक बात हो त कोनो भी आयोजनक किछु दिन पूर्वहि सं आ किछु दिन बाद तक रंग बिरंगक उत्सव कृत्य आधारित लोक गायन में बढ़ि चढ़ि हिस्सा लेती। संगहि टोल पड़ोस के हकारि देव पितर आ उत्सव आधारित रंग रभस युक्त लोकगीत त होएते छैक। आदिकाल सं एहि विधा के समाज में प्राथमिकता द नारिक शिक्षा आ संस्कारक प्रथम पाठ में जोड़ल जाएत रहल अछि। मिथिला में लूरि व्यवहार आ गीत नाद के नारिक आभूषण कहल गेल छैक। पारंपरिक लोकगीत के माध्यमें नारि के धर्म कर्म लज्जा , सहनशीलता, समर्पण आ श्रद्धाक समाजिक शिक्षा देल जाएत छल । गीत बोल गबैत गबैत उम्र संग स्वयं नारि आ पुरुष अपन मर्यादाक सिमा तय करबा में सक्षम भ जाएत छली। लोक संगीत त एहि रूपे मैथिल नारि के रोम रोम में रचल बसल रहैत छल जेना कहि जे हिनका लोकनिक एकाधिकार हो।एहि माध्यमे लोकगीत बिना संग्रह केनै मैथिल नारि के कंठस्थ भ पिढ़ी दर पिढ़ी अपन कथ्यक उद्देश्य प्राप्त करैत जीवंत रहल आ समाज के दिशा आ दशा प्रदान करैत आबि रहल अछि।
मुदा आधुनिकता बादी एहि युग में अत्याधुनिक नारि लग ई सेहो असुरक्षित भेल जा रहल छैक । फलत: नारि स्वत: अपन मर्यादा स्थापित करबा असक्षम भेल जा रहल छथि। जेकर कारण छैक जे हम अपन बाल बच्चाक संग एहि पारंपरिक धरोहर के आदान प्रदान में रुचि नहि लैत छि । बस किताबी ज्ञान दिएबा लेल उन्मत रहै छि । फलत: जे किछु संवाद खेल खेल में गीतनादक माध्यमे शिक्षा भेट जाए छलै ओकरा लेल ओ आई मोट मोट पोथि पढ़ैत अछि मुदा उद्देश्य निष्फल।वर्तमान नवतुरिया सभ पारंपरिक गीत के स्थानापन्न नटकी चटकी गीत यानी हास्य व्यंग तक सीमित राखि गबै छथि।लेकिन जौ किनको सँ बारहमाशा , समदाउन वा अन्य गाबय लेल कहल जाए त मुंह बाबि देल जाएत। बेसी सं बेसी बटगबनी ओहो फिल्मी धून गाबि सकती । ताहि हेतु समस्त मातृशक्ति सं निवेदन अपन पारंपरिक थाति के अपन संतति तक पहुंचा क मिथिलाक धरोहर अक्षुण्ण राखि। पारंपरिक लोक गीत के भाव में दाम्पत्य जीवनक सार , पारिवारिक समरसता के भाव आ समाजिक सरोकार कर्तव्य छुपल भेटत ।जाहि के रसास्वादन सँ नव स्फूर्ती प्राप्त कय तन मन ताजगी सं भरि जाए छैक ।जे एक दोसरा के बिन सुत बन्हने रहैत छैक । आदिकाल सँ मैथिल नारि एहि सुधारस घोरल पांति के अपन कंठ वास देने समेटिरखने छैथ ।आश करै छि जे ई परंपरा चलैत रहैय ताहि हेतु मैथिल मातृशक्ति सतत प्रयासरत रहथि