“मिथिलाक विश्व प्रसिद्ध कला”

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— रिंकू झा           

मिथिलाक विश्व प्रसिद्ध कला,
मिथिला क्षेत्र जेना दरभंगा, पूर्णिया, सहरसा,मधुबनी ,नेपाल आदि में रहे बाली स्त्रीलोकानी सब के खाली समय के उपयोग आर हुनका अंदर के प्रतिभा जे कला के रूप में जन्म लै छै !।से ” मधुबनी पेंटिंग” या मिथिला पेंटिंग के नाम स जानल जाय छै, ।बिहार सुरुए स ” मिथिला पेंटिंग, सीकी कला आर पेपरमेसी के लेल प्रसिद्ध छै।
ओना सीकी कला के बैस्विक स्तर पर पहचान नई भेटलैया, देखें में त याह लगैया जेना प्रायः सीकी कला विलुप्त भ रहल ये , । मुदा आहू क्षेत्र में काज विशेष रूप स भ रहल छै।
मिथिलांचल के पहचान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिथिला पेंटिंग स भ रहल छै। बैस्वीक स्तर पर मिथिला पेंटिंग प्रसिद्ध भ रहल छै।
पौराणिक कथा के अनुसार राजा जनक जी, अपन पुत्री सीता आर अयोध्या के राजकुमार श्री राम जी के बीबाह के दौरान समस्त राज्य के मिथिला पेंटिंग स सजाबाई के लेल समस्त स्त्री गण सब के कहने रहतींन। जे अयोध्या स जे बरात एथिन ओ ई कला देख क मुग्ध भ जायथ आर हुंका सब के मिथिला के संस्कृति आर कला पर नाज होइएन।
ऐतिहासिक रूप में देखू त ब्रिटिश शासन के दौरान बिलियम आर्चर नाम के ब्रिटिश अफसर पहिले बेर ऐ कला पर ध्यान देने छ्तहीन। सन १९३४ में बिहार में एक टा बहुत प्रकोपित भूकंप एल रहई। वोई समय में बिलियन आर्चर निरीक्षण कर के लेल मिथिला गेल रहथिन, त हुंनका टूटल_ फूटल घर में ई चित्रकारी देखें में एलेन, कहावत छै की प्राकृतिक आपदा खाली नासे नै करै छै कखनों _कखनो किछ निको क जाय छै। बिलियन आर्चर के ई चित्रकला एतेक निक लागलैन की ओ पहिल बेर सन १९४१ , में अपन लेख *मार्ग* में विस्तार स चर्चा केलखिन जे बिस्वप्रसिद्ध भ गेल।
मधुबनी पेंटिंग के कुल पांच भाग छै,
१भरनी, २काछनी ३ गोदना, ४ कोहबर, ५ तांत्रिक
ऐ कला में केवल चटकीला रंग के प्रयोग होई छै हल्का रंग कम मात्रा में देल जाय छै। ई रंग गाछः _ पात , हराईद आर फूल स बनाईं छै। ऐ में गोंद मिला क भरल जाय छै की रंग बहाए नई।हल्दी स पियर , पात स हरियार आर पीपल के छाल स लाल रंग बनाय छै। मिथिला पेंटिंग दू तरह के होई छै, * भीति चित्र आर अरिपण,
भीति मतलब एही में दिबाल पर आर गाछ, पत्थर आदि पर चित्र बनाई छै। अरीपन मतलब स्त्री गण सब कोनो भी पूजा _ पाठ में आंगन द्वार आर भगवती घर में बनाबई छैथी। चित्र बनाब में सलाई के काठी आर करची के कलम के प्रयोग होई छै।बहुत टरहक कलाकारी बनाई छै, गाछ पात, देवि देवता, फूल , पक्षी, जानवर, आदि कोनो भी सुभ काज में ई चित्रकला बनाए ल जाय छी घर आंगन में ,
समय के साथ _ साथ एही क्षेत्र में बहुत परिवर्तन भेला, आब ई कला कपड़ा, कैनवास आर कागज पर बानेल जाय छै, स्त्री लोकनी के साथ _साथ पुरुष सब सेहो बढ़ी _ चढ़ी क भाग लै छैथ चित्र बनाबे में। एही कला में बहुत मिथिलानी सब अपन अपन नाम उच्च केलैथ हैं, सन १९७५ में मधुबनी जिला के जितबारपुर गांव के सीता देवी के राष्ट्रीय पुरस्कार भेटल छेन।१९८४ में बिहार रत्न भेटल छैन।२००६ में शिल्प गुरु पुरुस्कार भेटलें। ऐहन आर महिला सब छैथ जेना गंगा देवी, शांति देवी, चंद्रकला देवी आदि।१९८४ में गंगा देवी के पद्मश्री पुरस्कार भेटलैन।
जापान में मधुबनी पेंटिंग के एक टा बहुत पैघ संग्रहालय बनल छै। औरों बहुत जगह छै।बाजार में मधुबनी पेंटिंग बला कपड़ा आर फोटो के मांग छै आर बहुत मंहगा भेटई छै। उद्योग के रूप में बहुत आगा बढ़ी रहल छी ई कला
समस्त मिथिला बासी अहि स बहुत गर्व महसूस करै छैथ एही कला पर आर मिथिला पर। रिंकु झा*