— उग्रनाथ झा
आए जतेक कला के क्षेत्र में व्यवसायिक प्रशिक्षण संस्थान भ जाऊ, मुदा पारंपरिक विरासत में वा आत्म प्रेरणा सँ प्राप्त कला के जोड़ नै ।एकर विशिष्ट उदाहरण मिथिला पेंटिंग सँ बढ़ि दोसर की भ सकैत छैक । मिथिला पेंटिंग प्राचीन समय सँ मैथिल समाज में अपन ठाम बनौने रहल अछि ।जे आई धरि हमरा लोकनि निमाहैत रहल छि। कोनो मंगल अवसर होए जेना उपनयन , विवाह , मुंडन अथवा नव घर दुआर के निर्माण त मैथिल चुनेटायल भीत,टाट वा देबार हो ओहि पर अपन कला के निशान स्वरुप पेंटीग जरूर करैत रहलाह अछि। कहल जाएत छैक ई प्रचलन त्रेता यानी राम जानकी के अवरण अवधि सं प्रचलीत छैक। मैथिल समाजक इएह स्वभाव जे ने त कहियो पेंटीग स्कूल गेल आ ने कतौ प्रशिक्षण मुदा लूरि व्यवहार के चलन में आनि स्वत: स्फूर्ती सँ कलात्मक गहिंकी नजरि सँ सतत एकरा उत्कृष्टता दैत रहल । वर्तमान में मिथिला पेंटींग के सांसारक (निज क्षेत्रस बाहर)नजरि में अएबाक सौभाग्य 1934 में आयल । कहल जाए छैक आफद में अवसर से ठिके । भेल एहन जे 1934 इं में मिथिला प्राकृतिक आपदा (भुकंप)ग्रस्त छल ।बहुत जानमाल के क्षति भेल छल । एकर सहि सहि स्थिति के समीक्षा करबाक वास्ते विलायती सरकारक एकटा हाकिम विलियम आर्चर एहि क्षेत्र दौरा केलाह त घरक भीत सभ पर उकेरल गेल छाप सभ देख दंग रहि गेलाह आ एकरा विषय में जानकारी एकत्र केलाह। ओ एहि भीत पर लिखल चित्र सँ प्रभावित भ अपना लेख में स्थान देलाह आ संकलित छाप सभहक फोटो ओहि मे प्रकाशित केलाह । फेर कि छल ओहि समय के विदेशी पर्यटक सभक प्रमुख आकर्षण में सं एक बनल मिथिलाक चित्रकला विलायती सभ कें अपना दिन घिचय लागल। फराक फराक देशक लोक सभ पर्यटन लेल भारत आबथि त एहि कला के देखबाक लेल मिथिला क्षेत्र जरूर आबैथ । जाहि मे मिथिलाक मधुबनी जिला अग्रणी रहल । एकर संरक्षण आ संवर्द्धन में येव्स वेक्वार्ड , भास्कर कुलकर्णी ,पुपुल जयकर अग्रणी रहलाह । फलस्वरूप ई लोककला विश्व पटल पर दैदीप्यमान छैक। कहैत चली जे मिथिला में एहि कला के विवाह में कोबरघर , उपनयन में मरबा, आदि पर प्रधानता छल जाहि राम सीता जयमाल , धनुष भंग , विभिन्न देवी देवता के चित्रकारी , फूल , लत्ती, पशु पक्षी , तुलसी पात , सुर्य चन्द्रमा आदि के चित्रक प्रधानता रहैत अछि। दैविक आ प्राकृतिक छांह सं सराबोर रहैत छल ।एकर एकटा विशेषता छलैक जे ओहि समय में रासायनिक रंग के सभठम उपलब्ध नहि छल त रंग ओरियान पिअर लेल हरदि , हरियर लेल केरापात वा अन्य पात , कारी लेल त’बक कारी इत्यादी सँ होएत छल जे चित्र के चमकौआ आ सेहेन्तगर बनाबति छल।जे भित्ती चित्र आ अरिपन के रुप में देखल जाए छल। मिथिला पेंटिंग स्वरूप के आधार पर और इ कला मैथिल कन्या सभ के पारिवारिक धरोहर के रूप अबैत छल । महिला के गुण के मापदण्ड ओकर लूरि व्यवहार छल । ओहि मे जे जतेक दक्ष ओकर ओतेक मोजर छलै । आ लोक सहर्ष काज प्रयोजन में लिखिया पढ़िया क दैत छलै । लेकिन पूर्व में महिला के एतेक स्वतंत्रता नहि छलैक जे एहि कला के बाजारीकरण क सकै हेय दृष्टि स समाज निहारै छलै।
तेहन स्थिति में श्रद्धेय सीता देवी साहसिक डेग उठा भीत पर के कला के कागज पर अनबाक सफल काज केलैथ । 1969 में एहि कला के अधिकारिक मान्यता भेटल । 1975 में राष्ट्रीय पुरस्कार, 1981 पद्म श्री , 1984 बिहार रत्न आ 2006 में शिल्प गुरु सँ सम्मानित भेली। एखन तक अपन चित्रकारी क्षेत्र में पद्म श्री पोनिहार श्रीमति जगदम्बा देवी , गंगा देवी , महासुंदरी देवी, दुलारी देवी छथि। दुलारी देवी के संदर्भ में त कहल जाएत छैक जे कर्पूरी देवी आ महासुन्दरी देवी के ओहिठम बर्तन धोईत झाड़ू पोछा करैत मे सिखबाक ललक जागल आ एतय तक के बाट नपलन्हि ।बौआ देवी जमुना देवी शांति देवी ,चानो देवी बिंदेश्वरी देवी, चंद्रकला देवी, शशि कला देवी, लीला देवी ,गोदावरी दत्ता, भारती दयाल, चंद्रभूषण ,अंबिका देवी मनीषा झासभ राष्ट्रिय पुरस्कार सं सम्मानित भी चुकल छथि। ओना एहि कला के क्षेत्र में आब पुरूष से हो अपन हाथ आजमा रहल छथि।
एहि कला के वर्तमान पांच शैली अछि भरनी, कच्छनी ,तांत्रिक , गोदा , कोहबर । सभ अपना में विशिष्ट छैक।जरूरी छैक जे अपन परंपरा आ विरासत के नव आयाम देबाक।आई वर्णित नाम समाज सभ वर्ग सं छैक जे पुरस्कृत छथि । सभ आर्थिक तंगी सं जुड़ल परिवार रहल छथि ।जे एहि कला के माध्यमे अपना के सुदृढ़ करबा में सफल भेला आ अपना गृहकला के अपन कर्मठता के बल पर वैश्विक पटल पर शोभायमान केलथि। अपन आबय बला संतति के भविष्य में सबल आधार प्रदान केलथि । ओना वैश्विक बाजार में एकर मांग में कमी देखल गेल मुदा देश में एखनो बहुत मांग छैक।जेकर मूल कारण व्यवसायिक प्रशिक्षण सँ चित्रकारी क शिक्षा जे विदेश में सेहो टांग पसारि लेलक अछि। मिथिला पेंटिंग के जियो टैग मधुबनी पेंटिंग के नाम भेटल छैक । मधुबनी सौराठ के मार्ग के बीच में एकर संरक्षण संवर्धन हेतु विशाल संस्था निर्माणाधीन छैक ।
(कथा श्रुति स्मृति आधारित)