— अरुण कुमार मिश्र।
भाद्रपद पूर्णिमा सँ आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या धरि पंदह दिनक समयावधि पितृपक्ष कहल अछि। पितृपक्ष पितृ दोष सँ मुक्तिक लेल सब सँ उपयुक्त समय होइत अछि। एहि समयमे श्राद्ध कर्म आ दान-तर्पण सँ पितृ तृप्त होइत छथि आ प्रसन्न भ’ अपन वंशज के सुख आ समृद्धिक आशीर्वाद दैत छथिन। पितृपक्षमे तर्पण आ श्राद्ध कर्म करब हमर सभक सांस्कृतिक परंपरामे अद्दो काल सँ अछि। धर्मशास्त्रमे श्राद्ध के विषयमे विस्तार सँ उल्लेख भेटैत अछि। पितरक श्राद्ध करवा सँ समृद्धि आ सौभाग्यक प्राप्ति होइत अछि। श्राद्धक लेल अपराह्न व्यापिनी तिथि लेल जाइत अछि।
पौराणिक सनातनी चिंतनक अनुसार मनुख के अपन जीवनमे तीन प्रकार के ऋण सँ मुक्त होमय पड़ैत अछि ओ ऋण अछि, देव ऋण, ऋषि ऋण आ पितृ ऋण। विद्वान सभक मानब छैक जे श्राद्ध करवा सँ उपासक के तीनु ऋण सँ मुक्ति भेट जाइत छनि। पितृपक्षमे बहुतों के ई नहि बुझल रहैत छनि जे कुन दिन श्राद्ध करी! धर्मशास्त्रमे स्पष्ट रूप सँ श्राद्ध करवाक विधि देेल गेल छैक जाहि अनुसार पितरक मृत्यु जाहि तिथि के भेल छनि ओही दिन हुनक श्राद्ध कएल जाइत छैक मुदा पिताक श्राद्ध के लेल अष्टमी आ मायक श्राद्ध लेेल नवमी तिथि के श्रेष्ठ मानल गेल छैक। अस्वाभाविक रूप सँ मृत्यु भेल पितर के श्राद्ध चतुर्दशी तिथि के करवाक विधान छैक। पितर के मृत्यु के तिथि ज्ञात नहि होवाक स्थितिमे हुुनक श्राद्ध अमावस्या तिथि के करवाक विधान छैक। श्राद्धमे ब्राह्मण के भोजन कराओल जाइत छैक। श्राद्ध कर्म पूर्ण विश्वास, श्रद्धा आ उत्साहक संग करवाक चाही। पितृ लग मात्र दाने टा नहि अपितु भाव सेेहो पहुंचैत छैक।
श्राद्ध कर्म श्रद्धाक विषय थिक, ई पितरक प्रति श्रद्धा प्रकट करवा माध्यम अछि। श्राद्ध आत्मा के गमन जकरा संस्कृतमे प्रैति कहल जाइत अछि, प्रैति के अपभ्रंश रूप प्रेत अछि। शरीर मे आत्माक अतिरिक्त मन आ प्राण अछि, आत्मा कतयो नहि जाइत अछि, ओ सर्वव्याप्य अछि, शरीर सँ म’न के बहरने प्राण सेहो निकैल जाइत अछि। शरीरक जीवात्मा सँ मोह रहैत अछि तँ ओ शरीरक इर्द-गिर्द घूमैत रहैत अछि। शरीर के जखन अंतिम क्रिया काएल जाइत अछि, तखन प्राण म’न के लेने च’ल जाइत अछि।
श्राद्ध कर्म क’ पूर्वज के संतुष्ट कएल जाइत छैक एहि मे कौआ के पूर्वजक पार्षद, गौ के स्वंय पूर्वज आ ब्राह्मण जे भूलोक पर देवताक प्रतिनिधि अर्थात भू देव छैैथ हुनक अंंश भाग राखब अनिवार्य छैक। अंत मे जिनका निमित्त श्राद्ध भ’ रहल छनि हुनक परिवारिक सदस्य सँ एहि श्राद्धक सनातन प्रक्रिया कएल जाइत छैक। भू लोकक १ मास पित्तरक १ दिन होइत छैक एहि तरहेँ एहि ठामक १५ दिन पित्तरक अधे दिन होइत अछि। बरख दिनक अंतराल पर मात्र अधे दिन लेल पुुर्वज अपन वंशक लगीच अबैत छथिन तँ हुनक निमित्त यथा साध्य श्राद्ध तर्पण करब धर्मोचित अछि। गरूड़ पुराण आ कूर्म पुराणमे वर्णित अछि जे शुद्ध ह्रदय सँ पिताक १६ पीढ़ी आ मायक १४ पीढ़ी धरि पूर्वज के निमित्त दान धर्म नियम पुण्य व्रत तर्पण उपवास काएल जा सकैत अछि ई शास्त्रोक्त थिक। कोरोना कालमे सम्पूर्ण पितृपक्ष श्राद्ध करवाक पंडित लोकनि सलाह देने छलखिन कारण कतेको एहनो लोक के अकाल मृत्यु भेेल छलनि जिनकर आब कयो अपन नहि छथिन।
भगवान सूर्य सँ चंद्रमाक दूरी तिथिक निर्माण करैैत अछि, जीव के ओकर यथा स्थान पहुंचबैैत अछि, कुुन जीव कोन समय वा तिथि मे कतय रहतैक इ निर्धारण करब मनुखक लेल असंभव अछि परञ्च एहि ठामक १२० बरख ब्रह्मा जी के एक पल के समान अछि तँ हुनका लेल इ निश्चित करब सुभितगर छनि जे ककरा कतय रखवाक छैक तँ इ मानल जाइत छैैक एहि ब्रम्हांड मे प्रत्येक जीव जन्तु विभिन्न रूपमे, विभिन्न स्थान वा लोकमे, विभिन्न समयमे विद्यमान रहैते छैथ। “चंद्रमा मनस: लीयते” अर्थात चंद्रमा सँ मन अबैत अछि । कहल गेल अछि जे चंद्रमा मनसो जात: अर्थात म’ने चंद्रमाक कारक अछि तँ मन खराब भेेने पागलपन चढ़ैत छैक जकरा अंग्रेजी मे ल्यूनैटिक कहल जाइत अछि। ल्यूनारक अर्थ चंद्रमा होइत अछि जे ल्यूनैटिक शब्द सँ बनल छैक। म’नक जुड़ाव चंद्रमा सँ छैक तँ हृदयाघात पूर्णिमा दिन बेेसी होइत छैक।
चंद्रमा सोमक कारक छैक तँ अकरा सोम सेहो कहल जाइत छैक। सोम सबसँ बेसी चाऊरमे होइत छैक। धान सदिखन पानीमे डूबल रहैत छैक। सोम तरल होइत अछि तँ भात’क पिंड बनाओल जाइत छैक, तिल आ जौ सेहो एहि मे देल जाइत छैक। जल आ घी सेहो फेेंटल जाइत अछि जाहि सँ सोमत्व आबि जाइत छैक। दहिन हाथ मे अंगूठे आ तर्जनी के मध्यमे नीचा मुहेँ उभरल स्थान शुक्र छैक तँ ओही ठाम कुश राखल जाइत छैक। कुश ऊर्जाक कुचालक होइत अछि। श्राद्ध केनिहार एहि कुश के हाथमे राखि पिंड के सूंघैत छथिन एहि सँ हुनक आ हुुनक पितरक शुक्र सँ जुड़ाव भ’ जाइत छनि। श्रद्धाभाव सँ ओही पिंड के आकाश दिस तकैत पितरक गमन दिशामे मोन सँ समर्पित काएल जाइत छैैक आ तकर बाद पिंड के जमीन पर खसा दैल जाइत छैक।
एहि तरहेँ पितृपक्ष मे हमरा सब अपन पितर के श्रद्धापूर्वक स्मरण करैत छी। श्राद्ध आ विज्ञानक ई अद्भुत संयोग अछि, जे हमर सभक देवतुल्य ऋषि लोकनि द्वारा बनाओल गेल छैक। आई समाजक कई वर्ग श्राद्ध के एहि वैज्ञानिक पक्ष के नहि जानि ओकर उपहास करैत छैथ वा विधि विधान सँ श्राद्ध नहि करैत छैथ। ई अशास्त्रीय टा नहि अपितु पितरक अपमान थिक, जाहि पितरक कारण हमर सभक अस्तित्व अछि, हुनका बिसरब वा अवहेलना करब, कृतघ्नता अछि। गयामे एहि समय मे श्राद्ध करवाक विशेष महत्व छैक। राजा भागिरथी अपन शापित पुर्वजक उद्घार करवाक लेल कठोर तपस्या क’ गंगा के पृथ्वी पर अनलन्हि आ हमर सभ हुनका लेल श्रद्धापूर्वक श्राद्ध त’ कये सकैत छी।। पितरक अर्थ होइत अछि पालन आ रक्षण केनिहार। पितर शब्द पा रक्षणे धातु से बनल अछि। अकर अर्थ होइत अछि पालन आ रक्षण केनिहार तँ पितर पक्षक अर्थ अछि हम सब श्रद्धा भाव सँ पितरक स्मरण करी। अस्तु।
………अरुण कुमार मिश्र
Vandana Choudhary Deepika Jha