— भावेश चौधरी।
“चौरचन” ,भादो मास के शुक्ल पक्ष के चतुर्थी दिन मनबय जाय बला मिथिला के पाबैन।संभवतः मिथिला एकमात्र एहन वैश्विक संस्कृति अछि जाहि मे अधिकांश पाबैन प्रकृति स जुडल,प्रकृति के पूजक आ प्रकृति के आभार मानय वला होई छै।
कथानुसार गणेश जी के बेडौल रूप देखि सुंदर चंद्रमा के हंसी आईब गेलन।उपहास स दुखी भ गणेशजी चंद्रमा के श्राप देलखिन कि अहांके जे कोई देखत हुंकर जीवन कलंकित भ जेतन।श्रापित चंद्रमा भयभीत भय पुनः गणेश जी के पूजा अर्चना करैत मनवय लगला। हुनकर आराधना स खुशी भेल गणेश जी हुनका साल भैर लेल श्रापमुक्त करैत एक दिन श्रापमय रखलखीन जे गणेश चतुर्थी तिथि भेल।
सुंदरता के घमंड,उपहास,क्रोध, आत्मग्लानि आ ‘क्षमा परमो धर्म’ स भरल ई कथा मनुष्य जीवन में बहुत प्रेरणादायक उद्धरण अछि।
अजुका दिन मैथिल सब निर्जला व्रत करैत छथि।बाजार स मटकुर आ छाछी , केरा, सेव,नारियल आदि संगे मिठाई के खरीददारी के भीड़ प्रायः देखल जा सकैत अई। पाबैन मनबा के एकटा लाभ एहो छै जे अई स विभिन्न ग्रामीण रोजगार के बढ़ावा भेटैत छै। विभिन्न पात्र में दही पोरल जाई छै।घर पूरा पुरुकिया,ठकुआ आ खीर के सुगंध सा सुगंधित भेल रहई अछि।
सांझ में बहुधा गाय के गोबर स आंगन के नीप,अर्पण पारि प्रसाद सब राईख पूजा के तैयारी शुरू होई छै।कलंक स बचई हेतु हाथ में कोनो फल आ दही लेने चंद्र देव के दर्शन करैत मंत्र पढल जैत छै:
“सिंह: प्रसेनमवधीत सिंहो जाम्बवता हत:,
सुकुमारक मा रोदिस्तव ह्येष स्यमन्तक:”
ई मंत्र परहब के पाछू सेहो कथा अय। श्रीकृष्ण द्वारा एक बेर चंद्र देव के आई के दिन खाली हाथ दर्शन भा गेल रहन।गणेश जी के श्राप के कारण कलंक लगलन।द्वारिका पूरी निवासी सत्राजित सूर्य की उपासना स सूर्य के बराबर चमकीला ‘स्यमन्तक’ मणि प्राप्त केलन।कोनो कारण हुनका संदेह भेलन कि श्रीकृष्ण ई मणि छीन लेता। ओई मणि के ओ अपन भाई “प्रसेन” के पहिरा देलखीन।एक दिन जंगल में शिकार काल में प्रसेन के माइर ओ मणि एक टा सिंह छीन लेलखिन,आ सिंह स “जाम्बवन्त” नामक भालू। सत्राजित के भेलन जे कृष्ण मणि के लोभ में हमर भाई के हत्या का देलैथ।श्रीकृष्ण अपन ऊपर लागल कलंक धोबई लेल जाम्बवन्त के गुफा में जा हुंका स 21 दिन तक लड़ाई क ओ मणि वापस लेला आ सत्राजित के दा के अपन कलंक मिटेला।
मिथिलांचल के अलावा खरगपुर आ मंदार क्षेत्र में सेहो चौरचन के कमोबेश या पद्धति स मनबल जायत अछि।
मान्यता अई कि जे सब भाद्र शुक्ल चतुर्थी के विधिविधान आ मंत्र के द्वारा चन्द्रमा के आराधना आ पूजन करय छथि, हुनकर जीवन में कहियो मिथ्या कलंक नै लगतन आ सदैव हुनका पर चन्द्रमा के अनुकूलता बनल रहतन।
- जय मिथिला, जय मैथिली।।