“प्रकृतिकेँ उपासक आ पकवान प्रिय मिथिलाक विशेष पाबनि”

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–इला झा।         

मिथिलाक त्यौहार चौठचन्द्र जाहिमे चन्द्रमाक पूजा होइत छन्हि, प्रशस्त मानल जाइत अछि। भादव शुक्ल चतुर्थी तिथिकेँ ई पूजा होइत अछि। ई व्रत मिथिलामे मिथिला नरेश हेमाङग्द ठाकुर द्वारा प्रचलित भेल। ओ नीक ज्योतिषी छलाह। हुनका अहि तिथिकेँ विशिष्ट शुभ फल प्राप्त भेलनि तैं ओ अहि पावनिक प्रचार प्रसार कयलनि।लोक मनोकामना सिद्धि भेला पर दिन भरि निराहार रहि साँझमे विविध प्रकारक पूड़ी-पकवानक संग फल ओ दहीक छाँछी उठबैत छथि।आन प्रान्त मे एहि दिन चन्द्रमा पर ढेप-पाथर फेकल जाइत अछि कारण आजुक दिन चन्द्रमाकेँ कलंक लागल छनि। परन्तु मिथिला मे अहि पावनिक बहुत बेसी महत्व छैक।
ई व्रत जहिया साँझमे चौठ पड़ए तहिया करी से पर्व निर्णयमे कहल गेल अछि।व्रती संध्याकाल नित्य सँ निवृत भऽ स्नान कऽ पूजाक आसन पर आबि बैसथि तखन पूजाक यावन्तो सामग्री अरिपनक अनुसार डाली, छाँछी, अष्टदल अरिपन पर दीपयुक्त कलश राखल जाय तखन पूजाक सामग्री सब लय अपने पूजाक आसन पर बैसथि। हाथमे कुशक पवित्री दहिना हाथमे तेकुशा जल लऽ निम्न मन्त्र सँ यावन्तो सामग्री केँ शिक्त करथि-
“नमः अपवित्रो पवित्र वा सर्वावस्थांगतोपिवा।
यः स्मरेत पुण्डरीकाक्ष सवाह्याभ्यन्तर सूचि-सूचिः।।
नमः पुण्डरीकाक्ष पुनातु।
तेकुशा तील जल लऽ संकल्प करी। सधवा स्त्री गौरीक पूजा आ विधवा विष्णुपूजा करथि। व्रतीक डाला चौठचन्द्र दिन पुड़िकिया, पुआ, विभिन्न प्रकारक मिठाई, दलिपूरी, छांछी भरि दही आ खीर सँ भरल रहैत छैक।मिथिलाक ई पर्व नाना प्रकारक सुस्वादु मिष्ठान भोजन लेल बहुत प्रचलित अछि।
प्राचीन कालमे ब्रह्मा, विष्णु, महेश अपन सभक श्रृष्टिक कल्याण हेतु गणेशजीक अष्टसिद्धी पूजा कएलनि आ हुनका धन, रत्न आदि द’ तरह-तरहसँ हुनक स्तुति केलथि। ब्रह्मा हुनका कहलनि-हे हस्तमुख विद्याक अधिष्ठाता गणेशजी अहाँ हमरा सबके वरदान दिअऽ। गणेशजी प्रसन्न भ’ वरदान देलथि जे ब्रह्माक कैल श्रृष्टि निर्विघ्न होनि। अहि तरह वरदान दैत आकाश मार्गसँ जा रहल छलाह। तखन हुनकर दृष्टि चन्द्रमाक अद्वितीय रूप पर पड़ल। चन्द्रमो हुनको देखलनि, गणेशक अजीव रूप देखि हुनका हँसि लागि गेल ।अहि पर तमसाक’ गणेशजी हुनका श्राप देलनि अहाँ अत्यंत घमंडी छी, अहाँके अपन रूप पर बड्ड घमंड अछि। अहाँके शीघ्रे एकर फल भेटत। अहाँके आइ सँ केओ नहि देखत। यदि गलतियो सँ अहाँकेँ देख लेत त’ ओकरा मिथ्या कलंक लगतै। अहि श्राप सुनि चन्द्रमा हतप्रभ भ’ गेलाह। हुनक प्रकाश क्षीण हुअय लागल। मलीन मुँह ल’ ब्रह्माक लग पहुँचलथि। ब्रह्माक सुझाव सँ ओ गणेशजी केँ प्रसन्न कर’ लेल चतुर्थी तिथिकेँ लड्डू आ उत्तम पकवानसँ विधि-विधान पूर्वक पूजा केलथि। रंग बिरंगक स्तुति केलथि। गणेशजी प्रसन्न भ’ वरदान माँग कहलथि। तखन चन्द्रमा कहलथिन जे ओ पाप आ शाप सँ मुक्त भ’ जाइथ।हुनका पाप आ शाप सँ गणेश जी मुक्त करैत कहलथि, जे अहाँके भादव मासक शूक्ल पक्षक चौठमे जे देखत तकरा मिथ्या कलंक लगतै। जे मासक शुरुए सँ अहाँकेँ देखैत रहत तकरा ओ कलंक नहि लगतै।तकरा अलावे भाद्र शुल्क चतुर्थी कऽ विधिपूर्वक पूजा कऽ हाथमे फल फूल लऽ दर्शन करत तकरा कलंक नहि लगतै।एतबे नहि हमर बनाओल विधिसँ चन्द्रमाकेँ देखत तकरा मनोवांछित फल भेटतैन।
पकवान प्रिय मिथिला हेतु ई विशेष पर्व अछि जाहिमे स्नेही महिलावर्ग सुस्वादु पकवान बनबैत छथि आ बालकसँ वृद्ध धरि खयबाक आसमे साँझधरि चन्द्र दर्शनक प्रतीक्षामे रहैत छथि।