— अरुण कुमार मिश्र।
मिथिला मे भार सांठबाक परम्परा अदौकाल सँ रहल अछि। समयानुसार भार सांठल जाइत छलैक जाहि मे बरियतिया भार, चतुर्थीक भार, बरसाईतक भार, मधुश्रावणीक भार, पुछारी भार, जितियाक भार, चौरचना भार, कोजगराक भार, जड़ाउरक भार दुरगमनियां भार, भड़फोरीक भार छठियारी भार, मुड़नक भार आ उपनयनक भार इत्यादि प्रमुख छल। पाबनि तिहार वा शुभ अशुभ काज मे भार पठेवाक परंपराक रहलैक अछि। भाव केँ यदि फराक राखी त’ भार भेजनाहर पर सेहो ‘भार’ छल, भारिया पर सेहो ‘भार’ छल आ पौनाहर पर सेहो ‘भारे’ छल। सम्भवतः तँ अकर नाम ‘भार’ पड़लैक।
भारमे मुख्यतः दही, केरा, चूडा रहैत छल बाद बॉकी परोजनक हिसाबें बस्तुजात पठाओल जाइत छलैक। खेबा-पीबा के सामग्री यथा- चाउर-चूरा, दही-केरा, पुआ-पकवान, दाइल-तरकारी, खाजा मूंगवा, मर-मिठाई आ माछक भार प्रसिद्ध छलैक।कपड़ा-लत्ता, गहना-गुरिया संग बिध व्यवहारक-सामग्री (श्रृंगार सहित) रहैत छल। दही मटकूूर वा तौला मे आ आन खेबा-पीबाक सामग्री चंगेरा मे पठाओल जाइत छलैक। ताहि दिन केरा प्राय: सभक बाड़ी मे रहैते छलैक तँ केराक प्रधानता भार दिखल जाइत छलैक। भार साठय हेतु केरा धुकल जाइत छल। केराक घौंर ओहिना भार पर राखल जाइत छलैक आ केराक हत्था चंगेरा-पथिया मे सजाओल जाइत छलैक। कपड़ा-लत्ता, गहना-गुरिया आ बिधक सामग्री सब पेटी-बाकस मे पठाओल जाइत छलैक। भार संगे अधिक काल एक टा घरवारिक सेहो पाहुन बनि जाइत छलखिन्, मूूल्यवान सामान रहला पर त’ निश्चित रूपें। खेबा-पीबा के सामग्री त’ परिवारक संग समाज सब लेल अबैत छल, तहिना लोक सब भारक सामग्री मे किछु अपना तरफ सँ मिला कय समाज आ कुटुम्ब के बिच यथासाध्य खूब नीक भोजो करैत छलाह जाहि सँ जशो भेटैत छलैन्ह मुदा त्रुटि भेला उतर खिद्हांसो ओहिना होइत छलैक।
कलांंतर मे भार पठेवा मे कुटुम्ब वर्गादि मे देखौंस आ वर्चस्वक प्रवृति पैेेसैत गेलैक। ज्यों मधुश्रावणीमे २१ टा भार अएलैक त’ कोजगरामे तिनका ३१ टा भार संठवाक होड़ लगलैक। एहि तरहें लोकक माथ पर बोझ रहैत छलैक। कतेक ठाम त’ भार देखि घरबैया हदमदा जाइत छलाह। घर मे भार रखबाक जगह नहि रहि जाइत छलनि। एहनो देखल गेलैक जे असन्तुष्ट हेवाक कारण भार वापसो क’ देल जाइत छलैक। एहि तरहक व्यवहार सँ कुटुम्ब वर्गादि मे झगड़ा झंझटक स्थिति उत्पन्न होयब स्वाभाविक छैैक।
आजुुक समय मे भार ल’ के जेनाई नै त’ भरिया के पोसाई छैक, नहि पठेनिहार के आ नहि पवनिहार के। अस्सीक दशक सँ मजदूूर वर्गक अतिशय पलायन भेला सँ भरिया भेटब कठिन भ’ गेलैक तखन भरियाक अभाव मे अन्यान्य साधन सँ भार पठाओल जा लगलैक मुदा ई आब बिधे तक सीमित भ’ रहि गेल छैक। अकर प्रमुुख कारण एक त’ भरियाक अभाव आ दोसर लोकक परदेसी हायब थिक संगहि आब देेब लेबक भावना मे सेहो कमी देखल जाइछ। कुनु भी अवसर पर भार सांठब त’ सही मे पैघ भार छलैक, पाईक खर्च संग नाना प्रकारक परेशानी आ तरद्दुत। मुदा, लोक सामाजिक प्रतिष्ठा लेल भार संठैते टा छलाह। जे जतेक बेसी भार संठैत छलाह, हुनका ओतेक बेसी प्रतिष्ठा समाज मे आ भार प्राप्त करय वला सेहो ओतवे गौरवान्वित महसूस करैत छलाह, हुनको समाज मे बेेस प्रतिष्ठा भेटैन जे फल्लां बाबू के बड्ड लगहर कुटुम्ब भेटलनि अछि।
जेहन अवसर तेहने भार रहैत छल वा कही सकैत छी जेहन सामर्थ्य तेहन रहैत छल। गरीबो-गुरबा कोनो अवसर पर एक्कौ-दू टा भार अवश्य संठैत छलाह, धनिकक त’ कोनो लेखे नहि छल, सए-सए वा ओहियो सँ बेसी भार संठैत छलाह, प्रतिष्ठा लेल, तहिया भरियो भेट जाइत छलनि, बेरोजगारी रहैक आ समाज मे हुनक दबदबा छलनि, आब त’ पाईयो पर भरिया भेटब बड कठीन अछि।
भरिया के सम्बन्ध मे इहो देेखल वा सुुनल अछि जे भरिया भरि रस्ता जे खेबा-पीबाक सामग्री मोन होय से खेबे करय, संगहि भार पहुंचेला पर सेहो लोक ओहि भारक सामग्री मे सँ भरिया के खुओबैथ छलाह। भरिया खौकार होइत छल, बुझु त’ आधा भार प्राय: ओकरे नसीब होइत छलै। जयबा काल भरिया के बिदाई सेहो भेटैत छलैक। सुनल अछि जे भरिया दही के अनरनेबा के फोंफी लगा रस्ता मे पीब जाइत छल आ ओहि मे फोंफी सँ पानि भरि दैत छल जाहि सँ दही केर छाल्ही पुुन: अपना स्थान पर आबि जाइत छलैक। एहना सन स्थिति मे भार संठनिहार के बड़ बदनामी होइत छलैन्ह। भरिया के गाम मे प्रवेेश करैते लोक पुछि लैैत छलखिन जे कोन गाम सँ भार ऐलैक अछि आ किनका ओहि ठाम जेतैैक? भरिया के नाम कहला पर ओकरा सही बाट बतबैत छलखिन मुदा कतेको गाम मे असमाजिक तत्व सब भरिया के बड्ड उछन्नरि करैत छलखिन, पुुछला उतर सही बाट नहि बतबैत छलखिन। कतेक गोटे झुठि बाजि अपने ओहि ठाम भार राखि लैत छलखिन। अतबे नहि, बाट मे गामक उचक्का छौरा सब सेहो हेंज मे भरिया सभहक पछोड़ ध’ लैत छलैैथ आ पाछू स’ खाय वला सामग्री चोरा क’ निकालि ल’ जाय जाइत छलैैथ। एहि मे ओ खूब आनन्दक अनुभव करैत छलैथ। कुटुम्ब, गाम आ गामक लोक के नीक बेजायक परिचय भरिया मुँहे बुझबा मे अबैत छलैक।
बाद मे जखन समाज मे भरिया भेटब कठीन भ’ गेलै त’ लोक सब भारक नाम पर कैंचाक लेब देब सेहो शुरू केलाह। भार परम्पराक शुरूआत कहिया भेल, कोना भेल से त’ इतिहासक शोध के विषय अछि। पहिने कुटुम्ब वर्गादि दु चारि कोस के दूरी पर छलखिन मुदा कठिनाह रस्ता, कच्ची सड़क आ आवागमन के साधनक अभाव, अकर प्रमुुख कारण रहल हेेतैक। अही लेल लोक पहिने दुर सम्बन्ध नै करैत छल। एक बात आओर उल्लेखनीय अछि जे लोक सब भारक माध्यम सँ अपन निर्धन कुटुम्ब-परिवार, खासकय बेटी के खूब अन्न-पानि आदि मदति पहुंचबैत रहथिन्ह।
मिथिला मे भारक परंम्परा बड पुरान आ व्यवहारिक अछि। बदलैत परिस्थिति आ देखौंस सँ एहि परम्परा मे विकृति आबि गेलैक। लोक मिथिला सँ अप्रवासी होइत गेला, भारक नाम पर कैैंचाक (नकदीक) अदान प्रदान के चलन बढ़लैक, लोको के याह सुुभितगर लगलनि। कैंचा ल’ अपन पसीनक चीज वस्तु,अपने कीनय लगला। दुरस्थ आ अति व्यस्त हेवाक कारण कुटुम्ब वर्गादि मे आपकता सेहो कमे भेल जा रहल अछि। भारक भार सँ मुक्त होएब समयक माँग छैक से दृष्टिगोचर भ’ रहल अछि। परम्परा स्नेह, प्रेम सौहार्द आ आपकताक परिधि मे होइछ तखने नीक मानल जाइछ। अस्तु।
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