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“आधुनिकताक आ देखौंसक कारण परंपरा विलुप्त भेल जा रहल अछि”

— आभा झा।       

– अपन मिथिलामें जतेक पाबैन तिहार जेना मधुश्रावणी, कोजगरा, चतुर्थी,दुरागमन सब में भारक महत्व छैक। मिथिलामें भारक प्रथाकेँ व्यवहार बड्ड पहिने सँ चलल आबि रहल छैक। पहिने गाममें किनको भार अबैन त’ लोक सब देखय लेल बिदा भ’ जाइथ चलै चलू फलना बाबू कत भार देखय लेल। कोनो शुभ काजक ई शोभा सुंदर छलैक।भरिया सब संग लोक हँसी मजाक सेहो करैत छल।ओकर खूब नीक सँ लोक सभ सत्कार करैत छलखिन। तखन ने भरिया जा क’ अपन मालिक सँ खूब प्रशंसा हुनकर सभक करैत छल। ओहि गाम हम भार ल’ क’ गेलौं त’ हमर बड्ड आदर सत्कार भेल। आब त’ भारक चलन खतम भ’ गेल छैक। आब बाहर रहय वाला लोक सब त’ भारक नाम पर पाइये द’ दैत छथिन। विवाह में चतुर्थीकेँ भार जे आवश्यक विधि छैक तेकर पूर्ति दुनू पक्षकेँ आपसी मेल-मिलाप सँ करबाक चाही। लड़का या लड़की पक्ष अपन क्षमताकेँ अनुसार ही भार देबाक परंपराकेँ निर्वहन करैथ। मधुश्रावणी में साँठ देबाक परंपरा छैक। एहि में सेहो कोनो पक्ष द्वारा दोसर पक्ष पर देखावा या आडंबरी भार नहिं वरन स्वेच्छा सँ परिस्थिति अनुरूप देबय लेल प्रोत्साहित करबाक चाही, एहेन व्यवहार हेबाक चाही।कतेको ठाम ई देखल जाइत अछि कि लोक भारक डिमांड करैत छथिन। हमरा भार में एतेक सामान चाही। सामानक लिस्ट सेहो थम्हा दैत छथिन जे कदापि उचित नहिं छैक। भारक मतलब ई नहिं जे अहाँ कोनो पक्षकेँ जबरदस्ती थोपि देबनि।भार अपन स्वेच्छा सँ जे उचित छैक से देबाक चाही।उचित के त्याग नहिं करबाक चाही।तहिना कोजगरा में मखान,मिठाईकेँ वितरण होइत छैक। अहू में कतेक गोटे कहैत छथिन कि हमरा एतेक किलो मखान भार में अहाँ पठा देब। एतेक बेसी आडंबरक जरूरत आबक समय में नहिं हेबाक चाही।महंगाई आसमान छू रहल अछि।दोसर एतेक देलखिन भार तैं हमहुँ देब ई देखौंस बंद करू।हुनका एतेक छैन्ह तैं देलखिन।जकरा जतबे छै ओ ओतबे भार देत।गाम घर में जिनका कम भार अबैत छनि हुनकर गामक स्त्रीगण सभ एक-दोसर सँ काना फूसी करैत छथि।टोंट कसैत छथिन।यै हुनकर पुतौहकेँ त’ एतेक भार एलनि जे थइ थइ भ’ गेलनि। ई गलत बात छैक। जिनकर जे क्षमता छैन्ह ओ अपन क्षमताकेँ अनुसार ही भार देथिन। हमरा जनैत त’ई सब देखौंस या आडंबर केला सँ कोनो लाभ नहिं।आबक लोक लग ने एतेक समय छै जे भार पहुँचाओल जायत।आब भरिया सेहो नहिं भेटैत छैक। अपन क्षमता संग खुशी सँ भारक आदान-प्रदान करबाक चाही तखन ई भार नहिं बुझायत। परंपरा कोनो खराब नहिं छैक। परंपरा या व्यवहारकेँ बचा क’ रखनाइ हमर अहाँकेँ कर्तव्य अछि।देखौंसक चक्कर में पड़ब त’पायल जैब।ताहि दुवारे अपन इच्छा आ क्षमताकेँ अनुसार ही परंपरा या व्यवहारकेँ निभेनाइ उचित अछि। अपन मिथिलाक व्यवहार आ पाबनिक श्रृंगार बहुत नीक अछि मुदा आधुनिकता आ देखौंसकेँ कारण एकर विस्तार बढ़ल जा रहल छैक। जय मिथिला जय मैथिली।

आभा झा (गाजियाबाद)

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