— आभा झा।
सौराठ सभा बिहारकेँ मिथिलांचल क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगय वाला एक विशाल सभा छैक। एहि गामक मूल संस्कृत नाम ” सौराष्ट्र ” छैक। सौराठ मैथिल ब्राह्मणकेँ वैवाहिक मिलन केंद्रकेँ लेल प्रसिद्ध रहल अछि।एत’ योग्य वरकेँ चुनाव ओत’ आयल कन्याकेँ पिता करैत छथि।चुनाव सँ पहिने सौराठ सभागाछी में उपस्थित लोकक बीच अनेक प्रकारक चर्चा जेना मुख्य रूप सँ कुल, मूल और पाँजिका होइत छैक। जाहि स्थान पर लोक इकट्ठा होइत छथि ओ स्थल तपैत सूर्य सँ सुरक्षा प्रदान करय वाला पीपल, बरगद और आम आदि गाछ सँ घिरल छल ( अखनो सभा स्थल गाछ सँ घिरल अछि) जकरा मैथिली में सभागाछी कहल जाइत छैक। ई सभा हिंदु कैलेंडरकेँ ज्येष्ठ-आषाढ़ मास में आयोजित होइ वाला एक वार्षिक कार्यक्रम छैक। वर और वधु दुनू पक्ष घटक, पंजीकार, संबंधिक या परिचित संग एहि मिलन सभा में एकत्रित होइत छलाह। सौराठ सभा में विभिन्न गामक रजिस्ट्रार / पंजीकार अपन-अपन पंजी प्रबंधक संग बइसैत छलाह। सौराठ सभाकेँ उत्पत्ति सँ पहिने एहि तरहक बैठक समौल और अक्सर पिलखवाड़ में होइत छल।कोनो समय एहि तरहक बैठक मिथिलाकेँ विभिन्न क्षेत्र में चौदह स्थान पर होइत छल जाहि में सौराठ और समौल प्रमुखता सँ शामिल छलैक।महामहोपाध्याय परमेश्वर झाकेँ अनुसार,खंडवाला राजा राघव सिंह ( 1703- 1739ई-)में समौल गामकेँ लऽग सभाकेँ आयोजन केने छलाह। सभा में पंजीकार दुनू पक्षकेँ मध्य विवाह ठीक भेला पर ताड़-पत्र पर लिखि क’ सिद्धांत पत्र दैत छलाह। सिद्धांत पत्र विवाहक स्वीकृति होइत छैक।जे ई जाँचयकेँ बाद जारी कैल जाइत छलैक ( अखनो किछ लोक विवाहकेँ एहि पारंपरिक- साइंटिफिक पद्धतिकेँ द्वारा विवाह करैत छथि )कि सात पीढ़ी सँ वर -वधू पक्षकेँ बीच कोनो रक्त संबंध नहीं छलनि।समौल में सभाकेँ लेल नियुक्त रजिस्ट्रार/ पंजीकार पर किछु कारणवश ग्रामीण द्वारा एक बेर अत्याचार कैल गेल छल और ओ सब ओहि गाम सँ पलायन करयकेँ फैसला केलनि और अंततः सौराठ में बसि गेलाह। राजा माधव सिंह एहि सभा में आबै वाला लोकक सुविधाकेँ लेल एक सभागृह, मंदिर ( माधवेश्वर शिवालय) विशाल धर्मशाला और मंदिरकेँ इशान कोण में एक पैघ पोखैरकेँ निर्माण केलनि। स्थानीय लोक कहैत छथि कि करीब दू दशक पहिने तक सौराठ सभा में खूब भीड़ इकट्ठा होइत छल, मुदा आब एकर आकर्षण कम भ’ रहल छैक। उच्च शिक्षा प्राप्त वर एहि हाट में बइसनाइ पसंद नै करैत छथि।पहिने आवागमनकेँ नीक सुविधा नहिं छल। तैं अपन कन्याकेँ लेल वर तकनाइ कठिन कार्य छल, ताहि दुवारे मिथिलांचल के सब ब्राह्मण सौराठ सभा में आबि क’ विवाह तय करैत छलाह। सौराठ सभाकेँ उद्देश्य संबंधकेँ शुचिता बना क’ राखय लेल समगोत्री विवाहकेँ रोकनाइ , दहेज प्रथाकेँ उन्मूलन तथा वर-वधू दुनू पक्षकेँ ध्यान में राखैत वैवाहिक संबंधकेँ स्वीकृति देनाइ छल। पहिने सभागाछी सँ वरकेँ चुनि क’ ‘ चट मंगनी पट ब्याह ‘भ’ जाइत छलैक। एकटा संबंधिक में दीदीकेँ देखने छी राति में ओ दीदी बिन ब्याहल छलीह आ भोरे उठि क’ देखै छी त’ ओ दुल्हन बनि बइसल छलीह। हुनकर विवाह सभागाछी सँ रातोंरात भ’ गेलनि।एहेन विवाह अधिकतर बेमेल होइत छल।पहिने लोकक मुँह सँ सुनियै कि जे लड़काकेँ विवाह नै होइत छैक वैह सभागाछी में विवाह लेल जाइत छथि।हम जतेक विवाह सभागाछी सँ होइत देखने छी सब बेमेल छैक। आब त’ इहो सुनै में आबि रहल अछि कि कन्या पक्ष सँ वर पक्ष दहेजक मांग सेहो करैत छथि।मैथिल ब्राह्मण 700 वर्ष पहिने करीब सन् 1310 में ई प्रथा शुरू केने छलैथ।सन् 1971 में एत’ करीब डेढ़ लाख लोक आयल छलाह। 1991 में सेहो करीब पचास हजार लोक आयल छलाह। मुदा आब एकर संख्या बहुत घटि गेल छैक। एहि प्रकार सौराठ मिथिलाकेँ एक सांस्कृतिक-एतिहासिक स्थल अछि।एहि सभाकेँ पुनर्जीवित करयकेँ लेल जनजागरण अभियान चलाओल गेल संग ही ‘ चलू सौराठ सभा ‘ के माध्यम सँ लोककेँ सभा में आबयकेँ निमंत्रण देल गेल। कोनो परंपरा के जीवित राखयकेँ लेल आबै वाला पीढ़ी के जागरूक भेनाइ आवश्यक छैक। मिथिला क्षेत्रकेँ अनेक विद्वान सभ समसामयिक विषय पर बहुत विचार-विमर्श केलनि, बल्कि एहि परंपराकेँ आगू बढ़ाबैकेँ संकल्प सेहो लेलनि।जय मिथिला जय मैथिली