— अरुण कुमार मिश्र।
“सभागाछी” मिथिलामे प्रत्येक वर्ष अषाढ़ मासमे लगैत अछि। एहि सभामे योग्य वरक चयन कहियो कन्यागत लोकैन करैत छलैथ। मिथिलाक हृदयस्थली मधुबनी सँ मात्र ५ किलोमीटर पर अवस्थित सौराठ गाममे २२ बीघाक गाछीमे ई सभा लगैत अछि। ई पहिल ऑफलाइन मैट्रिमोनियल साईट अछि जे ७०० बरख पहिने मिथिलाक राजा हरिसिंह देव जीक पहल पर आरम्भ भेल छल। सौराठक अतिरिक्त सीतामढ़ीमे ससौला, झंझारपुरमे परतापुर, दरभंगामे सझुआर, सहरसामे महिषी आ पूर्णियामे सिंहासन मे सेेहो एहि तरहक सभाक आयोजनक होइत छलैक।
सत्तरक दशकमे लाखक लाख संख्यामे मैथिल एहि सभामे अबैैत छलखिन जाहिमे बरागत आ कन्यागत दुनु होइत छलखिन। बर मिथिलाक पारंपरिक परिधान धोती, कुर्ता, पाग आ डोप्टा पहिर आंखिमे काजर, ललाट पर चानन लगोने सभागाछीमे बैसैत रहैत छलैथ। हुनक पाँजरिमे बर क पिता आ कुटुंब वर्गादि बैसल रहैथ छलैथ संगहि हुनक खबास सेहो रहैैत छलनि। एहि तरहेँ बरागत सभ अपन डेरा अनुसार बसैथ छला I ओहि बीचे द’ कन्यागत आ पंजीकार घटकक संग घूमते रहैत छलैथ आ वांछित वरागत लग पहुँच कथा करैत छला। कथा करवाक प्रक्रियामे वरागत मुख्य रूप सँ कुल, मूल आ पाँजि देखल जाइत छल। जिनकर जतेक पैघ कुल-मूल-पाँजि होइत छलैन तिनकर ततेक बेसी पूछारत होइत छलैन I मुदा कलांतरमे कुल, मूल आ पाँजि आ संपत्ति सँ बेसी बरक व्यक्तिगत गुण, आचरण, शिक्षा आ रोजगार के प्रमुख मानल गेलैक।
पंजीमे दुनू पक्षक मध्य सात पुस्त धरि रक्त सम्बन्ध नहि रहने उतर पंजीकार द्वारा विवाहक अनुमति देल जाइत छल जे सिद्धांत कहवैत छलैक। पंजीकार “अस्वजन-प्रमाणपत्र” सहमति ताल पत्र पर लिखि दैत छलखिन। पंजीकारक ऊतेड़ पंजीमे सम्पूर्ण मैथिल ब्राहम्ण परिवारक वंशावली होइत छैक। एहि तरहक वैवाहिक परंपरा सम्पूर्ण विश्वमे विरले हेतैक तँ मैथिलक एहि वैवाहिक परंपरा केँ आदर्श परंपरा मानल जाइत छल।
महाराज हरिसिंह देव के दरबारमे नियमित रूप सँ शास्त्रार्थ होइत छल। वर्ष १३२६ ई. मे महाराज हरिसिंह देव अविवाहित मैथिल ब्राह्मण युवकक शास्त्रार्थक आयोजित करोने छला। वेद-वेदान्त, योग, सांख्य, न्याय आदि विषय पर बहुत दिन धरि शास्त्रार्थ चलैत रहल। हरिसिंह देव शास्त्रार्थ मे सहभागी विद्धान युवकक विद्वता देख अत्यधिक प्रभावित भेलैथ आ चुँकि शास्त्रार्थमे सहभागी युुवक सभ अविवाहित छलैथ तँ कन्यागत लोकैन के योग्य वर चुनव सहज भेलैन । तकर बाद प्रत्येक वर्ष एहि तरहक शास्त्रार्थ के आयोजन होमय लागल I विवाहक ई आदर्श व्यवस्था सभागाछी मे परिणीत भेलैक आ अपन अस्तित्व के बचा नहि सकल। पहले सौराठ सभामे विवाह होएब सम्मानक गप्प छलैैक मुदा कलांतरमे कहल जाय लगलैक जे जकर कतयो विवाह नहि होइत छलैक से सभामे जा विवाह करैत छैथ। एहि मान-प्रतिष्ठाक छद्म आ विकृत मानसिकता कारण मिथिला एक गोट आदर्श आ ऐतिहासिक परंपरा मृत प्राय भ’ गेलैक।
सभा-परंपराक बिलटबाक अनेक कारण रहलै। जाहि मे एक कारण दहेज सेहो छैक। सत्तरिक उत्तरार्द्ध ओ अस्सीक पूर्वार्द्ध धरि सौराठ सभाक सकल आदर्श विलुप्त आ दहेज अस्तित्वमे आबि गेल छलै। संगे तकर विरोध सेहो शुरू छलै। ताही परिप्रेक्ष्य मे एक रिपोर्ट तत्कालीन ‘मिथिला मिहिर’ मे आयल, आ जकर शीर्षक छल ‘सभागाछी कि ‘मनी’गाछी ! तहिना ओही कालखंडमे एक प्रतिष्ठित मैथिली लेखक द्वारा एही विषय पर हिंदीक एक बहुपठित साप्ताहिकमे सेहो एक रिपोर्ट छपल छलै- ‘सौराठ सभा : जहाँ दूल्हे बिकते हैं’ मुदा दहेज, रुकबाक बदला बढ़िते चलल गेलै आ तकर आधार बनलै किछु नब प्रचलन सभ, जेना- घरकथा, गताती, गोलट आदि। बेसीतर कथा एही प्रक्रिया सँ स्थिर होब’ लागल छलै। सभागाछी आबि ताहि सम्बंध पर मोहर टा लागै। फेर तँ तुरत-फुरतमे ‘सिद्धांत’ लिखाइत कन्यागत आ बरागत, दुनू विवाहक पूर्णाहुति लेल प्रस्थान क’ जाथि।
सौराठ, वा आने-आन ‘सभा’ त’ अतीत अछि। आजुक चिंतन मे ई कतहु नहि अछि। ग्राउण्ड स्थिति इएह जे सौराठक सोमनाथ मंदिर जंगल, आ सभागाछी बाजार मे परिवर्तित भ’ चुकल अछि। तें निष्कर्ष जे एहि बाजार-युगमे आजुक जीवन, अनुवाद जी रहल अछि, मूल तँ पुरखे लग छुटि गेलै ! तें आजुक पीढ़ी भावुकताक संग नहि, जीवनक यथार्थ संग गतिशील रहब सही बुझैत अछि।
कन्यादान अर्थात् पुत्रीक विवाह मे योग्य वर तकबा मे कम झंझट नहिं होइत छै वा छलै। ई सब देखि बुझि दरिभंगा महाराज प्रतिवर्ष एहि उद्देश्यक हेतु सभाक आयोजन कयलैनि, सौराठ मे ओहि स्थल पर गाछी छै, तैं सभा गाछी नाम पड़लै।वृक्ष स’ छांह से हो भेल। सौराठ सभा खूब जमल खूब प्रसिद्धि भेटलैक। सब रंगक सब श्रेणीक कथा अबैत छलैक, वर के सभा जाय स’ कोनो संकोच नहिं होइत छलैक। एक टा बात आर जे ओहि सभा स्थल पर कन्याक प्रवेश निषिद्ध छलैक। जहन विवाहक कथा बात होई त दहेज के बात हेबे करैक, धैरि ओहि ठाम एक टा ईहो बात होई जे अनधुन दहेजक मांग पर अंकुश लगैक। एहन वरागत के हुथलो जाइन जे जहन कथा बढ़िया छै कुल शील शिक्षा आदि सब नीक त अतेक पाई कियेक लेबहक,और अहि क्रम में जौं वर के आपिस होमय पड़ि जाइन त बड़ लज्जाक बात होई, ताहू मे जौं मात्र दहेज लेल वर आपस होइथ त’ आर बेसी। एहि क्रमे समाजक एक टा अंकुश रहैत छलैक। गरीब धनीक सबहक कन्यादान सुगमता स’ भ’ जाइक। दोसर एक टा इहो फायदा छलैक जे वरक खोज मे घूमय मे जतेक खर्च भ जाइत छैक ओतबा मे विवाहे भ जाई। कियेक त’ बहुत ताम झाम नहिं होइत छलैक, दू स तीन दिनुक तैयारी मे विवाह होई, बहुत लोकक विवाह एकहि दिन पड़ि जाई त’ बरियातीक अनावश्यक बोझ कन्यागत पर नहिं पड़ैत छलैक।
धरि कोनो काज मे सब नीके पक्ष नहि रहैत छै। धीरे धीरे शिक्षाक प्रसार भेल वर लोकनि बड़का अफसर सब होमय लगलाह, बयस से हो बेसी होइत गेलै,और सभा मे बैसबा मे अपन हेठी बूझय लगलैथि। एही क्रम मे एक टा कथा चलय लागल परदाक पाछां। भारत में वामपंथक उदय भेल आओर मिथिलो अहि स निस्पृह नहिं रहि सकल, महाराजक मृत्यु भ गेलैनि आ राजपरिवारक सम्मान अगिला पीढ़ी अपन गलत कृत्य सबहक कारणे घटबैत गेलैन आ आब त समाप्ते भ गेलै।
जाहि टाका क प्रयोग वर वधू के भविष्य क लेल उपयोग भ सकैत छल ओ आई वर ताकय मे आ आडम्बर मे अधिसंख्य बरियाती पर नहिं फेकल जा रहल अछि? की सभागाछी मे बिनु दहेेज देने विवाह नहिं होइत छल। जे कुकर्म समाजक समक्ष करबा मे संकोच होई ओ आब अपन घर मे आब खूब शान स’ पाईक मांग करय लगलैथ। लोक मजबूर भ भ्रष्टाचार करय लगलाह, केना क कन्याक विवाह होइतैनि एहि चिंता स’।
आब यदि किछु विवाह बिनु दहेज के भ रहल अछि त ओकर कारण सह शिक्षा अछि आ स्त्री पुरुषक संग संग काज (नौकरी) करब अछि। ना कि मैथिलक उज्जवल चरित्रक उत्थान। एहि धरोहर के षड्यंत्र पूर्वक मटियामेट क’ देल गेल आ आब पुनः ओकरा स्थापित करबाक ढ़ोंग छद्म मैथिल अभियानी द्वारा कएल जा रहल अछि, मृत्योपरांत पुनः जीवन संभव नहि।