” दहेज मुक्त विवाहसँ दाम्पत्य जीवनमे सुख आ शांतिक वृद्धि होइत अछि”

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— आभा झा।               

लेखनीकेँ धार – समाजकेँ लेल आदर्श विवाह आजुक समय में जतेक जरूरी अछि ओतबे जरूरी अछि एहि मुहिम में समाजक जिम्मेदारकेँ जुड़नाइ।लोभ पापक मूल छैक। यैह मनकेँ सदवृत्तिकेँ दुवृत्ति में परिवर्तित क’ दैत छैक। विचारकेँ दूषित केनाइ एकर काज छैक। झूठ, छल, कपट, बेईमानी, घूसखोरी आदि एकरे बाल-बच्चा छैक। एकर शिक्षा यैह छैक कि दोसर दिससँ आँखि मूइन लिय।केवल अपना सुख और लाभकेँ देखू।दोसरकेँ हानि-लाभक चिंता करैकेँ आवश्यकता नहिं अछि।लोभसँ स्वार्थकेँ उत्पत्ति होइत छैक। स्वार्थ हमर सभक एहेन शत्रु अछि हमर वास्तविक सुख-शांति और आत्मिक उन्नति में बाधक बनैत अछि।ब्राह्मणक ब्राह्मणत्व केवल लोभक कारण ही नष्ट भेल अछि।केवल ब्राह्मणे टा नहिं सब वर्ण में अधिकांश व्यक्तिकेँ यैह दशा छैक। ताहि दुवारे हमर सभक सामाजिक पतन भ’ रहल अछि।संसारक सुख-शांति यैह कारण डाँवाडोल भ’ रहल छैक। आजुक मनुष्यकेँ लक्ष्य धन कमेनाइ टा रहि गेल छैक चाहे ओकर उपाय उचित हो या अनुचित। विवाह त’ एहेन प्रक्रिया अछि जाहि में दू मन एक भ’ जाइत छैक। परन्तु एक तखने भ’ सकैत अछि जखन हुनकर विचार,गुण और स्वभाव में अनुकूलता हो, हुनकर रूचि आपस में मिलैत होइन। आजुक लोक दंपत्तिकेँ भविष्यकेँ नै देखैत छथिन। हुनकर नजरि त’ खाली रंग-बिरंगक सुंदर वस्त्र, गहना और टाका पर रहैत छैन्ह। कन्याकेँ चुनाव शिक्षा, शील,नम्रता, लज्जा ,सरलता आदि गुणक आधार पर नहिं कैल जाइत छैक। जिम्हर बोली बढ़ि जाइत अछि उम्हरे झुकाव बढ़ल जाइत छैक। कन्या पक्षकेँ अपन पेट काटि क’ कर्ज ल’ क’ कोनो तरहे एकर पूर्ति करय पड़ैत छनि।नै करू त’ बेटीकेँ बेसी उम्र तक अविवाहित राखि क’ बदनामी मोल लेबय पड़ैत छनि।लड़की पक्षक पूरा परिवार जखन तक विवाह नै भ’ जाइ, अहि उलझन में पड़ल रहैत छथि कि एहि समस्याकेँ कोना हल निकालल जाय।हुनका निरंतर चिंता घेरने रहैत छनि। तहिना लड़का पक्षकेँ सेहो दिक्कत आबि रहल छैक। दहेजक पाप में कन्या पक्ष और वर पक्ष दुनू दोषी छथि।हाँ वर पक्षकेँ बेसी दोषी मानि लेला में कोनो हर्ज नहिं।लड़का वाला लड़की पक्षसँ बढ़िया कपड़ा, कीमती गहना ,बतियातीकेँ ठाठ-बाट,बाजा आतिशबाजी आदि चाहैत छथि।बेटीवाला तबाह भ’ जाइत छथि। इहो बात छै जे बेटी या बेटा वाला दुनूकेँ शौख मनोरथ रहैत छैन्ह। आदर्श विवाह में ई नहिं हेबाक चाही कि अहाँक बेटी छथि त’ हुनका बिना कोनो सामान या गहना देने अहाँ बिदा क’ देबनि।अहाँ बेटीकेँ अपन क्षमताकेँ अनुसार जरूर दियौन। संग ही लड़का वाला सेहो अपन क्षमताकेँ अनुसार ही खर्च करैथ। अनेरोकेँ दिखावा या आडंबर केलाकेँ कोनो फायदा नहिं।अपन हैसियतकेँ ध्यान में राखि उचितकेँ त्याग दुनू पक्षकेँ नहिं करबाक चाही।कन्या पक्ष वर -पक्षकेँ और वर – पक्ष कन्या पक्षकेँ ओहि खर्चकेँ कम कराबैथ जकरा कम कैल जा सकै छै।आदर्श विवाहक मतलब ई नहिं जे उचितो के त्याग क’ दी।दहेज मुक्त मिथिला समूह जेहेन आरो समूह सबसँ जुड़ि क’ आदर्श विवाहक प्रथा चालू करू। यदि दहेज प्रथाकेँ विरूद्ध युद्ध छेड़ल जाय त’ हमरा विश्वास अछि कि एहि सत्यानाशी कुरीतिसँ छुटकारा जरूर भेटत और अपन समाजक पारिवारिक तथा दांपत्ति जीवनकेँ सुख शांतिमय बना सकैत छी। जय मिथिला जय मैथिली