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“चलू फेरसँ अपन ओही नेनपनमे…”

— पीताम्बरी देवी।             

जखनै गाम के बात एल आर ओ पोखरि के महार आर महार पर बरका कलम ।आर कलम में रंग बिरंगक आम के गाछ कटहर ओ जामुन के गाछ ।हमर कलम में बम्बई , मालदह, कलकतिया, केरवा, लरूबा, आर आठ दस टा सरही आम के गाछ छल।गाम ओ कलम के नामे सुनि के मोन गुदगुदा लगै ये ।आर होई ये भगवान फेर एक बेर ओहने दिन देखा दैतथि।आम में मजर होई छलै आर कोईली कलम में कुहकय लागय छल। ओ मधुर आवाज सौसे वातावरण के गूं जयमान बना लै छल।आर जहा टिकुला भेल कि कलम के आवाजाहि सुरुह भ गेल ।फेर आमिल बनय लागल ।आर बहिन पुदीना पात दय के चटनी पिस लगै छलि।आर कनेक नम्हर भेल कि सब काका बाबू सब कलम जाय लगै छला।टोल के सब कलम में बैस लगै छला। पहिने कोनो गाछ तर पटिया बिछा के सब तास खेलाईत रहै छला आर फेर कलम में खोपरी बान्हल जाय छल।खोपरी में मचान पर पटिया बिछा ओल रहै छल आर सब मचान पर बैसैत छले ।बाबू ते दोपहिया में ओतै सुतै छला।आम के मास में जे काका सब परदेस में रहय छला ओहो सब गाम आबि जाई छला।मचान लग एकटा घैला में पानी सरबा से झापल आर एकटा गीलास उपर मे राखल रहै छले ।आर हमरा सब के काका झुला लगा दै छला ।झूला दू तरहक होई छले ।एकटा रस्सी बला आर एकटा भाई जी सब बास के बनबैत छलखिन ओहि मे भाईजी सब झुलै छलखिन ।ओ हबा में बहुत जोर से झुलै छले ओहि झूला पर चारि चारि गोटा ऐके संग झूलै छला।भरि आम धिया पुता सब आर पूरूष सब कलमे में रहै छला।हमरा सब के सटले सटले आरो कलम सब छल ते सब कलम में खोपरी बान्हल जाय छले ।आर टोल भरिक बच्चाक खेल के स्थान कलम भय जाय छल। बहुत मजा अबै छले। अनदिना में कलम में भूत प्रेत रहै छले मुदा आम फरैत देरि सबटा भूत भागि जाईत छल ।रैत बिरैत जखनि आन्धि तुफान एल सब दौरल कलम आर झोरा भरि भरि आम बिछ के आबि गेल कतौ भूत नै कोनो डर नै जखनि आम पैघ भ जाई छल ते भाईजी सब रातियो के कलमे मे सुतै छला।घर में मां आर काकी भरिदिन ओहि आम में लागल रहै छलि ।रंग बिरंग के अचार सब बनैत छल कुटवी ,फारा, गुरंम्बा ,कूच्चा ,आर अनेको तरहक अचार आर जखनि आम पाकय लागय ते सबटा दगेलहा आम के अमोट चौकी पर सूप में पीरही पर ते डाला डाली सब पर अमोट बनै छले।सबसे पहिने सरही आम आर फेर बंम्बई पकै छले ।घर ते मह मह करैत रहैत छले ।पाकल आम अमोट ओ अचार से ।आर हमरा सब खुरचन के घैस के बिच में भूर क दियै आर कृष्ण भोग फैजली के ओहि से सोही के पुरिया में नोन मिरचाई रखने रहलौ आर कचैर कचैर के खेलौ कि स्वाद छल अखनौ मूह मे पानी अबैये।बेरा बरी के सबटा आम टूटि टूटि के घर आबय लागय ।जखनि कलकतिया टा बचल रहै छल तखनि कलम में भोज होईत छल ।बेसि बेर पितलिया वर्तमान में खिर बनै छले आर आम खीर आम के भोज होई छले । कोनो कोनो बेर भात दाईल डालना तरूआ ओ दही आम के भोज होईत छल ।भाईजी सब एकर कर्ता धर्ता रहै छला।हमरा सब के केरा के पात पर खाई लेल भेटै छले पानी पिबय लेल लोटा अंगना से ल के जाई छलौ। बहुत बहुत मजा अबै छले आम के मास में ।हम सब खूब धमाल मचबै छलौ कलम में ।ओ खेल धुप सबटा बिला गेल ओ पिट्टो, चरबानूकि, सरगपतालि, आखिमूनी सबटा खेल खतम भ गेल। छूट्टी खतम भ जाई छले ते काका परदेश बिदा होई छला दादी कचका बोरा में आम अमोट अचार खेरही के दाली आर अनेको तरहक सनेस सब मोटरी में बान्ही दै छलनि ।काका मोटरी देख के बिगरै छला जे एतेक सामान ल के कोना जेब मुदा दादी कहा मानै छलनि सबटा संग लगाईए दै छलनि।आब ते गामो शहर भ गेल ।आब सब बच्चा सब मोबाईल टी, भी , में लागल रहै छथि ।ने कलम गाछि कियो जाई छथि ।सब कलम के पैकार हाथे बेच लै छथि ।आब ने ओ नगरी ने ओ ठाव रहल ।सबटा बदलि गेले। बहुत गाछि कलम ते सुखा गेल कटि गेल ओतय घर वनि गेल।आर जेहो बाचल अछि ओकरो कियो देखनाहर नै छै।

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