– विवेकी झा।
युवा पीढ़ी अगर जागत,
तखने दहेज समाज सँ भागत ।।
हे युवा समाज सुतल छी कतेक कनि जगियौ
हे युवा समाज सुतल छी कतेक कनि जगियौ ,
मचल दहेजक हाहाकार अइछ ,
फैलल जे ई अन्धकार अइछ,
समाज के आहाँ आब सुधारीयौ ,
कनि जगियौ।
बेटी के बाप हतास बैसल,
केहन ई पैसाक भूख बढ़ल ,
बढैत उम्र देख माँ के आँचल भिजल,
निर्मोही समाजक , अहियो पर ताना परल ,
हे युवा पीढ़ी सुतल छी कतेक कनि जगियौ।
केहन ई दहेजक महामारी अइछ,
समाज में फैलल ई बीमारी अइछ,
बेटीक बाप लाचार बनल ,
धिया हमर कतौ आइग में जरल ,
कतौ ओ सूली पर अइछ चढ़ल ,
हर तरफ मचेने तबाही अइछ,
अज्ञानी के गलती के सुधारीयौ ,
बापक बोझ कनि कम करियौ,
हे युवा पीढ़ी आब आहाँ जगियौ
आशाक दीप कनि जलबियौ
कनि जगियौ
हे युवा सब सुतल छी कतेक कनि जगियौ।
दहेजक बैढ़ केहन समाज में आयल अइछ ,
लालचक बाँध मनुष्यक तोरने जायत अइछ ,
बनल मजबुर लालच सँ अतेक मनुष्य केना ,
अशुर बनल समाज में अकरैत केना,
जन्मल अइछ जखन ओहो कोनो बेटीये सँ ,
तखन अनकर बेटी पर बनल अतेक क्रुर केना
हे युवा आव अपन समाज सुधारीयौ
कनि जगियौ
हे युवा सुतल छी कतेक कनि जगियौ।
हे युवा ,
नै करू विवाह दहेज ल के कोनो ,
जँ मागैत बाबू त करू बिरोध कोनो ,
छी पढ़ल लिखल या अगुठा छापे कीया ने ,
रहब सर उठा के बिना दहेजक किया ने,
जखन कहबै नय लेलौ दहेज हुनका सँ ,
घुरि तकतै लोग जखन सर झुका के,
अकैर के सीना तैन चलबै आहाँ कीया ने ।
हे युवा सुतल छी कतेक कनि जगियौ।
हे बाबू अहि आब ठानू,
समाज नै सुधरै बाला अइछ
बात हमर अही आब मानू
जे मगैत दहेज आहाँ सँ,
देखा दियौन ठेगा दुनु ,
राखू अहू अपन बेटा समहैर के ,
राखी हमहू अपन धिया आहाँ सँ बचा के ,
नय करब मोल भाव, नय करब धियाक बिबाह ।
कम सँ कम बेटी त बचत लोभीक अत्याचार सँ ।
आहाँ कीया हुनका सँ भिख मागैत छी ,
कीया हमर बाप होय चलते सब किछु सहै छी ,
आहाके बेटी लयौ के नय बदलैया ,
कखन की माँगी लेत से मन तरपैया ,
इज्जत अपन हाथ लेने , आहाँ हाँ में हाँ कीया भरै छी ,
सब किछु देला के बादो ओ आब आहाके प्राण मगैया ।