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“बिन भार-भरियाक केहेन शोभा!”

— मंजूषा झा।                       

भार उठाके आनय बला भेल भरिया । रंग विरंगक पकवान , चूड़ा , दही , मिठाई , रंग -रंगक फल क भार ।बच्चा पेट मे भेल तँ सधोईरक भार आबै छल । सुआदगर , चहटग़र , अनेको पकवान आ खुआ सकरौरी क़ संग खीरक’ भार आबै छल । सासुर मे छी तँ नैहर सँ आ नैहर मे छी तँ सासुर सँ । सब भरि मोन छकि कऽ खाई छल आ भरियो वैह सब खाई छल । भरि टोलक व गामक लोक के बेन बँटाई छल । बच्चा क़ जन्म भेला उत्तर छठिहार क़ भार आबै छल । बच्चा आ बच्चा माय ले कपड़ा लत्ता ओहो मौसम क हिसाबे ।बच्चा ले गहना आ बच्चा माय ले सूठौड़ा दवाई क संग भड़ल रंग रंगक मौसमी चीजक भार आबै छल । फेरो बिदागरी संग भार जाई छल । बेटी – पूतहु छुछे कोना जेती ? तें । पुनः मुड़न , उपनयन , बियाह , बिदाई ,कोजगरा , चतुर्थी ,चौरचना , जितिया , बरसाईत ,मधुश्रावणी , फगुआ ,साँझ भतराईस , भरदूतिया माछदही , दूरगमनियाँ , पुछारि क भार मतलब जे अनेको तरहक़ भार अहि गाम सँ ओहि गाम भरिया उघईत रहय छल । एक एक गाम ततेक बेर एगो भरिया जाई छल जे कूटुमारे मे सब घरक सदस्य जेना चिंहै लागई छलैक ।एते ठाम एतेक रंगक भार ल जाई बला जे होई छल वैह छल भरिया । पहिला ज़माना मे प्लास्टिक क बरतन आ एतेक गाड़ी क सुविधा नै छल तें भरिया क़ बड्ड महत्व छल । पर एते ठाम गेलाक बादो भरिया क माली व आर्थिक स्थिति नीक नही छलैक ।पहिला बच्चा सब भरिया आ भार के देखिते संगे संग पाछु पाछु चलय लागई छल । हम सुनने रही जे किछू भरिया किछू समान सब रास्ता मे निकाली के खाइयो लै छल । दही क कसतारा से पपीता क़ पातक फ़ोंफ़ी सँ दही पीब लै छल । ख़ैर आब ज़माना बदलि गेलैक ।

आब भरिया क ज़माना नै रहल । आब टिन आ कार्टून मे आ गाड़ी सँ भार भेजल जाई अछि । सेहो बस नाम मात्र । तें भरियाक उठाव भ गेल । भरिया ई काजो छोड़ी देलक ।
मंजूषा झा __🖌

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