— आभा झा।
परिवर्तन ही प्रकृतिक नियम अछि। जखनो गामक बात चलैत अछि,तऽ एक सुकून भरल, शांत,सहज,सादगी
पूर्ण वातावरणक आभास मोन में उभरि जाइत अछि। हरियर-हरियर खेत,हल जोतैत किसान,मवेशीक गरदनि में टुनटुनाइत घंटी,दलान पर बुढ़-बुज़ुर्गक दृश्य साकार हुऐ लागैत अछि। मुदा आब गाम बदलि गेल अछि। आधुनिक तकनीक और जीवन शैलीक धमक साफ सुनाई दैत अछि। गाम में युवा लोकनिक दर्शन दुर्लभ भऽ गेल अछि। बचपन में जे गाम देखने रही आब ओ गाम भेटनाइ कठिन अछि। शहरक चकाचौंध
के चपेट में गाम आबि गेल अछि। पिछला एक दशक स़ँ शहरीकरण गाम पर अतिक्रमण केनाइ शुरू कऽ देने अछि जे घातक कैंसरक जेकां गाम सँ चिपकी गेल। गाम अपन मूल प्रकृति सँ हटैत चलि गेल। खेत-खरि
हान में गीत गबैत किसान,कांच मइटक घर और झोपड़ी,ऊबड़-खाबड़ धूल-धूसरित सड़क,धीरे-धीरे चलैत बैलगाड़ी,इनार,पोखैर पर पइन भरैत स्त्रीगण और मइट में खेलाइत छोट-छोट नंग धरंग नेना सब। पहिने कतौ गामक चर्चा होइत छल तऽ सब दृश्य अनायास ही हमर दृष्टिपटल पर अंकित भऽ जाइत छल। मुदा आब गामक दृश्य बदलि रहल अछि। खेत-खरिहान और गामक गली में आब ओ गीतक राग सुनाई नहिं पड़ैत अछि। आब एकर स्थान सिनेमाक
आधुनिक गीत लऽ लेने अछि। लाउडस्पीकर पर अभद्र
भोजपुरी गीत सब सुनै लेल भेटैत अछि। आब पाबैन तिहार हो या कोनो शुभ काज सब में फिल्मक गीत आ भोजपुरी गीतक प्रचलन बेसी भऽ गेल छैक। कांच मइटक घर आब पक्का मकान में तब्दील भऽ गेल अछि। बैलगाड़ीक स्थान आब ट्रैक्टर लऽ चुकल अछि। भोरे-भोर ‘सीताराम,हरिओम जेकां बोली सुनै लेल कतऽ भेटत। ई बोली गामक आवाज होइत छल। घरक बुज़ुर्ग जिनका अरुणोदय के बाद चाह पीबै के इच्छा होइत छलनि तऽ ओ खाली भगवानक नाम लैत छलाह। गामक दृश्य आइयो आँखि सँ गुजरैत अछि तखन बचपनक याद सहज आब लगैत अछि। आमक गाछ,लतामक,जामुनक या बेरक गाछ ककरो होइ पर ओकर फल खाइ के अधिकार हर गामवासी के सहज प्राप्त छल। आब तऽ अपन आ आनक भावना लोक में आबि गेल छैक। पहिने संयुक्त परिवार में सब एक आंगन में रहैत छल,एके जगह पैघ-पैघ बासन में एक संग सबहक भोजन बनैत छल। गाम में कोनो शुभ या अशुभ काज में पूरा समाज ठाढ़ भऽ जाइत छल। पहिने ढोल,पिपही बजाबै वाला खुशी-खुशी अबैत छल कि आइ मालिकक घर में काज छनि। पहिने गामक एक अलग संस्कृति छल। जखनो गाम में कोनो बरियाती अबैत छल तऽ ओ पूरा गामक बरियाती होइत छल। गामक सब लोक बरियातीक आतिथ्य सत्कार केनाइ अपन धर्म बुझैत छलाह। मुदा आब ई देखै लेल कम भेटैत अछि। पहिने एक घरक मेहमान पूरा गामक मेहमान होइत छल। हालांकि गामक अहि परंपरा में पहिने के अपेक्षा कनिक परिवर्तन तऽ अवश्य भेल अछि,आइयो गाम में ई परंपरा काफी हद तक विद्यमान अछि। टेलीविजन के कारण गामक लोक के कोनो घटनाक दृश्य सहित जानकारी सेहो प्राप्त भऽ जाइत अछि। टीवी और शिक्षाक प्रसार सँ ही ग्रामीण लोक हर क्षेत्र में पहिने सँ बेसी जागरूक भेल छथि।ग्रामीण इलाका में अंग्रेजी माध्यम वाला पब्लिक स्कूल खुजी गेल । पहिने गामक वातावरण स्वच्छ छल। आइ औद्योगिककरणक चलते जंगल आर खेत कम भेल जा रहल अछि। ताहि दुवारे गामक वातावरण आब पहिने जेकां स्वच्छ नहिं रहल। गाम में नशा के अधिकता भेल जा रहल अछि।शराबक दोकान खुजि गेल अछि। अपराध सेहो बढ़ि गेल अछि। पहिने गामक लोक में आँखि में लाज छल पैघ-छोटक लिहाज छल। गाम में मनुष्य के मनुष्य सँ दूरी बढ़ैत जा रहल अछि। गाम यदि जीवित रहल तऽ हमर सबहक संस्कृति और परंपरा जीवित रहत। गामक विकास एक सुखद अनुभूति ।