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“हमर राम”

— रुबी झा।                                   

एकटा विद्वान कवि कहने छथिन –
#मेरी_इतनी_हिम्मत_नहीं_जो_राम_पर_लिखूं_कुछ
#तुलसी_बाल्मीकि_ने_छोरा_नहीं_है_कुछ.
लेकिन हम मिथिलानी सिया जी के अपन जेठ बहिन बुझै आ मानै छियैन।ताहि द्वारे हिम्मत कऽ रहल छी किछु लिखै के। पढू आ कमेंट्स करु कृपया अपने लोकैन।🙏🙏
विषय अछि अपन – अपन राम।
राम एकटा एहेन कैरेक्टर छाइथ
जिनका लगभग सब संबंध सऽ लोक जोड़ै छै।
जना कि पुत्र,पति, पिता, भाई,राजा, मित्र, शिष्य, योद्धा आ नेता ( नेतृत्वकर्ता) इत्यादि।
हम अपन राम के हरेक रुप मे पूज्यनीय आ आदरणीय मानै छियैन।
पुत्र – अगर किनको पुत्र बहुत आज्ञाकारी आ संस्कारी रहै छै, तऽ लोक गांव – समाज मे कहै छै देखियौ फलां के पुत्र राम सन छै।
बिना किछु सवाल- जबाव केने हरेक बात अपन माता- पिता केर मानै लेल तैयार रहै छै।
घर आ खानदानक नाक ऊँच कऽ देलकै।

कियेक तऽ राम जी अपन पिताजी के आज्ञा पर बिना किछु सवाल – जबाव केने
वल्कल वस्त्र पहीर वन कऽ प्रस्थान कऽ जाय छथिन।
सोचै वला बात छै ,प्रात भेने जे अयोध्या सन राज्य के राजा बैनताइथ से एकटा वनवासी के रुप धारण कऽ
वन गमन कऽ लेलाइथ।
पति – अगर सीता पतिव्रता स्त्री छली,तऽ रामचन्द्र जी पत्नीव्रता।
सीताजी के वन गमन के पश्चातो ओ दोसर विवाह नै केला।जखन कि हूनक खानदान मे बहु-विवाह के प्रचलन रहैन।हूनक पिताजी खुद तीन टा विवाह केने रहथिन।
आ तीनूं पत्नी संगे रहैत रहथिन।हिनक तऽ पत्नी वन कऽ चैल गेल रहथिन। राजस्यू यज्ञ मे जखन श्री राम चन्द्र जी के गुरु कहैत छथिन बिनु अर्धांगिनी के यज्ञ पूर्ण नै मानल जैत।तऽ श्री राम चन्द्र जी सोना रूपी सीता के अर्धांगिनी बना यज्ञ पूरा करै छाइथ।
लेकिन पुनः विवाह नै करै छाइथ।
लोक सभ श्री राम जी पर लांछन लगाबै
छथिन,जे ओ अपन पत्नी के गर्भावस्था मे वन गमन कऽ भेज देलाइथ।हमरा हिसाब सऽ ई सरासर ग़लत अछि।
माँ जानकी स्वयं सब तरह सऽ सक्षम छलैथ,ओ साक्षात माँ लक्ष्मी के अवतार छली।
राजा जनक केर धीया छली,एकटा विरांगना महिला छली। वैदेही चाहिताइथ तऽ जनकपुर लौट जैयताइथ, लेकिन नै, ओ वन के चुनली आ वन विदा भऽ गेली। ओ मजबूरी वश नै बल्कि सर्हष मन सऽ वन गमन कऽ गेली।

भाई – रामचन्द्र जी एहेन भाई छला जे अपन छोट भाई सबके पुत्र समान स्नेह दै छलाइथ।
अगर किनको भाई – भाई मे बहुत अधिक स्नेह रहै छै तऽ लोक समाज कहैत छै,देखियौय फलां के राम , लक्ष्मण ,भरत आ शत्रुघ्न जेना स्नेह छै।
एखन धरि संसार मे लोक उदाहरण दै छै राम – भरत मिलाप के।

मित्र – राम चन्द्र जी एहेन मित्र छलाइथ जे जखन हूनक राज्याभिषेक होबऽ के तैयारी हूवऽ लगलैन, तऽ भरत जी
कहैत छथिन जे भैया किनका सबके बजा लिय।
तऽ रामचन्द्र जी कहैत छथिन जिनका सबके बजेबैन से तऽ अहाँ बुझबै,कियेक तऽ हम तऽ चौदह साल सऽ छलौं नै। सिर्फ हमरा तरफ सऽ केवट के निमंत्रण भेज दियौय ।
सोचियौय एतेक पैघ राज्य के भावी राजा,राजा दशरथ के पुत्र। लेकिन हूनका जे गंगा पार करेने रहैन मल्लाह से याद रहैन।आबक पैघ लोक के उपकार कऽ दियौय सोझ मुँहे धन्यवादो नै देत।याद रखनाय तऽ दूर के बात।

शिष्य – राम चन्द्र जी एहेन शिष्य रहैथ जकर कि वर्णन हमरा कलम सऽ संभव नै अछि लिखनाय।
हमरा कलम के एतेक ताकत नै अछि।
ओ राजा दशरथ के पुत्र रहैथि ओहो पाथर परका दूइब।
आ गुरु लेबऽ आबैत छथिन आ ओ सहर्ष स्वीकार कऽ गुरु संग विदा भऽ जाय छाइथ।
आ गुरु के आज्ञा सऽ अनेको राक्षस के वध करै छाइथ।
शीला रूपी अहिल्या के उद्धार करै छाइथ।

योद्धा – रामचन्द्र जी एहेन योद्धा छलाइथ जे दोसर देश – राज्य मे जा कऽ ,ओहो लंका सन राज्य रावण सन बलशाली, वैभवशाली राजा के पराजित कऽ एला।
ओहो अपन बानरी सेना,भालू आ गिलहरी के मदद सऽ।
ओ चाहिताइथ तऽ कौशल राज्य, मिथिला राज्य या अयोध्या राज्य सऽ सेना आ साधन मंगा सकैत छलाइथ।
लेकिन नै?
कियेक कि हूनका अपन कर्म पर भूजवल पर दृढ़ विश्वास रहैन।जे असत्य पर सत्यक विजय अवश्य हेतै।
ओहि लेल कोनो राज्य या राजा के मदद के जरुरत नै छै।

नेता – नेता एहेन जे जखन युद्धक तैयारी होबय लागल तऽ स्वयं सऽ ज्यादा अपन सेवक हनुमानजी पर विश्वास।
आ हूनका किछु बिना समझेने – बुझेने सीधा लंका भेज देलखिन।आबक नेतृत्वकर्ता तऽ पैहने लंबा – चौड़ा भाषण देता तखन किनको कोनो काज सौंपता।
विश्वास केनाय सीखू अपन लोक पर राम चन्द्र जी जना।

राजा – रामचन्द्र जी सन शायद राजा फेर पृथ्वी पर नै कियो भेल।जे एखन धरि संसार मे राम राज्य के उदाहरण देल जायये।
ओ अपन राज्य के प्रजा सऽ कर लय छलाइथ,
जना दिनानथ अपना सबहक हाथक जल मे जल लऽ लै छाइथ।आ पतो नै अपना सबके चलैया।
आबक राजा जंकाँ नै, जी. एस. टी बिल,इनकम टैक्स रिटर्न बिल तऽ फलां बिल तऽ चिलां बिल।

जाबे धरि संसार रहत लोक – समाज उदाहरण के तौर पर
रामचन्द्र जी के नाम लैत रहत।
अभिवादन सऽ लऽ कऽ अलविदा तक एक दोसर के लोक राम – राम कहैत छै।
अंतिम विदाई मे सेहो लोक रामे के नारा लगबैया।
#राम_राम_सत्य_है
#सबकी_यही_गत्य_है।

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