– रेखा झा।
#गभासंक्रांति
संक्राति के अपन मिथिला के पंचांगमें बहुत महत्व अछि। कोनो पाबनि आ मास , विवाह आदि शुभ दिन संक्रांति के हिसाब स शुरू कयल जाईत अछि। हरेक मासमें सूर्य अपन राशि परिवर्तन करैत छथि एक राशि स दोसर में प्रवेशक दिन संक्राति कहल गेल अहि प्रकार साल भरिमें बारह टा संक्राति अबैत अछि। आश्विन मासमें सूर्य सिंह राशि स निकलि कन्या राशिमें प्रवेश लै छथि, भारतभूमि चूंकि कृषिप्रधान देश अछि आ मिथिला एकरा सब दिन परंपरामें उजागर कयल से बहुत नीक बात अछि।
सावन भादो मे जे धनरोपनी भेल रहैया ताहिमें अश्विन मास में धान स भरल सीस निकलि जाईत अछि। गर्भधारण के खुशी संक्राति दिन मनावल जाईत अछि जेकरा की गा’भक संक्राति कहल गेल।
अहि दिन किछु धानक सीस घर आनल जाईत अछि लगभग दस टा।
गाभक संक्रांति दिन कुमारि के बजा हुनका खोंईछ देलाक उपरांत चौदह टा कुम्हर के फूल अलग अलग राखि ओहि पर कुमारि के हाथ स गायक गोबर स चिपरि पाथल जाइत अछि जेकरा लबनियां चिपरि कहल गेल।
संक्राति दिन जे धानक सीस आनल गेल रहैया ओही स दिया बाती दिन लक्ष्मी घर कयल जाईत अछि आ सूप पीटी क दरिदर बाहर कयल जाईत अछि। लुक्कापाती सेहो संठी के बनावल जाइत अछि जेकरा धधरा लगा घर बाहर कैल जाईत अछि , अहि संठी के पुनः राखल जाईत अछि लबान लेल।
आब नया अन्न उत्पादन के खुशी मे लबान मनावल जाईत अछि। अहि लबान दिन सबस पहिने धान जे कटायत चंगेरा मे घर आनल जायत अहि धान के सोहि क जमा क चूरा कूटैत छथि गृहिणी उखरि समाठ में।
गाभक संक्राति दिन जे चिपरि पारल गेल छल से भगवती आगां सुनगागयल जैत लुक्कापाती वाला संठी संगे आ अही से जे आगि प्रजवल्लित होयत ताहि स ओहि दिन भगवती की दीप लेसल जायत, सलाई स नहि से ध्यान देब। जे चूरा कुटायल ओ दूध आ गुड़ संगे विष्णु के भोग समर्पित कैलाक बाद सब प्रसाद ग्रहण करत। लबान दिन सजमनि में सरिसों के साग दय खेबाक प्रधानता। बहुतो ठाम जतेक नव अन्न भेल ओहि स सबस पहिने ब्राहम्ण भोजन करा तकर बाद ओहि अन्न के ग्रहण कैल जाईत अछि।
अपन मिथिलांचल त वनस्पति तक के गर्भाधान के उत्सव मनाबै छथि अहि स बढि क नीक संदेश की भ सकैत अछि।
रेखा झा,, पटना