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“खरिहान”

भावेश चौधरी।                           

खरिहान,जेकरा हिंदी में खलिहान,धान्यागार, बाड़ा आ खत्ती सेहो कहल जायत अई,प्रायः दुनिया के सब ग्रामीण क्षेत्र में देखल जा सकैत अछि।व्याकरण अनुसार खलिहान – संज्ञा [हिंदी] के देशज शब्द भेल ‘खरिहान’।विश्व पटल पर एकर अर्थ भेल ओ जगह जतय फ़सल काइट के रखल जाईत हुआ आओर फ़सल सा अनाज अलग कायल जाइत होई।लेकिन मिथिला में खरिहान खाली अन्न संग्रह के स्थाने टा नै, अपितु सब शुभ अशुभ काज में प्रायोजित होई वाला कार्यक्रम स्थल भेल। मशीन युग सा पहिने खरिहाने में धान, गहुम,मौसरी,सरसो आदि फसल के अनाज के रूप में तैयार कैल जाईत रहा। बोरद सा गहुम के दोऊनी, चौकी पर धान के पटैक पटैक के निकालनाई, सूप सा होकैत भुस्सा निकालनाई आब प्रायः देखनाई अनुपम। तैयार अन्न के ढेर के ‘अंबार’ कहल जाय छै। एखनो पैघ धनवान के बारे में कहल जैत सुनैत हेबन-हुनका ता धन के अंबार छैन। एतबे नै,खरिहान के फारसी में ‘ख़िरमन’ कहल जाई छै आ शायर कहलैथ, “मौज-ए-दरिया जो मैं होता, तू किनारा होती
ख़िरमन-ए-दिल पे यूँ गिरती, के शरारा होती”
खरिहान के विलुप्त होबय के मुख्य कारण आधुनिक मशीन,श्रम शक्ति के कमी, कृषि के प्रति रुचि कम(एकर कारण पर चर्चा एतई उचित नै) आ गांव में रहनिहार के कमी आदि भेल। शहर में ‘स्क्वेयर फीट’के घर में रहई वला ता ‘कट्ठा के खरिहान’ सोइचो नई सकईत छैथ।
शहर के चकाचौंध सा प्रभावित भा के अब गामो में आधुनिकता के प्रवेश देखल जा सकैत अइ। घरक बरोंडा, जेतय सा एक हाक पर पूरा मोहल्ला स संवाद स्थापित होयत रहै,के अब लोहा के मजबूत द्वार घेर लेलक। लोकक ‘भेट घांट’ करई लेल पहिने ‘कॉल बेल’ सा भेंट भा रहल अय। खैर,सुरक्षा आ सुविधा के समागम के दृष्टि सा एकरो महत्व के नकारल नई जा सकईत अछि।
शब्द सीमा के बंधन के कारण अंत में हम याह कहब कि पहिने संयुक्त परिवार आ उत्तम खेती के कारण खरिहान के उपयोगिता रहा। कहबी रहई जे “उत्तम खेती-मध्यम बान, नीच चाकरी,कुक्कर निदान” आब एकल परिवार,उद्यम आ व्यवसाय के प्रति रुचि में वृद्धि,खेती में अत्यधिक मेहनत लेकिन लाभ कम आदि के कारण खलिहान विलुप्त भेल जा रहल अई।।
जय मिथिला, जय मैथिली।।

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