आभा झा।
” मधुश्रावणी ”
अपन मिथिला के धरा जहिना अनमोल अछि तहिना अहि ठामक पाबैन तिहार,विध- व्यवहार अद्वितीय अछि। मधुश्रावणी मिथिला के प्राचीन व प्रसिद्ध पाबैन में सँ एक अछि। नब कनियाँ विवाह के बाद पहिल सावन सँ मधुश्रावणी के पाबैन में पूजा अर्चना क अपन पति के दीर्घायु के लेल कामना करैत छथि। विवाह के पहिल सावन में कनियाँ सब अपन नैहर में मधुश्रावणी व्रत करैत छथि।
अहि पूजन में संध्या के समय तोड़ल गेल फूल जे भोरे पूजा के कार्य में लेल जाइत अछि एकर विशेष महत्व छैक। संध्या के समय नवविवाहिता अपन सखी के संग
एक समूह बना कऽ पूजन लेल बाँस के डाली में फूल लोढ़ै छथि।
सखी फूल लोढ़े गेलि फुलवरिया,सीता के संग सहेलिया। मैथिली के ई गीत के मिठास में लोक संस्कृति के खुशबू अछि ।
मधुश्रावणी पाबैन परंपरा के अनुसार सासुर सँ आयल पूजन सामग्री दूध,लावा व अन्य सामग्री के संग नाग
देवता व विषहरी के पूजा होइत अछि। मान्यता अछि कि माता पार्वती पहिल बेर मधुश्रावणी के व्रत केने रहथि। ताहि दुवारे अहि व्रत के समय शिव -पार्वती के
कथा सुनायल जाइत अछि। अहि अनुष्ठान में मिथिलांचल के नवविवाहिता अहि दौरान नोन नहिं
खाइत छथि। व्रत के दौरान नबकनियाँ दुल्हन जेकां सजि-धजि कऽ ई व्रत के करैत छथि। सावन शुक्ल पक्ष
के तृतीया तिथि कऽ विशेष पूजा- अर्चना के संग व्रत के समापन होइत छैक। चौदह दिनक अंतराल में नबकनियाँ व्रत राखि कऽ गणेश,चना,माटी एवं गोबर सँ बनल बिषहरा एवं गौरी – शंकर के विशेष पूजा करैत छथि। मधुश्रावणी के व्रत में मौना पंचमी,गौरी,बहुला
सतीक कथा गौरी,पृथ्वी,महादेव सहित चौदह कथा के
श्रवण होइत अछि। प्रतिदिन संध्याकाल में महिला आरती ,सुहाग के गीत,कोहबर गीत गाबि कऽ भगवान
भोलेनाथ के प्रसन्न करैत छथि।
व्रत के ख़ासियत अछि कि पुरोहित के भूमिका सेहो महिला सब निभबैत छथि। मधुश्रावणी के दिन वर नब वस्त्र,पाग दोपटा पहीरि कनियाँक पीठ पर हाथ राखि पाछू में बैसइ छथि। कथा वाचिका प्रत्येक दिन नवविवाहिता के मधुश्रावणी व्रत कथा सुनबैत छथि। मैथिल समुदाय के नवविवाहिता अमर सुहाग लेल मधुश्रावणी व्रत करैत छथि। मधुश्रावणी व्रत में कथा सेहो महिला सब कहैत छथि। नैहर- सासुर के सहयोग
सँ होइ वाला मधुश्रावणी में मैना के पात पर पूजा कयल जाइत छैक।नबकनियाँ पात पर नाग- नागिन
बनल आकृति पर दूध लावा चढ़ा कऽ अपन सुहाग के संगे परिवार के मंगल कामना करैत छथि। कथा समाप्त भेला पर एक बेर बीनी सुनि दसगोटे अइहब के बखमा हाथे तामा में सँ धान आ धनीक सोहाग बाँटल जाइ छै। तहन वरक हाथें सिन्दुरदान कयल जाय। तखन टेमी दागै के विध होइत छैक।
मधुश्रावणी में टेमी दागै के सेहो बहुत प्राचीन परंपरा
अछि। नबकनियाँ के पान,सुपाड़ी एवं आरत पात सँ ठेहुन एवं पैर के पंजा दागल जाइत छैक। एकर पाछू कहल जाइत अछि कि अहि सँ पति-पत्नी के संबंध
मजबूत होइत अछि। आइ काल्हि सेहो ई परंपरा बरकरार अछि। तेरहवाँ दिन नब वस्त्र,गहना पहिर
वर -वधु पुजा- पाठ करैत छथि आर फेर पूजा में दीप
जरैत रहैत अछि,ओकरे बाती सँ नबकनियाँ के चारि ठाम दागल जाइत छैक। दागैत काल वर पान के पात सँ वधु के दुनु आँखि के ढंकने रहैत छथि। परिवार आर गामक आस पड़ोस के स्त्री सब मिलि कऽ वधु के पकड़ने रहैत छथि आर अहि समय स्त्रीगण सब मंगल
गीत गाबै छथि। मिथिलांचल के पंडित सबहक माननाइ छैन कि जराबै के बाद जतेक पैघ घाव होइत अछि ओकरा ओतेक शुभ मानल जाइत छैक। ओहि ओहि वधु के पति बेसी प्रेम करैत छथि। मिथिला के
पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार चलय वाला लोक
देश -विदेश में सेहो अहि व्रत के करैत छथि।नेपाल में एहि बड्ड पावन तरीका सँ मनाओल जाइत अछि।
आभा झा
गाजियाबाद