“मिथिलाक सुप्रसिद्ध मधुश्रावणी पाबनि”

378

बेबी झा।                             

  •  “मधुश्रावणी”

भारतवर्ष मे मिथिलाक अनुसार भरि साल में दू टा मधुमास होईत अछि एकटा फागुन , दोसर श्रावण | फागुन में फूल, मज्जर स आच्छादित वातावरण आ एहि में गाछक हरियरी संग पोखरि, नदी स उछलैत पानि कंतक सान्निध्यताक लेल आतुर भय जाईत अछि | मधुश्रावणी दू शब्दक योग स बनल मधु यानी मीठगर, श्रावणी यानि सावन | पहिलका समय में वा एखनहु कतहुँ – कतहुँ बिबाह के बाद पति परदेश रहैत छलाह आ पत्नी नैहर वा सासुर | ई पावनि आबि कय अनायासे पीया मिलनक संयोग बना दैत छल |
एहि पर आधारित एकटा दोहा –
हरियर लत्ती हरियर हरियर फत्ती हरियर बागबोन गे झिहिर – झिहिर बुन्दफूही परै छै साओन गे कोयल प्रीतक गीत गाबय मधुमास
मिलनक आश जगाबे थर थर जीया कापैए राति छैक भयाओन गे |
आब चलु एकर शुरुआत आ पूजापाठक बिधि – बिधान दिस ध्यान आकृष्ट करी –
“मधुश्रावणीक” शुरुआत साओन मास के अन्हरिया में पंचमी तिथि स भय जाईत अछि |ई पावैन लगभग पंद्रह दिन तक चलैत अछि आ कोनो – कोनो बेर मलेमासक कारणे एक महीना के सेहो होईत अछि | पवनैतिन एहि पावैन में पन्द्रहो दिन नैहर में रहितो सासुरेक अन्न वा हर वस्तु खाईत छथि | कारण भूलचूक स इम्हर उम्ह्हर के अपवित्र चीज नहि खा लैथ |एहि स एक दिन पूर्व पवनैतिन माथ धो भरि माथ सिन्दूर कय नव साडी पहीर सात्विक भोजन ग्रहण करैत छथि |
मैनाक पात पर सिन्दूर, पीठार, काजर, मेंहदी स बिसहाराक गीतक संग बिषहारा लिखब आ गौरी ( हरैद दूभि के पीसि) गौरी बनैत छथि ओहि गौरी के नबका सरबा में लाल कपड़ा स झापल जाईत अछि |तदुपरांत कोबर घर में गायक गोबर स नीपि अरिपन धरैर अछि ओहि अरिपन में बिषहारा से बनाओल जाईत अछि एहि पूजा में मुख्य रुप स बिषहारा के पूजा होईत अछि | किएक त बिषहारा के गौरीक – महादेवक संतान सेहो मानल जाईत अछि | बिषहाराक पूजाक विशेष महत्व अछि |
पंचमी दिन पवनैतिन सोलहो श्रृंगारक संग कपार पर बिषहाराक छवि सेहो बनबैत छथि |
सब देवता गौरी आ माटिक बनल बिषहारा के लावा, दूध, जमेरी नेबो स बिधिवत पूजा 🙏🙏 करैत छथि | जे पवनैतिन गर्भवती रहैत छथि ओहिठामक विषहारा के आंखि नहि देल जाईत अछि | एहन धारणा अछि जे, गर्भक बच्चाक तकला स सांप आन्हर भय जाईत अछि |फूल – पत्ती में जाहि – जूही ओहियो में बसिया लोढल धरैत अछि | | जाहि में पूजा करेबाक लेल आ कथा कहबाक लेल कथकहिनी महिला रहैत छथि | पूजा में डाली पनपथिया, चनै के छाछ कूडा में चुडा, अंकुरी ,केंचुआ (हर्रे, बहेरे, जोकी , हरैद, छोटकी सुपारी रांगल धान , सिन्दूरक गद्दी के लाल टूकड़ा में बांन्हल) प्रसादी में फल, ( कटहर) अवश्य मधूरक अंकुरीक संग पुरी सेहो धरैत अछि जे बेटी – पुतहु भरल – पुरल रहती | | एकर कथा में गौरी – पार्वतीक हास्य परिहासक संग नाग – नागिन के कथा सेहो अछि | एकर प्रसिद्ध दोहा –
गोसाऊन दानवरि, मानवरि
सोहागवरि सुन्दरवरि…….
एहि तरहे पंन्द्रहो दिन पूजा- फूललोढिया चलैत इजोरिया त्रितिया कय एहि पावनिक निस्तार होईत अछि जाहि मे सिन्दरदानक संग घुंघटक बिध सेहो होईत अछि तेय पति के रहनाय अति आवश्यक रहैत अछि | टेमी सेहो परेत आछि | पवनैतिन संग बैसि खीर, खाईत छथि | ई पन्द्रह दिन पवनैतिन महारानी बनल रहैत छथि अईठ, अपैत, झाडू ईत्यादि सब छुबाक मनाही रहैत छनि | अपार हर्षित रहैत छथि |
ई पावनि मात्र अप्पन मिथिला में मैथिल ब्राह्मण परिवार में मनाओल जाईत अछि आ नवबिबाहित पवनैतिन जाहि घर में नहियो छैथ ओहियो ठाम भगवती के खीर, घोरजाऊरक भोग लगैत अछि आ सब खाईत अछि |एखन महिला सब कामकाजी भय गेलिह जाहि कारण पूजन विधि में कटौती कय कतहुँ पूजि लैत छथि | मुदा, एहि पावनि में बहुत कीछ छीपल अछि तेय एकर बिधि – बिधान के बरकरार राखैथ | 🙏🙏 विषहरि मैया सब के कल्याण करथि |