वंदना चौधरी।
- जिनगी हाथ स जेना छूटल जा रहल अइछ,
हर पल हर क्षण ,मोन रहैत अइछ व्याकुल,
विह्वल, और डरायल,जे कखन ककर सांस क,
माला टूटी जेतै और के,भ जेत विदा अहिठाम स।
ई सब देखि मोन आब टूटल जा रहल अइछ।
रोज हजारों के संख्या में यात्रा भ रहल अछि,
लोक,अहिलोक स परलोक जा रहल छैथ।
सब बुझितो बेबस और लाचार बनल अछि,
मानव, जेना किछुओ त नहि रहल अपन साध्य
हारल जुआरी सनक मन,हुसल जा रहल अछि।
हे नाथ,आब डोरी अहींक हाथ,मझधार में
नैया,डूबल जा रहल अछि,डूबल जा रहल अछि।
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