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“नैया डुबल जा रहल अछि”

वंदना चौधरी।                     

  • जिनगी हाथ स जेना छूटल जा रहल अइछ,
    हर पल हर क्षण ,मोन रहैत अइछ व्याकुल,
    विह्वल, और डरायल,जे कखन ककर सांस क,
    माला टूटी जेतै और के,भ जेत विदा अहिठाम स।
    ई सब देखि मोन आब टूटल जा रहल अइछ।
    रोज हजारों के संख्या में यात्रा भ रहल अछि,
    लोक,अहिलोक स परलोक जा रहल छैथ।
    सब बुझितो बेबस और लाचार बनल अछि,
    मानव, जेना किछुओ त नहि रहल अपन साध्य
    हारल जुआरी सनक मन,हुसल जा रहल अछि।
    हे नाथ,आब डोरी अहींक हाथ,मझधार में
    नैया,डूबल जा रहल अछि,डूबल जा रहल अछि।
    🙏🙏🙏🙏😊😊

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