“नारी अस्मिता के और कतेक अनादर…?”

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वंदना चौधरी।                       

हे कृष्ण, हे माधव,कतैय सुतल छि अहाँ।देखु ई संसार में केहेन घोर पाप भ रहल ।
की अहाँ वैह कृष्ण थिकों जे,द्रोपदी के एक पुकार सुनी दौड़ल छेलौं द्वारिका स।
की अहाँ वैह कृष्ण थिकों जे देवकी के विनय सुनी अवतार लेलौं कारागृह में।
की अहाँ वैह कृष्ण थिकों जे धर्म के रक्षा हेतु चला देलौं अपन सुदर्शन चक्र के।
हम कोना मैन ली जे अहाँ वैह कृष्ण थिकों।
एक अबोध कन्या के जखन एकटा नर पिशाच अपन वासना के शिकार बनेलक,
त की अहाँक ओकर करुण पुकार विचलित नै केलक।
जखन एकटा द्रौपदी के वस्त्र एकटा दुःशासन फेर तार तार केलक,त अहाँक मोन विदीर्ण नहीं भेल।
की अहाँ सुनियो क गबदी मारने छि,
जे अहू स घोर पाप हेतै तखन हम जायब,
और अपना आप के एक बेर फेर स भगवान कहायब।
जौ नहीं त एक बेर फेर चला दियौ अपन सुदर्शन,
और संहार करू ओहि नरपिशाच सब के।
आ बांसुरी बजा क शांतिदूत बनि आनंदित करू अहि विकल धरा के,
जेकरा कोरा में एखनो असुरक्षित अइछ कतेको जानकी ,वैदेही,मिथिला,और सीता।
वंदना चौधरी द्वारा रचित ई रचना अहाँ सब के नीक और बेजय जे लागे ओ महत्वपूर्ण नहीं छै, आवश्यकता छै एहेन निंदनीय अपराध पर कोना अंकुश लगतै तेकर।
अहि गंभीर समस्या पर हर एक के विचार करनाय जरूरी छै।