“मिथिलावासी के लेल मांछक महत्व”

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  • पुष्पा कुमारी।           

#मिथिलामेमाछकमहत्व#

मिथिला और माछ के आपस में बहुत घनिष्ट संबंध अछि| हर शुभ अवसर और अशुभ अवसर पर माछ के सबसं पहिले आगू राखल जाइत अछि|
तअ सबसं पहिले शुभ अवसर के बात करैत छी |
#वियाह जे मिथिला में होइत अछि|वियाह के किनको चारिम और किनको पांचम दिन में चतुर्थी मनायल जाइत अछि | चतुर्थी के राईत में माछक रिवाज अछि| सौजन भोजन करैल जाईत अछि|
#दुरागमन राति में नवकनिया के हाथ सं कोबर घर में माछ कटायल जाइत अछि तेकरो पाछू तर्क अछि जे माछ युग- युगान्तर सं अचल अछि रामायण सं लअ कअ गीता तक मे माछक बखान अछि त्रेतायुग सं कलयुग तक|तैं जहिना माछ अचल अछि तहिना कनिया के सुहाग अचल रहै|
#छठिहार जखन बच्चा जन्म लैत अछि
तअ छठिहार दिन माछक महत्व अछि एकर पाछू तर्क अछि जे माछ के भगवान विष्णु और ब्रह्मा के रूप मानल जाइत अछि तहिना बच्चा के रूप, गुण और दीर्घायु हुवै |और दोसर तर्क जे मिथिला मे खुशी मतलब माछ और बच्चा के जन्म बहुत खुशी के गप्प होइत अछि|अहि जिनका बच्चा भेल रहै छैन हुनका गरचुन्नी माछ खुवेबाक चाही| बांतर नहि होइत अछि गरचुन्नी माछ|
आब अशुभ मे माछक महत्व|
#श्राद्ध कर्म मे सेहो माछ क महत्व अछि कियैकि पितर के सब दिन कर्म मे देल जाइत अहि पर एक पंक्ति अछि जे कदली कब कब मीन मतलब जे पितर के कदली (केरा)कब कब(ओल)और मीन (मनुष्य के मॉस) ई तीनू चीज पीतर के चढै छैन आब अहि ठूम सोचबै जे माॕस त नही देल जाइत अहि लेकिन हम कियै लिखलौ |
पूर्वज के मतानुसार माॕस के स्थान पर माछ राखल गेल ओहो कुन माछ जे सर्वभक्षी होई त ओ माछ अछि बुआरी |बुआरी माछ देबै के परंपरा लागू भेल| दोसर तर्क जे माछ,पान और मखान त स्वर्गो में नही भेटैय||
और मिथिला में त पग पग पर पोखैर अछि |पोखैर में माछ स्वाभाविक अछि | स्वास्थ्यरवर्धक सेहो माछ होइत अछि|
आब चर्चा करब किनका लेल वर्जित अछि अपना मिथिला में विधवा के लेल |एकर पाछू तर्क अछि जे माछ और मॉस तामसी भोजन होइत अछि अहि सं कामवासना उत्तेजित होइत अछि कियै त अहि मे बहुत तरह के गर्म चीज परै छै|ताहि कारण वर्जित अछि और बहुत गोटा मुन सं नही खाई छैथ |कंठी जे लेने छथि हुनका लेल वर्जित अछि।