“जूड़िशीतल पाबनि “

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अखिलेश कुमार मिश्रा।                       

***जुड़-शीतल***
जुड़-शीतल शब्द मैथिलीक दू सहचर शब्द सं बनल अछि. पहिल शब्द अछि जुड़ जे मैथिली शब्द जुड़ेनाई सं ऐल अछि. जुड़ेनाई मतलब खुश भेनाई या खुश क देनाई. शीतल के शब्द सं तात्पर्य ठंढा आ शान्त होइत अछि.
इ त्यौहार खास क मिथिलांचल में ही मनैल जैत अछि जे 13 आ 14 अप्रैल क होइत अछि. 14 अप्रैल क मेष संक्रांति रहैत अछि त देश अन्य हिस्सा में सेहो एकरा अन्य रूप में मनैल जैत अछि.
जुड़-शीतल के पहिल दिन पूजा पाठ के उपरान्त शीतल जल समेत घैल, तील, जौ आ अन्य रब्बी फसल दान कैल जैत अछि. चूँकि गर्मीके आगमन भs गेल रहैत अछि तs शीतल जल पियेनाई पुण्य के काsज मानल गेल अछि. केकरो केवल घैल देनाई ओतेक उचित नै तs संगहि नवका रब्बी फसल ख़ास क जौ (जे मिथिलांचल के आरम्भिक फसल अछि, गेंहू त बाद में ऐल) के दान केनाई उचित. जुड़-शीतल के प्रथम दिन खाई पिबक लेल टटका तैयार कैल गेल चनाक सत्तू, दालि-पुड़ी, बsड़ी-भात, खीर आ अन्य तुरुआ-तरकारी के प्रधानता रहैत अछि.
इ त्यौहार कोना आरम्भ भेल तक्कर त कुनो लेखा-जोखा नै भेटल अछि. मुदा कल्पना कs सकै छी जे इहो पाबनि अन्य पाबनि जकां सीधे तौर पर प्रकृति सं जुडल अछि. पहिल दिनक नव घैल के शीतल जल (हवा में आद्रता के कमी के कारण जल बहुत शीतल भ जैत अछि) भोरे-भोर माँ-दादी बच्चा सभ कें माथ पर दs कs जुड़ा दै छैथि जे अहि बातक द्योतक अछि जे सभक माथ अहिना सभ दिन शीतल रहत. पुन: ओहि जल के आम, आ कटहर गाछक जरि में देल जैत छै. आमक मज्जर सं टिकुला आ कटहर गाछ सं फल सेहो निकलि गेल रहैत अछि त गाछ के पानि के बहुत आवश्यकता रहैत अछि, तs त्यौहार बहाने ही इ काज कs देल जैत अछि.
अहि पाबनि में एक दिन पहिले बनल बसिया बड़ी-भात खाई के प्रथा अची तs एकरा बसिया सेहो नाम देल गेल अछि. बसिया बड़ी-भात त बुझु आधा एल्कोहल के काज करैत अछि त लोक इ खेलक बाद थोड़े मस्ती के अनुभूति करैत छैथि. अहि समय में पछिया हवा जोर पर रहैत अछि त धूल सेहो खूब उड़ति अछि. मैथिल सभ बिल्कुल प्रकृति के संग मस्त भ सेहो धूल उड़बैत छैथि संगहि ऐह बहाने पोखरि झांखुर सभक साफ सफाई भs जैत अछि. अहि क्रम में एक दोसर के ऊपर धूल आ कीचड़ सेहो फेकल जैत अछि जे धुर-खेल के नाम सं जानल जैत अछि. मिला जुला क इहो पाबनि में होली जका ही एक दोसर के ऊपर रंग के स्थान पर धूल-माटि देल जैत अछि. साँझ में बहुत ठाम दंगल (कुश्ती) के सेहो आयोजन कैल जैत अछि.
सभ किछु के साथ अच्छाई संग बुड़ाई सेहो होइत अछि. अहि पाबनि के उपलक्ष्य में बहुत लोक नशाक संग अभद्रता पर उतरि जैत छैथि जे सर्वथा अनुचित अछि. चुकी इ पाबनि अप्पन सभक धरोहरि अछि तs एकरा पूर्वत जेका बचा कs राखनाई उचित.
🌹🌹🌹धन्यवाद🌹🌹🌹