“सरस्वती वंदना”

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– दीपिका झा।                                        

“सरस्वती वंदना”
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जगजननी हे मातु शारदा,
विद्या के देवी कहाबै छी।
पद्म लोचना, मां ब्रम्हाणी,
वीणा मधुर बजाबै छी।

श्वेत कमल पर आसन साजल,
ताहि पर अहां विराजै छी।
वीणा-पुस्तक हाथ शोभैयै,
मुकुट शीश पर साजै छी।
हंसवाहिनी, विशालाक्षी,
अहां मैहर में विराजै छी ।
पद्म लोचना, मां ब्रम्हाणी,
वीणा मधुर बजाबै छी।।

जिह्वा, वाणी,मति में मैया,
जकर अहां विराजै छी।
वैह अर्थवान बनल अई जग में,
जकरा अहां बनाबै छी।
वरदायिनी हे बुद्धिदात्री,
अहीं करूणामयी कहाबै छी।
पद्म लोचना, मां ब्रम्हाणी,
वीणा मधुर बजाबै छी।।

सुनलौं शरण में ऐल के मैया,
हृदय सं अहां लगाबै छी।
बुद्धिहीन, अज्ञानी के मां,
महाज्ञानी अहां बनाबै छी।
हमरा बेर कियै सुतल छी मैया,
नै महिमा अपन देखाबै छी।
पद्म लोचना, मां ब्रम्हाणी,
वीणा मधुर बजाबै छी।

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