“जुनि बेचू कोखिक संतान के…..”

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– दीपिका झा।                                   

पाप थिकै,संताप थिकै,
जुनि बेचू कोखिक संतान के।
स्वर्ग सनक पावन अई धरतीक,
नहिं कारण बनू अपमान के।।

धन-दौलत आ पाई-रूपैया,
नहिं लय जाएब अपना संग।
एहेन कर्म करू एहि धरा पर,
जाहि सं सब भऽ जाए दंग।
दहेज नामक भीख मांगि कऽ,
बनि जाएब धनवान की…….?
स्वर्ग सनक पावन अई धरतीक,
नहिं कारण बनू अपमान के।।

भेद कियै अई बसल मोन में,
बेटी-पुतौह अई एक समान।
जुनि झोंकू लक्ष्मी के दाह में,
ओहो अहींक अई संतान।
ओकरे कोखि सं कुल बढ़त अहांके,
ओकरे बुझै छी आन की…….?
स्वर्ग सनक पावन अई धरतीक,
नहिं कारण बनू अपमान के।।

सिया धिया छथि जै धरती के,
ओतऽ लोभक कोन स्थान अई।
त्याग, बलिदान, करुणा जिनकर रूप,
ई तऽ हुनकर घोर अपमान अई।
संतोषी बनू राजा दशरथ सन,
बनल सब दिन रहब बैमान की…..?
स्वर्ग सनक पावन अई धरतीक,
नहिं कारण बनू अपमान के।।

हम देलौं तैं हमहूं लेबै,
कियै रखने छी विधान ई।
रमा सुता छथि अई धरतीके,
मर्यादा और अभिमान ई।
मांगल रूपैया,गाड़ी,गहना,
यैह राखब पहचान की……..?
स्वर्ग सनक पावन अई धरतीक,
नहिं कारण बनू अपमान के।।

धन और नौकरी के ताव पर,
बढ़बै छी बेटा के दाम।
मांगल पाई सं पहिर-ओढ़ि कऽ,
पाग साजि बढ़बै छी चाम।
बेचल बेटा सं मुखाग्नि लऽ कऽ,
पहुंचब कोनो धाम की……..?
स्वर्ग सनक पावन अई धरतीक,
नहिं कारण बनू अपमान के।।

धन बढ़ैब जों ककरो कुहरा कऽ,
नै ओई सं अहां धनवान बनब।
जिनकर पिता कीनत अहां बेटा के,
नै हृदय सं ओ सम्मान करत।
अपने सं जुनि कलह बेसाहू,
कनियों नहिं बांचल आन की……..?
स्वर्ग सनक पावन अई धरतीक,
नहिं कारण बनू अपमान के।।