स्वाध्याय
– प्रवीण नारायण चौधरी
कवि चन्द्र विरचित मिथिला भाषा रामायण
सुन्दरकाण्ड – तेसर अध्याय
।चौपाइ।
सीता शुनथि शुनय नहि आन । शञ्च शञ्च कह तहँ हनुमान ॥
राजा दशरथ काँ सुत चारि । जेठ राम काँ सीता नारि ॥
शिव – धनु तोड़ल मिथिला जाय । जनक देल कन्या से न्याय ॥
परशुराम अयला कय कोप । तनिकर भय गेल गर्व्वक लोप ॥
भूमि – भार – संहारक काज । विघ्न कयल बड़ देव-समाज ॥
बारह वर्ष राम वनवास । केकयि परवश कयल प्रयास ॥
हरल शारदा केकयि – ज्ञान । ककरो कहल कि रानी मान ॥
वर न्यासित दशरथ सौँ लेल । दशरथ प्राण – रहित भय गेल ॥
लक्ष्मण सीता संगैँ राम । पंचवटी मे कैलनि धाम ॥
भिक्षुक बनि रावण सञ्चरल । शून्याश्रम सौँ सीता हरल ॥
दश – भालक संग लड़ल जटाउ । दृष्ट कथा हम कते शुनाउ ॥
कानन – कथा सकल से कहल । विरही विकल राम दुख सहल ॥
किष्किन्धा मे यहन चरित्र । बालि घालि सुग्रीव सुमित्र ॥
सुग्रीवक हम मन्त्रि प्रधान । नाम हमर कह जन हनुमान ॥
वानर दूत फिरय सभ देश । सीतान्वेषण मुख्य निदेश ॥
तहि मे हमहुँ पयोनिधि फानि । अयलहुँ लङ्का जानकि जानि ॥
वृद्ध गृद्ध कहलनि सम्पाति । घुरि फिरि देखल लङ्का राति ॥
दबकल दबकल यहि तरु कात । देखल शुनल गञ्जन उतपात ॥
हम कृतार्थ भेलहुँ अछि आज । हमहि कयल रघुनन्दन – काज ॥
जनक – नन्दिनी देखल आँखि । अयलहुँ सङ्गी पारहि राखि ॥
।षट्पद छन्दः।
नहि अछि आज्ञा तेहन, जेहन हम कौतुक करितहुँ ।
लङ्कापुरी उखाड़ि प्रभुक, पद लग लय धरितहुँ ॥
दशमुख सौँ कय बेरि अपन दुहु पयर धरबितहुँ ।
लाँगड़ि मे लपटाय बाँधि सभ लोक फिरबितहुँ ॥
जननि थोड़ दिन विपति अछि, सकुल सदल रावण मरत ।
गृद्ध काकगण मगन मन, लङ्कापुर डेरा करत ॥
।चौपाइ।
धयलैँ छली अशोकक डारि । शुनल सकल मन रहलि विचारि ॥
कहयित के अछि कथा चिन्हार । देखितहुँ लोचन बह जल धार ॥
दुःख अपार निन्द नहि आब । गगन वचन हित हमर शुनाब ॥
मरइत राखि लेल जे प्राण । वचन शुनाओल अमृत समान ॥
दया करथु से दर्शन देथु । सुकृति – समाज सहज यश लेथु ॥
शञ्च शञ्च से कयल प्रणाम । हृदय राखि रघुनन्दन राम ॥
सीता – वचन शुनल हनुमान । प्रकट भेल कलविङ्क – प्रमाण ॥
पीत वर्ण मुख अतिशय लाल । बद्धाञ्जलि मन हर्ष विशाल ॥
आगाँ आबि प्रणत कपि रहल । देखइत सीता मनमे कहल ॥
वानर – रूप धयल दशकण्ठ । हमरा मोहय कारण चण्ठ ॥
रहलि अधोमुखि विकलि अवाक । रावण – भ्रम सँ कतहु न ताक ॥
मानिय हमरा जननि न आन । हम रघुपतिक दास हनुमान ॥
पवनक तनय विनययुत जानि । सज्जन थिकथि हृदय अनुमानि ॥
।दोहा।
शाखामृग निश्चय अहाँ, हमरा मन विश्वास ।
नर – वानर – संघटन – विधि, कारण करू प्रकाश ॥
।चौपाइ।
दूर – स्थित कहलनि हनुमान । जननि कहब हम वचन प्रमाण ॥
लक्ष्मण – सहित राम घनश्याम । धनुर्बाण धर छवि अभिराम ॥
ऋष्य – मूक लग अयला जखन । दृष्टि पड़ल सुग्रीवक तखन ॥
हमरा ततय पठौलनि विकल । इष्ट अनिष्ट बुझू विधि सकल ॥
इष्ट मानि मन दूनू भाय । लय गेलहुँ हम काँध चढ़ाय ॥
अचल सख्य सुग्रीवक सङ्ग । थोड़बहि दिन मे सङ्कट भङ्ग ॥
रामक कर – शर बालिक मरण । भव – जलनिधि बाली सन्तरण ॥
से सुग्रीव पठाओल दूत । दशदिश वानर वीर बहूत ॥
चलयित कहलनि श्रीरघुनाथ । कार्य्य-सिद्धि कपि अहँइक हाथ ॥
सानुज हमर कुशल सम्भाषि । देव मुद्रिका आगाँ राखि ॥
रामक चर प्रभु – मुद्रा सङ्ग । रावण – गण मन कीट पतङ्ग ॥
यहि मे तनिक लिखल अछि नाम । देल चिन्हारय कारण राम ॥
।षट्पद।
निर्धन करथि कुवेर, कुवेर करथि प्रभु निर्धन ।
जे चाहथि से करथि, देव कौशल्या – नन्दन ॥
हम आयल छी सिन्धु फानि, देखल लङ्का – भट ।
हमरहु ई सामर्थ्य, दशानन मारी चटपट ॥
लेल जाय प्रभु – मुद्रिका, मानी जनु किछु आन मन ।
प्रणत ठाढ़ दय मुद्रिका, हाथ जोड़ि रहला तखन ॥
।चौपाइ।
दूर – स्थित कहलनि हनुमान । जननि कहब हम वचन प्रमाण ॥
लक्ष्मण – सहित राम घनश्याम । धनुर्बाण धर छवि अभिराम ॥
ऋष्य – मूक लग अयला जखन । दृष्टि पड़ल सुग्रीवक तखन ॥
हमरा ततय पठौलनि विकल । इष्ट अनिष्ट बुझू विधि सकल ॥
इष्ट मानि मन दूनू भाय । लय गेलहुँ हम काँध चढ़ाय ॥
अचल सख्य सुग्रीवक सङ्ग । थोड़बहि दिन मे सङ्कट भङ्ग ॥
रामक कर – शर बालिक मरण । भव – जलनिधि बाली सन्तरण ॥
से सुग्रीव पठाओल दूत । दशदिश वानर वीर बहूत ॥
चलयित कहलनि श्रीरघुनाथ । कार्य्य-सिद्धि कपि अहँइक हाथ ॥
सानुज हमर कुशल सम्भाषि । देव मुद्रिका आगाँ राखि ॥
रामक चर प्रभु – मुद्रा सङ्ग । रावण – गण मन कीट पतङ्ग ॥
यहि मे तनिक लिखल अछि नाम । देल चिन्हारय कारण राम ॥
।षट्पद।
निर्धन करथि कुवेर, कुवेर करथि प्रभु निर्धन ।
जे चाहथि से करथि, देव कौशल्या – नन्दन ॥
हम आयल छी सिन्धु फानि, देखल लङ्का – भट ।
हमरहु ई सामर्थ्य, दशानन मारी चटपट ॥
लेल जाय प्रभु – मुद्रिका, मानी जनु किछु आन मन ।
प्रणत ठाढ़ दय मुद्रिका, हाथ जोड़ि रहला तखन ॥
।कुण्डलिया।
शुनइत सीता – वचन कपि, पूर्व्व – रूप बनि गेल ।
कनक – शैल – संकाश – तन, मन अति हर्षित भेल ॥
मन अति हर्षित भेल, कहल सभ गुण अहँ आगर ।
मेरु सदृश अहँ मथित, करब रावण – बल – सागर ॥
देखति राक्षस लोक, एखन धरि नहि अछि जनइत ।
कुशल प्रभुक तट जाउ, कहब जे छल छी शुनइत ॥
।कवित रूपक घनक्षरी।
बड़ हम भूषल चलल नहि जाइ अछि,
आज्ञा देल जाय जाय फल किछु खा लेब ।
‘चन्द्र’ भन रामचन्द्र-चरण – भरोस-मन,
अपनैँक पदधूरि माथ मे लगाय लेब ॥
चलल प्रबल पवमान हनुमान वीर,
मनमे कहल फल खाय केँ अघाय लेब ॥
प्रभुक विमुख दश-मुखक सन्मुख जाय,
शूरता देखाय नाम अपन बजाय लेब ॥
तड़पि तड़पि तत तरु तड़ तड़ तोड़ि,
रोक के अशोक – वर – वाटिका उजाड़ि देल ।
रहल न चैत्य तरु महल ढहल कत,
सीताक निवास शिंशपाक तरु छाड़ि देल ॥
पकड़ पकड़ कपि जाय न पड़ाय कहूँ,
कहल तनिकाँ मारि पृथिवी मे पाड़ि देल ॥
लङ्कापुर जाय जहाँ सङ्गी न सहाय,
तहाँ मारुत-नन्दन रौद्र वीरता उघाड़ि देल ॥
।चौपाइ।
विकटा – गण मन गेलि डराय । कल कौशल सीता लग जाय ॥
कहु कहु जानकि कपि निर्भीक । बुझला जाइछ थिकथि अहीँक ॥
बजइत छलहुँ कलपि किछु शञ्च । चुप चुप कयल कि अहाँ प्रपञ्च ॥
हमरा त्रास अहाँ निस्त्रास । मन मे जनु दृढ़ भय गेल आश ॥
कनइत छलहुँ भेलहुँ अछि चूप । देखि पड़ आनन हर्षक रूप ॥
जानकि कहू करी जनु लाथ । कहिया अओता पति रघुनाथ ॥
सभ जनि शुनु विपतलि की बाज । थिक प्रपञ्च किछु राक्षस – राज ॥
अपनहिँ सभहिँ कहू की थीक । राक्षस माया – ज्ञान अधीक ॥
राक्षसि – दशा कहल की जाय । गमहि गमहि सभ गेलि पड़ाय ॥
।दोहा।
सीता कारागार मे, यामिक दनुजी जानि ।
दशमुख पुछलनि कह कुशल, भयभीता अनुमानि ॥
।दोबय छन्द।
त्रास देखाय करू वश सीता, कहल भेल की अयलहुँ ।
सीताकाँ एकसरि की त्यागल, एको जनि उचित न कयलहुँ ॥
दशमुख – वचन शुनल से कहलनि, सेवा कयल अघयलहुँ ।
मर्क्कट एहन विकट नहि देखल, लय लय प्राण पड़यलहुँ ॥
रक्षक मध्य एको जन नहि छथि, तनिके वार्त्ता लयलहुँ ।
सकल अशोक वाटिका उजड़ल, सीता निकट नुकयलहुँ ॥
राजकीय पन्थैँ के सञ्चर, उबटे पथ धय अयलहुँ ।
सीता त्रास देखाबय गेलहुँ, अपनहिँ त्रासित भेलहुँ ॥
।पादाकुल दोहा वा।
सीता मन आनन्दित देखल, पुछलैँ कयलनि लाथ ।
हुनकर रङ्ग तेहन सन देखल, लङ्का – जय जनु हाथ ॥
निर्भय कपि की सहजहिँ जायत, भिड़ता से मरताह ।
कालरूप कपि सङ्गर भेलैँ, नहि घर केओ घुरताह ॥
।घनाक्षरी।
जानकी निकट हम जायब कि घूरि पुन,
कनक-भूधर सन वानर विशाल से।
काँ ओ पाकल फल एको न बचल हाय,
खाय सभ गेल कत गोट मुह गाल से ॥
आयल कहाँ सौँ कहाँ कछल हम देखल न,
बाल दिनकर सन बड़ मुह लाल से ।
देखू दशभाल की अशोक – वन हाल भेल,
मरि गेल रक्षक बेहट्ट कपि काल से ॥
।दोबय छन्दः।
शुनितहिँ शीघ्र पठाओल सेना, बहुत विकट भट गेला ।
लोहदण्ड – धर जहँ उदण्ड कपि, तनिकर सन्मुख भेला ॥
सिंहनाद कय सभकाँ मारल, नहि रण मे कपि हारल ।
अर्द्ध-मरण सम भेल कतो जन, रावण निकट पुकारल ॥
महाकार वानर – तन धयलनि, लङ्का – नाशक कारण ।
क्षणमे विपि अशोक उजाड़ल, फल-चय कयलनि पारण ॥
साहस लङ्का निर्भय आयल, के करताह निवारण ।
लङ्कापति अपनहुँ चलि देखू, की थिक करु निर्धारण ॥
।रूपमाला।
गेल छल सङ्ग्राम किङ्कर, निहत शुनि दशभाल ।
कोप सौँ सत्वर पठाओल, पाँच सेना – पाल ॥
स्तम्भ लौहक हाथ लयकैँ, तनिक तेहन हाल ।
कयल मारुत – तनय विजयी, समरमे तत्काल ॥
तखन मन्त्रिक सात बालक, युद्ध-उद्यत भेल ।
क्रोध सौँ रावण पठाओल, गेल ईर्ष्या लेल ॥
सकल जनकेँ मारि मारुत – तनय पुन तहि ठाम ।
स्तम्भ लौहक अस्त्र एकटा, जितल भल संग्राम ॥
।चौपाइ।
अगुला चलला अक्षयकुमार । कयल बहुत सेना सहिआर ॥
ततय बाट तकितहिँ हनुमान । के पुन अओता जयतनि प्राण ॥
अबइत देखल अक्षयकुमार । मनमन मानल हर्ष अपार ॥
मुदगर कर लय उड़ल अकाश । सत्वर हिनकर करब विनाश ॥
मुदगर लय कर लगले घूरि । रावण – सुतक माथ देल चूरि ॥
रणमे माँचल हाहाकार । मुइला मुइला अक्षयकुमार ॥
कन्नारोहट उठ बड़ घोल । लड़त कहाँ के भभरल गोल ॥
सेना लड़ि लेलक भरिपोष । के सह मारुत – नन्दन – रोष ॥
वार्ता विदित भेल दरबार । नहि छथि जिबइत अक्षयकुमार ॥
शुनि रावणमन पैशल शोक । बाहर हल भल बुझय न लोक ॥
छल छथि अतिबल प्रबल प्रताप । रावण सन जनिकाँ छथि बाप ॥
मेघनाद सन जनिकाँ भाय । वानर – हाथ मरण अन्याय ॥
लङ्कापति – मन कोप अपार । मेघनाद सौँ कयल विचार ॥
कय बेरि बजला भेल अन्धेरि । हम अपनहिँ जायब एहि बेरि ॥
अक्षयकुमारक अरि जहिठाम । ततय जाय जीतब सङ्ग्राम ॥
मारब अथवा बाँधब जाय । अहँइक लग हम देब पहुँचाय ॥
मेघनाद कहलनि शुनु तात । वानर कयलक अछि उतपात ॥
शोक-वचन जनु बाजल जाय । हम जिबइतछी अक्षयक भाइ ॥
आनब अपनैक निकट बझाय । हमर पराक्रम देखल जाय ॥
।चरणाकुल दोहा।
ई कहि रथ चढ़ि राक्षस भट लय, मेघनाद चललाह ।
मारुत – नन्दन शत्रु – निकन्दन, कपिवर जतय छलाह ॥
।चौपाइ।
की रावण रावण – सन आन । अबइछ होइछ मन अनुमान ॥
गरजल गरुड़ जकाँ नभ जाय । स्तम्भ महागोट हाथ उठाय ॥
घुमइत गगन छला हनुमान । रावण – पुत्र चलौलक बाण ॥
आठ हृदयमे माथा पाँच । युगल चरण मे छयो नाराच ॥
पुच्छ मध्य मारल एक बाण । मारि कयल धुनि सिंह-समान ॥
कोप – विवश मारुत – सुत घूरि । रथ घोड़ा सारथि देल चूरि ॥
दोसर रथ चढ़ि आयल फेरि । कहल तोहर दुर्गति यहि बेरि ॥
नहि जीतव मन बूझल जखन । ब्रह्मास्त्रैँ कपि बाँधल तखन ॥
ब्रह्मास्त्रक कपि राखल मान । अपनहि बझला मन किछु आन ॥
बाँधल बाँधल भय गेल सोर । यहन विश्व नहि घाती चोर ॥
बाँधल अछि लय चलु दरबार । करब तेहन जे दशक विचार ॥
जीवन्मुक्त थिकथि हनुमान । कि करत तनिका बन्धन आन ॥
राम – चरण – पङ्कज मन धयल । मारुत – सुत बड़ लीला कयल ॥
।इति।
हरिः हरः!!